केंद्र पर दबाव के लिए बिहारी सांसदों की एकजुटता जरूरी
बिहार दिवस विशेष :अरुण कुमार पाण्डेय
बिहारदिवस है। अतीत को याद कर भविष्य संवारने के संकल्प का दिन। हमारे पुरखों ने जैसे आजादी के लिए संघर्ष किया, उसी तरह बिहार के लिए भी आंदोलन किया। आज के ही दिन 22 मार्च, 1912 को ब्रिटिश हुकूमत ने बंगाल से अलग कर बिहार एवं ओड़िशा दो नए प्रांतों के गठन की घोषणा की थी।
बिहार प्रांत के अस्तित्व में आने के 104 वर्षों की यात्रा में हमने क्या खोया-क्या पाया? प्राकृतिक वन सम्पदा का धनी होने के बावजूद बिहार क्यों पिछड़ा बना रहा? बिहार दिवस सिर्फ सरकारी समारोह के रूप में क्यों मन रहा? आज का दिन विशेष रूप से नई पीढ़ी में उत्साह जगाने का दिन होना चाहिए। बिहारियों की एक आवाज हो- पटना से दिल्ली तक हम दलों में बंटकर नहीं, एकजुट होकर आवाज बुलंद करें। दिल्ली पर दबाव बनाने की संयुक्त पहल हो, कि विकास का अकेले श्रेय लेने की होड़ दिखे। राजनीति के इस चक्कर में हमें पक्ष-विपक्ष की दीवार बनने-बनाने से बचना होगा।
बिहारी सांसदों की, चाहे वे किसी भी दल के हों, दिल्ली में एक आवाज हो। अन्य प्रांतों की तरह सांसदों की बिहार लॉबी बने।
ब्रिटिश हुकूमत ने बंगाल प्रांत का विभाजन तत्कालीन शासकीय आवश्यकता और राजनीतिक कारणों से किया था बंगाल, बिहार एवं ओड़िशा के 1.89 लाख वर्गमील क्षेत्रफल की शासन व्यवस्था कोलकाता से लेफ्टिनेंट गर्वनर को देखने में कठिनाइयों के साथ बिहार को बंगाल से अलग करने का 1880 के बाद चल रहा आंदोलन भी था। आंदोलन का लक्ष्य 12 दिसम्बर, 1911 को मिला, जब ब्रिटिश राज ने बिहारियों की अलग प्रांत बनाने की मांग मान कर बिहार-ओड़िशा के लिए लेफ्टिनंट गवर्नर नियुक्त करने की घोषणा की।
भारत सरकार के अधिनियम 1935 के अनुरूप बिहार एवं ओड़िशा प्रांत से ओड़िशा को अलग कर नया प्रांत गठित किया गया। बिहार के विधानमंडल को दो सदनों वाला बनाया गया उच्च सदन को बिहार विधान परिषद और निम्न सदन को विधानसभा कहा गया। परिषद की सदस्य संख्या 29 और विधानसभा सदस्यों की संख्या 152 निर्धारित हुई। दोनों सदनों के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किए जाने का प्रावधान किया गया। विधानसभा में मनोनयन की व्यवस्था नहीं रखी गई परंतु परिषद में कुछ स्थानों के लिए मनोनयन की व्यवस्था कायम रही। बिहार प्रांत में पहला चुनाव 22 से 27 जनवरी,1937 को हुआ। विधानमंडल में कांग्रेस को बहुमत मिलने पर 28 मार्च,1937 को राज्यपाल ने कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता डॉ.श्रीकृष्ण सिंह को सरकार के गठन के लिए आमंत्रण दिया। कांग्रेस राज्यपाल से संवैधानिक गतिविधिययों में हस्तक्षेप करने के लिए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करने और संरकार के संचालन में मंत्रिपरिषद के परामर्श की उपेक्षा नहीं करने संबंधी लिखित आश्वासन नहीं मिलने पर सरकार के गठन के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। तब राज्यपाल ने विधानमंडल के दूसरे सबसे बड़े दल के नेता मो यूनूस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण दिया। उन्हीं के नेतृत्व में राज्य में अंतरिम सरकार बनी। अंतरिम सरकार अल्पायु रही। विधानमंडल का सत्र आहूत नहीं किया गया। 20 जुलाई, 1937 को अल्पमतवाली अंतरिम सरकार की जगह कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता संभाली। डॉ.श्रीकृष्ण सिंह प्रीमियर बने। अपने जिम्मे गृह राजस्व विभाग रखा। अनुग्रह नारायण सिंह वित्त एवं स्थानीय शासन,सैयद महम्मुद शिक्षा और विकास और जगलाल चौधरी उत्पाद एवं जन स्वास्थ्य मंत्री बने। 27 जुलाई,1937 को रामदयालु सिंह बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष बने। 11 मार्च,1937 को सर मॉरिस गार्नियर हैलेट प्रथम राज्यपाल बने। 15 नवम्बर ,2000 को बिहार से अलग कर झारखंड प्रांत बना है।
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