हर वामपंथी पत्रकार योगी की जात बताने से अपनी बात शुरू कर रहा
Sanjay Tiwari
कल से हर वामपंथी पत्रकार योगी की जात बताने से अपनी बात शुरू कर रहा है। जितने वामपंथी पोर्टल हैं, टीवी पत्रकार हैं, वो ये बताना नहीं भूल रहे हैं कि योगी की जाति क्या है। चुनाव के दौरान जब दिबांग ने तीन चार बार ठाकुर ठाकुर किया तो योगी ने डांट दिया। “आपको मुझे हिन्दू कहने में शर्म आ रही है और जिस सन्यासी की कोई जाति नहीं उसकी जाति बता रहे हैं।”
सन्यास की जो परंपरा है उसमें जाति का अस्तित्व नहीं है। जब कोई व्यक्ति सन्सास लेने चलता है तो उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। एक तरह से समाज उसे अपने लिए मृत घोषित कर देता है। फिर न तो उसका कोई कुल है, न परिवार और न ही जाति। ये सब सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है जबकि जो सन्यास लेता है वह इन सबसे ऊपर उठ जाता है। इसीलिए सिर मुंडाया जाता कि अब वह सब संबंधों का अंतिम संस्कार कर रहा है।
लेकिन अच्छा है। वामपंथ के ऐसे ही वैचारिक साजिशों और दिवालियेपन ने उसे भारत में अप्रासंगिक कर दिया है। इसी तरह काम करके रहें, अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा।
महायोगी गोरखनाथ। हठयोग के प्रवर्तक। लेकिन आज के समय का दुर्भाग्य ये है कि हम आसन तो गोरखनाथ के करते हैं लेकिन नाम पतंजलि का लेते हैं। पतंजलि ने योग पर भाष्य लिखा योग का प्रवर्तन नहीं किया। हठ योग का प्रवर्तन गुरु गोरखनाथ ने किया। हालांकि इसके पीछे भी एक कहानी है लेकिन उस कहानी का जिक्र मैं यहां नहीं करुंगा। यह महायोगी गोरखनाथ ही थे जिन्होंने हठयोग को पूरे भारत में लोगों तक पहुंचाया और नाथ योगियों की परंपरा शुरु की।
उनका जन्म कहां हुआ यह विवादित है। लेकिन नाथ संप्रदाय पर काम करनेवाले लोगों का मानना है कि संभवत: उनका जन्म वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था। पेशावर या स्वात के आसपास। इसका कारण ये है कि नाथ योगियों का शुरुआती विस्तार वर्तमान अफगानिस्तान, बलोचिस्तान और पंजाब के इलाके में ही हुआ। उसके बाद नेपाल और तराई में गोरखनाथ पहुंचे और यहां साधना की।
गोरखनाथ की तपस्या ऐसी थी कि इस्लाम पर भी आनेवाले समय में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इस्लाम की सूफी परंपरा में नाथ योगी भी पाये जाते हैं। नाथ योगियों का प्रमुख ग्रंथ है गोरखवाणी। गोरखवाणी में एक अध्याय मोहम्मद बोध के नाम से है जिसका सभी नाथ योगी पालन करते हैं।
लेकिन अब बहावी बोध से ओतप्रोत मुसलमान और उनका इस्तेमाल करके राजनीति और पत्रकारिता करनेवाले लोगों को इन बातों से कोई मतलब नहीं। वे खलनायक गढ़ते हैं ताकि लड़ सकें, इसलिए उन्होंने आदित्यनाथ और आदित्यनाथ के बहाने गोरखनाथ धाम को एक खलनायक की तरह गढ़ दिया है। अब लड़ते रहिए अपने ही नायकों को आप खलनायक मानकर। with thanks from the facebook time lne of Sanjay Tiwari
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