भोजपुरी सिनेमा : कल, आज और कल
भोजपुरी सिनेमा के हालात और संभावना पर एक विहंगम विमर्श : 12 फ़रवरी 2017, 3.00 बजे से 7.00 बजे तक : स्थल: भक्तिवेदांत स्कूल ऑडिटोरियम (सिटी मॉल के पीछे वाली सड़क पर), ऑफ लिंक रोड, अंधेरी (पश्चिम), मुम्बई.
धनंजय कुमार
भोजपुरी फिल्मों के बारे में चाहे जो भी बोलिए, उसे कितना ही वल्गर और फूहड़ बतलाइये, समाज और संस्कृति का बंटाधार करने का आरोप लगाइये, लेकिन यह सच है कि भोजपुरी फिल्में अपना बाजार गढ़ चुकी हैं. बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश की बात छोड़िये, मुम्बई महानगर में दस से अधिक ऎसे सिनेमाघर हैं, जो सिर्फ भोजपुरी फिल्में ही रिलीज करते हैं. हर साल 60 से 70 फिल्में बन रही हैं. ढेर सारे कलाकारों, तकनीशियनों और सिनेमा से जुड़े लोगों को रोजगार दे रही हैं. और जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह यह कि अगर भोजपुरी फिल्में नहीं होतीं, तो बिहार के लगभग सिनेमाघर बंद हो चुके होते. याद कीजिए, 1995 से 2005 तक का वक्त, जब बिहार में हिंदी फिल्मों का बाजार लगभग मृतप्राय हो गया था. राज्य में अपराधियों का बोलवाला हुआ करता था और शाम पाँच बजे के बाद सड़क पर निकलना लोग पसंद नहीं करते थे. सिनेमाघर के शाम 6 बजे और रात 9 बजे के शो तो लगभग खाली रहा करते ही थे, नून शो और मैटिनी शो में भी परिवार आना पसंद नहीं करता था. कभी हिंदी फिल्मों को सबसे ऊँचे भाव देने वाली टेरेटरी बिहार में हिंदी फिल्मों का धंधा लगभग नहीं के बराबर हो गया था. कई डिस्ट्रीब्यूटर्स बर्बाद हो गये और उन्होंने अपना बिजनेस समेट लिया था. कई सिनेमाहॉल कोल्डस्टोर में बदल गये. ऎसे में भोजपुरी फिल्मों ने संजीवनी का काम किया. हमें यह भी याद रखना होगा.
लेकिन हम भोजपुरी लेखकों, फिल्मकारों, कलाकारों और तकनीशियनों को अब यह भी सोचना होगा कि हम जहाँ आ खड़े हुए हैं, वहाँ से रास्ता कहीं आगे बढ़ता है या हम वही गोल गोल घूम कर एक बार फिर खत्म हो जाने को अभिशप्त हैं. क्योंकि 2005 के बाद साल दर साल बिहार का माहौल बदला है. आम आदमी नाइट शो देखने में हिचक नहीं रहा है. यही वजह है कि हिंदी फिल्मों का बाजार एक बार फिर बिहार में जमने लगा है. लेकिन भोजपुरी फिल्मों का बाजार सिमटने लगा है. जो सिनेमाहॉल पहले भोजपुरी फिल्में रिलीज करने की आपाधापी में रहते थे, अब भोजपुरी फिल्में रिलीज करने से बचना चाहते हैं. उनका कहना है कि भोजपुरी फिल्मों की वजह से फैमिली सिनेमाघर आना पसंद नहीं करती. समोसा और कोल्ड ड्रिंक्स बेचनेवाला भी नहीं चाहता कि भोजपुरी फिल्में रिलीज हो, क्योंकि उनके बिजनेस पर भारी अंतर पड़ जाता है. और इसकी वजह है भोजपुरी फिल्मों का लो क्वालिटी का होना, डबल मीनिंग संवादों और गीतों से लवरेज होना. ऎसे में भोजपुरी से जुड़े लेखकों, फिल्मकारों और तकनीशियनों को सोचना होगा कि हमारी फिल्में अपनी लो क्वालिटी या कहें फूहड़ता से कैसे उबरें. और इसके लिए हमें सोचने की जरूरत है कि हम वैसी फिल्में कैसे बनायें, ताकि लोअरक्लास के साथ साथ मिड्लक्लास भी हमारी फिल्में देखने आये. शहर के सबसे खराब सिनेमाहॉल में रिलीज होने की जगह राजधानी और शहर के गौरव सिनेमाघर में कैसे रिलीज हो सके. इससे हमारी फिल्मों की कमाई भी बढ़ेगी और हमारा स्तर भी सुधरेगा.
इन्हीं सब परिस्थितियों और मसलों पर बात विमर्श करने के लिए आगामी 12 फरवरी को अंधेरी लोखंडवाला [सिटी मॉल के पीछे वाली सड़क पर] के भक्ति वेदांत स्कूल के ऑडिटोरियम में स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन ‘भोजपुरी सिनेमा : कल आज और कल’ नाम से एक प्रोग्राम करने जा रहा है. प्रोग्राम में भोजपुरी फिल्मों से जुड़े लेखक, गीतकार, कलाकार, निर्माता, निर्देशक, डिस्ट्रीब्यूटर, म्यूजिक कंपनी के मालिक और दर्शक एक छत के नीचे जमा होंगे. आप भी आइये. समय है 3 बजे से 7 बजे तक. ( with thanks from धनंजय कुमार के फेसबुक वॉल)
Related News

महाकुंभ में साकार है भारत
महाकुंभ में साकार है भारत। दिलीप मंडल महाकुंभ इतना विशाल है कि इसके अंदर कईRead More

इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
Comments are Closed