किसी को हेमू याद है ?
पं युगल किशोर पावनाचार्य
आपको इतिहास की किताबों ने ये तो बताया होगा कि हुमायूँ के बाद शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ, इन्हीं किताबों में आपने ये भी पढ़ा होगा कि हुमायूं ने किसी मल्लाह को एक दिन के लिये राज सौंपा था जिसने चमड़े के सिक्के चलाये थे, उन्हीं किताबों में आपने शायद ये भी पढ़ा हो कि पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू राजा थे पर इतिहास की किसी किताब ने आपको ये नहीं बताया होगा कि शेरशाह सूरी और अकबर के बीच दिल्ली की गद्दी पर पूरे वैदिक रीति से राज्याभिषेक करवाते हुए एक हिन्दू सम्राट भी राज्यासीन हुए थे जिन्होंने 350 साल के इस्लामी शासन को उखाड़ फेंका था, इन किताबों ने आपको नहीं बताया होगा कि दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद मध्यकालीन भारत के इस अंतिम हिन्दू सम्राट ने “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की थी, अपने नाम के सिक्के चलवाये थे और गोहत्यारे के लिये मृत्युदंड की घोषणा की थी, इन्होंनें आपको ये भी नहीं बताया होगा कि इस पराक्रमी शासक ने अपने जीवन में 24 युद्ध का नेतृत्व करते हुए 22 में विजय पाई थी। आईये आज हम पढ़ते हैं हेमू अर्थात महाराजा हेमचन्द्र “विक्रमादित्य” के बारे में-
एक गरीब ब्राह्मण पुरोहित के घर में एक पुत्र पैदा हुआ था जो अपनी योग्यता और लगन से 1553 में सूरी सल्तनत के मुख्य सेनापति से लेकर प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुँच गये थे। 1555 ईस्वी में जब मुगल सम्राट हूमायूं की मृत्यु हुई थी उस समय वो बंगाल में थे और वहीं से वो मुगलों को भारत भूमि से खदेड़ने के इरादे से सेना लेकर दिल्ली चल पड़े और मुगलों को धूल चटाते हुए 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुये। दिल्ली के पुराने किले ने सैकड़ों साल बाद पूर्ण वैदिक रीति से एक हिन्दू सम्राट का राज्याभिषेक होते देखा गया। हेमू ने राज्याभिषेक के बाद अजातशत्रु सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर ‘हेमचंद विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। उनके सिंहासनरूढ़ होने के एक महीने बाद ही अकबर ने एक बड़ी भारी सेना उनके खिलाफ भेजी। महान पराक्रमी हेमू ने पानीपत के इस दूसरे युद्ध में अकबर की सेना में कोहराम मचा दिया पर धोखे से किसी ने उनकी दायीं आँख में तीर मार दिया जिससे युद्ध का पासा पलट गया और हेमू हार गये। 5 नवंबर 1556 का दिन भारत के लिये दुर्भाग्य लेकर आया, अकबर के जालिम सलाहकार बैरम खान ने इस अंतिम हिन्दू सम्राट को कलमा पढ़ने को कहा और उनके इंकार के बाद उनका सर कलम करवा दिया। कहा जाता है कि पानीपत की दूसरी लड़ाई के बाद जब अकबर ने घायल हेमू के सर कलम का आदेश दिया था तब हेमू के पराक्रम से परिचित उसके किसी भी सैनिक में ये हिम्मत नहीं थी कि वो हेमू का सर काट सके। इन बुजदिलों ने हेमू की बर्बर हत्या करने के बाद उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास पर भी इस्लाम कबूलने का दबाब डाला और इंकार करने पर उनकी भी हत्या करवा दी।
अगर पानीपत के द्वितीय युद्ध में छल से प्रतापी सम्राट हेमू नहीं मारे जाते तो आज भारत का इतिहास कुछ और होता मगर हमारी बदनसीबी है कि हमें अपने इतिहास का न तो कुछ पता है न ही उसके बारे में कुछ जानने में कोई दिलचस्पी है इसलिये कोई इरफ़ान हबीब, विपिन चन्द्र या रोमिला थापर हमें कुछ भी पढ़ा जाता है और कोई भंसाली हमारे ऐतिहासिक चरित्रों के साथ बलात्कार करने की हिमाकत करता है।
वो ऐसी हिमाकत इसलिये कर सकतें हैं क्योंकि उस सम्राट की हवेली जो रेवाड़ी के कुतुबपुर मुहल्ले में स्थित हैं वो आज बकरी और मुर्गी पालन के काम आ रही है और इधर हम मुगलों और आक्रांताओं के मजारों, गुसलखानों और हरमखानों का हर साल रंग-रोगन करवा रहें हैं।
ये दोगले इतिहासकार तो हेमू को यथोचित स्थान देने से रहे इसलिये आखिरी हिंदू सम्राट ‘हेमचंद विक्रमादित्य’ के बारे में खुद भी पढ़िए, अपने बच्चों को भी पढ़ाइये, इतिहासकारों की गर्दनें दबोच कर हेमू की उपेक्षा पर उनसे सवाल पूछिए और हो सके तो कभी हेमू की हवेली पर जाकर उनको नमन करिये वर्ना भंसालियों और हबीबों द्वारा अपमानित होने वाली सूची में माँ पद्मिनी अंतिम नहीं है, ये किसी दिन हेमू को भी मुग़ल दरबार का गुलाम बनाकर अपने फ़िल्मी बाजार में बेच देंगे। with thanks from facebook timeline of पं युगल किशोर पावनाचार्य
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