बिहार में रियल एस्टेट बिल्डरों पर कसी नकेल, अब शिकायत पर होगी कार्रवाई
बुकिंग के रूप में डेवलपर अपार्टमेंट या प्लॉट के मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक की राशि नहीं ले सकेगा
बिहार कथा न्यूज नेटवर्क
पटना. बिहार की नीतीश सरकार ने रियल्टी क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने, लेनदेन में निष्पक्षता लाने के साथ ही डेवलपर की मनमानी पर लगाम लगाने की दिशा में कड़ा रुख अख्तियार करते हुये आज बिहार भू-संपदा (विनियमन और विकास) नियमावली को मंजूरी दे दी, जिसके तहत शिकायत मिलने पर बिल्डरों के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकेगा। मंत्रिमंडल सचिवालय के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा ने यहां बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में यहां हुई मंत्रिमंडल की बैठक में बिहार भू-संपदा (विनियमन और विकास) नियमावली 2017 को स्वीकृति प्रदान की गई। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अचल संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 के तहत बिहार भू-संपदा (विनियमन और विकास) नियमावली 2017 को मंजूरी दी गई है। उन्होंने बताया कि अधिनियम के तहत राज्य में भू-संपदा विनियमन प्राधिकार बनाने का प्रावधान है। इस व्यवस्था के तहत उपभोक्ता अब प्राधिकार के समक्ष बिल्डर के खिलाफ मामला दर्ज करा सकेंगे। श्री मेहरोत्रा ने बताया कि आवासीय एवं व्यावसायिक दोनों तरह की नई परियोजनाओं के लिए यह अधिनियम तो लागू होगा ही। साथ ही वैसी जारी परियोजनाएं, जिनका कार्य पूरा होने का प्रमाणपत्र नहीं लिया गया है, उन परियोजनाओं पर भी यह अधिनियम लागू होगा। प्रधान सचिव ने बताया कि अब डेवलपर को परियोजना में प्राप्त राशि का 70 प्रतिशत अलग बैंक खाते में जमा कराना होगा और इस राशि की परियोजना के वास्तुविद्, अभियंता और चार्टर्ड अकाउंटेंट के प्रमाणपत्र के आधार पर उसी अनुपात में निकासी की जा सकेगी, जिस अनुपात में परियोजना का औसत काम पूरा हुआ होगा। उन्होंने बताया कि डेवलपर उपभोक्ता से बुकिंग राशि के रूप में अपार्टमेंट या प्लॉट के मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक की राशि नहीं ले सकेगा। उन्होंने बताया कि परियोजना का कार्य पूरा होने में विलंब होगा तो डेवलपर को उपभोक्ता से ली गई राशि पर ब्याज देना होगा। बिना उपभोक्ता की लिखित अनुमति मिले डेवलपर किसी भी अपार्टमेंट के प्लान में बदलाव नहीं कर सकेगा। साथ ही उपभोक्ता अपार्टमेंट में किसी भी तरह की खराबी के लिए फ्लैट में प्रवेश करने के एक वर्ष बाद भी उसे ठीक करने की मांग कर सकता है। श्री मेहरोत्रा ने बताया कि वैसे सभी अचल संपदाओं को प्राधिकार में निबंधन कराना होगा, जिसमें भूमि का आकार 500 वर्गमीटर से अधिक हो अथवा अपार्टमेंट में फ्लैट की संख्या आठ या उससे अधिक हो। उन्होंने बताया कि सभी अचल संपदा परियोनाओं का निबंधन होने के बाद ही डेवलपर विज्ञापन का प्रकाशन, विपणन एवं बिक्री कर पाएगा। निबंधन के लिए डेवलपर को परियोजना का पूर्ण विवरण जैसे कि डिजाइन, भूमि की स्थिति, मंजूरी, स्वामित्व अभिलेख, प्रवर्तक का विवरण, रियल एस्टेट एजेंट का विवरण, ठेकेदार, वास्तुविद्, अभियंता का विवरण एवं उनका ट्रैक रिकॉर्ड, आवंटन पत्र, विक्रय करार एवं विक्रय दस्तावेज के विवरण का प्रारूप जमा करना अनिवार्य होगा और इसे प्राधिकार की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा।
कार्पेट एरिया के आधार पर ही होगी खरीद-बिक्री
प्रधान सचिव ने बताया कि डेवलपर अब कार्पेट एरिया के आधार पर ही किसी परियोजना के अपार्टमेंट को बेच सकेगा। कार्पेट एरिया की परिभाषा में वास्तविक उपयोग में आने वाले पूर्ण क्षेत्र (जो बाहरी दीवार के अंदर है) के क्षेत्रफल को रखा गया है और इसमें फ्लैट के अंदर की दीवारें भी शामिल हैं। इसमें बालकनी, बरामदा एवं सर्विस शाफ्ट को शामिल नहीं किया गया है। श्री मेहरोत्रा ने बताया कि पूर्णकालिक विनियम प्राधिकार की स्थापना होने तक नगर विकास एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव ही प्राधिकार के रूप में काम करेंगे। साथ ही भू-संपदा अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना होने तक राज्य में प्रभावी भूमि न्यायाधिकरण की अपीलीय न्यायाधिकरण के रूप में काम करेगा। उन्होंने बताया कि प्राधिकार के अध्यक्ष एवं सदस्य तथा अपीलीय न्यायाधिरण के न्यायिक सदस्य एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की अनुशंसा पर की जाएगी। इस समिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि, नगर एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव एवं विधि सचिव शामिल होंगे।
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