गोलघर जितना ही महत्वपूर्ण है पटना कलेक्टेरियट
बिहार कथा
पटना। प्रसिद्ध इतिहासकारों ने बिहार सरकार से पटना समाहरणालय के संरक्षण की अपील करते हुए आज कहा कि 200 साल पुराना परिसर ‘वास्तुकला की दृष्टि से विशिष्ट’ है और शहर की पहचान गोलघर के जितना ही महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाहरणालय का संरक्षण करने ना करने के मुद्दे पर विशेषज्ञों से राय मांगी थी। शहर के प्रसिद्ध इतिहासकार सुरेंद्र गोपाल ने कहा, अगर सरकार को लगता है कि समाहरणालय की इमारत की ऐतिहासिकता केवल इतनी है कि यह डच काल में बना अफीम का गोदाम है तो यह इस इमारत और साथ ही शहर के इतिहास के प्रति उनकी अदूरदर्शी दृष्टि को दिखाता है। ये तथ्य कि वे डच और ब्रिटिश काल में बनी इमारतें हैं और उनकी वास्तुकला विशिष्ट है, दोनों उनके संरक्षण का पर्याप्त कारण हैं। 80 साल के विद्वान और ‘पटना इन दि नाइंटींथ सेंचुरी’ के लेखक ने कहा, ‘डचों के पटना छोड़कर जाने के बाद ब्रितानियों ने उनके कारखानों को समाहरणालय और दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल में लाया तो अब बिहार सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती।’
जिलाधिकारी संजय अग्रवाल ने समाहरणालय को लेकर कहा, डच काल में इसका केवल गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया गया था। हमें नहीं लगता कि समाहरणालय का और कोई इतिहास है। गोपाल ने इसके जवाब में कहा कि यह दुखद है कि सरकार इतिहास को इस तरह नजरअंदाज कर रही है। पटना कॉलेज का मुख्य प्रशासनिक खंड भी डच काल में अफीम का गोदाम था और इस समय पर्यटकों का पसंदीदा गंतव्य 1786 में बना गोलघर भी एक अनाजघर था।
नीतीश कुमार ने हाल में कहा था, मैंने खुद कभी भी समाहरणालय को ऐतिहासिक दृष्टि से करीब से नहीं देखा। इसलिए जो इसके महत्व को लेकर इसका अध्ययन कर रहे हैं, उनके रूख को देखेंगे और अंतिम रूप देंगे। और इसके बाद मुख्य सचिव की तरफ से जो भी प्रस्ताव आएगा, हम उसपर ध्यान देंगे। हालांकि समाहरणालय की किस्मत अभी अधर में है, सरकार के इमारत को गिराने के फैसले पर पुनर्विचार ने धरोहर प्रेमियों को उम्मीद की नयी किरण दिखायी है।
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