बिहार में नजीर बन गया इस बार का पंचायत चुनाव

panchayat_chunav bihar hathuwaविनोद बंधु.पटना।  
बिहार में इस बार का पंचायती राज चुनाव नजीर बन गया। अपवादों को छोड़ दें तो न केवल यह चुनाव तनतनी या हिंसक झड़पों से दूर रहा, बल्कि सियासी दिग्गजों के सगे-संबंधियों और धनकुबेरों की दाल भी नहीं गली। पैसे लुटाने वालों को ज्यादातर जगहों पर मुंह की खानी पड़ी। और तो और जीत का जश्न भी जमकर मना या मनाया जा रहा है, लेकिन उन्माद से परे। ऐसे में एक मशहूर गीत याद आना लाजिमी है, सुन- सुन अरे बेटा सुन, इस चंपी में बड़े-बड़े गुण, लाख दुखों की एक दवा है, क्यों न आजमाएं। क्या शराबबंदी के साथ भी यह लागू नहीं है?
चुनावी जुलूसों की बात तो अलग ही रही है, धार्मिक जुलूसों में भी हॉकी स्टिक, लाठी और लोहे की छड़ लहराते नौजवान और युवा जिस तरह का माहौल बनाते रहे थे, उसमें अमन पंसद लोगों के लिए घरों में दुबक जाने या किनारे हो लेने के अलावा विकल्प ही क्या बचता था? ऐसा उन्मादी आचरण खुद के अंदर बिना अनियंत्रित नशे के पैदा करना क्या समाज के किसी युवा या नौजवान के लिए आसान है? कतई नहीं। अनियंत्रित शराब चाहे देसी हो या विदेशी खुद के अंदर शैतान पैदा करने के लिए भी जरूरी है। इस चुनाव ने यही तो साबित किया है।
झारखंड से भागलपुर के रास्ते पटना या फिर सीवान और अन्य शहरों से पटना लौटने के रास्ते में हमें बार-बार चुनाव के प्रचार जुलूसों और फिर जीत की खुशी के जुलूसों से साबका पड़ा। कई बार जुलूस देखकर आशंका ने भी घेरा, पर वह निराधार निकली। जीत के जश्न में गुलाल उड़ाते उत्साही युवा समर्थकों का हुजूम तो जगह-जगह नजर आया, लेकिन वह संतुलित और आने-जाने वालों का खयाल करता भी नजर आया। लाठी, डंडे या हॉकी स्टिक से माहौल बिगाड़ते लोग कहीं नजर नहीं आए। अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगहों पर मतदान से लेकर मतगणना और फिर जीत के जुलूस तक की प्रक्रिया अमन और सौहार्द के बीच ही गुजरी।
इस बार के पंचायत चुनाव से सही अर्थों में बिहार में सामाजिक-ग्रामीण पुनर्रचना की बुनियाद भी पड़ी है। 2006 में पंचायती राज व्यवस्था में मिले 50 फीसदी आरक्षण ने गांवों के विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की। इससे सामाजिक संरचना में महिलाओं की अहमियत बढ़Þी तो शराबबंदी ने अबकी बार गांवों में धन के बल पर नतीजे हासिल करने की कुप्रथा की रीढ़ तोड़ी है। शराब बांटकर वोट हासिल करने वालों को जोर का झटका इस चुनाव ने दिया है। बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवार जीत कर आए हैं, जो आर्थिक कसौटी पर बेहद कमजोर हैं। उनकी जीत की अहमियत वहां ज्यादा बढ़Þ गई है, जहां उन्होंने लाखों लुटाने वालों को शिकस्त दी है। इस चुनाव की सबसे बड़ी सफलता यह भी है गांवों से जिला परिषदों तक पहली बार युवा सरकार बनने जा रही है। बड़ी संख्या में युवा इस चुनाव में जीत कर आए हैं। गांवों के विकास को युवा गति मिलेगी। साभार-हिंदुस्तान






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