बिहार में महागठबंधन कर सकता है यूपी का ‘डैमेज कंट्रोल’

विनायक विजेता
यूपी में प्रचंड बहुमत से वनवास वापसी करने वाली भाजपा ने लगभग एक सप्ताह तक चले अंदरुनी सियासत के बाद घोर हिन्दू कट्टरपंथी योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान तो भले ही सौंप दी पर भाजपा ने ऐसा कर अपनी ही राहे आगे के लिए मुश्किल कर ली हैं। बीते पांच दिनों से यूपी के मुख्यमंत्री के रेस में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा को सबसे आगे दिखाया जा रहा था और उनकी ताजपोशी भी लगभग तय थी। पर शनिवार को दोपहर अचानक बदले घटनाक्रम में भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपकर सबको चौका दिया। देश के दिग्गज राजनीतिक विश्लेशक भी भाजपा हाइकमान के इस फैसले से भौचक है। जब तक मुख्यमंत्री की रेस में मनोज सिन्हा का नाम रहा तो यूपी सहित बिहार में एक जाति विशेष के लोगों में गजब का उत्साह दिख रहा था.खास कर युवा वर्ग में। क्योंकि मनोज सिन्हा का ससुराल बिहार में ही है इसलिए लोगों का उत्साहित होना लाजिमी था। पर भाजपा हाइकमान द्वारा अचानक मनोज सिन्हा को हाशिये पर लाए जाने से यह उत्साह क्रोध और अपमान में परिणत हो गया जिस क्रोध की अभिव्यक्ति को सोशल मीडिया पर साफ देखा जा सकता है। यूपी और बिहार चूकि पड़ोसी राज्य है और दोनों राज्यों के राजनीतिक, समाजिक और जातीय समीकरण काफी मेल खते हैं इसलिए दोनों राज्यों के राजनीतिक हालत और राजनीतिक करवटें एक दूसरे को प्रभावित करती ही रही हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की राजद ने अपने खाते की 101 सीटों में किसी भूमिहार को टिकट नहीं दिया जिसकी परिणिति यह हुई कि इस जाति के बहुसंख्य वोटरों का रुझान बीजेपी की तरफ हो गया। कुछ प्रतिशत वोट महागठबंधन के दो अन्य घटक जदयू एवं कांगे्रस को अवश्य गए पर वह भी प्रत्याशी की जाति व उनके प्रभाव के अनुसार। इसी तरह यूपी के चुनाव में भी इस जाति के वोटरों ने भाजपा के पक्ष में पूर्ण रूप से संगठित होकर वोट डाला था। पूरे देश में इस जाति का वोट महज 1.19 प्रतिशत है पर इस जाति का वोट निर्णायक माना जाता रहा है। योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान सौंपने के बाद यूपी सहित बिहार में जिस तरह एक जाति विशेष में आक्रोश है उसका डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश बिहार की महागठबंधन सरकार कर सकती है और इस डैमेज कंट्रोल से वह इस जाति की सहानुभूति पाने की कोशिश कर सकती है। गौरतलब है कि बिहार सरकार ने कई माह पूर्व ही राज्य के सभी आयोगों और निगमों को भंग कर दिया था जिनमें अबतक राजनीतिक रिक्तयां हैं। विधान सभा चुनाव में इस जाति को एक भी टिकट नहीं देने वाले लालू प्रसाद इस जाति की सहानुभूति पाने के लिए राजद कोटे में आने वाले निगमों और आयोगों के महत्वपूर्ण पद पर इस जाति के कुछ लोगों को बिठाकर इस जाति की सहानुभूति पाने की कोशिश कर सकते हैं। कुछ ऐसी ही कोशिश महागठबंधन के दो अन्य घटक दल जदयू और कांग्रेस भी कर सकती है। महागठबंधन का अगला मिशन ‘एलएस-2019’ ॅहै और महागठबंधन भी यह मानता है कि वह अपने मिशन में तब ही सफल हो सकता है जब सवर्ण समुदाय का एक बड़ा तबका और वोटर उसके साथ हों। और यह तभी संभव है जब गठबंधन सभी को साथ लेकर चल। यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाए जाने से कट्टर हिन्दुवादी भले ही खुश हों पर भाजपा में ही एक बड़ा वर्ग इसे पचा नहीं पा रहा। भाजपा हाईकमान के इस फैसले से वैसे अल्पसंख्यक वर्ग के वोटर भी काफी हताश हैं जिनका वोट भाजपा को गया था। अब यह समझा जा रहा है कि चुनाव के पूर्व भाजपा द्वारा यूपी के मुख्यमंत्री के नाम को सामने न लाना भी भाजपा की एक चाल थी। अगर भाजपा चुनाव के पूर्व योगी आदित्यनाथ के नाम का एलान कर देती तो उसे अल्पसंख्यक जाति के वोटरों का एक प्रतिशत मत मिलने की बात तो दूर उदारवादी हिन्दु वोटरों का भी मत मिलना मुश्किल था। बहरहाल अब यह माना जा रहा है कि भाजपा ने यूपी में योगी को कमान सौंप कर विपक्ष की राहें और आसान कर दी हैं। अगर आगामी लोकसभा चुनाव तक योगी का योग ठीक रहा तो ठीक वरना भाजपा के लिए मिशन- 2019 नहीं रहेगा आसान।






Comments are Closed

Share
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com