बिहार में सशक्त हो कर उभर रही महिलाएं व मुसलमान
बिहार में 15 वर्षों से नियमित रूप से पंचायत चुनाव हो रहे हैं.डेढ़ दशक के इस सफर में महिलाएं और अति पिछड़े मुसलमान राजनीतिक रूप से बहुत सशक्त होके उभरे हैं.
इशार्दुल हक
पूर्वी चम्पारण के दरपा पंचायत में सुहैल मंसूरी पंचायत चुनाव के लिए ताल ठोक चुके हैं. वह अपनी संभावित जीत का जो समीकरण समझाते हैं वह अतिपिछड़ों को मिले आरक्षण पर आधारित है.अति पिछड़ों के लिए इस पंचायत को आरक्षित कर देने के कारण सुहैल मंसूरी को कोयरी, कुर्मी और यादव जैसी पिछड़ा वर्ग अनुसूची-2 की सशक्त जातियों से कोई चुनौती नहीं है. कुछ ऐसी ही स्थिति पश्चिमी चम्पारण के झखरा पंचायत में जैनुल्लाह मंसूरी की रही. अति पिछड़ा आरक्षण का लाभ उन्हें मिला. नतीजतन वह लगातार दो बार मुखिया रहे. सुहैल और जैनुल्लाह पिछड़ा वर्ग अनुसूची-1 से आते हैं और वे दोनों पंचायत आरक्षण के नीतीश फामुर्ला की प्रतिनिधि मिसालें हैं.
बिहर में ऐसी एक नहीं हजारों मिसालें हैं जहां मुसलमानों का पसमांदा तबका गांव स्तर पर राजनीतिक रूप से जबर्दस्त सशक्त हो के उभरा है. यहां यह याद कर लेना जरूरी है कि नीतीश सरकार ने पंचायतों में पिछड़ा वर्ग कोटे से अतिपिछड़ों को अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है. ऐसे में धुनिया, जुलाहा, कुंजड़ा, धोबी, हजाम समेत दर्जनों अति पिछड़े मुसलमानों के सामने राजनीतिक चुनौती हिंदू समाज के केवट, चंद्रवंशी, टिकुलहार, तांती,धानुक, नोनिया, नाई, पाल, बेलदार, बिंद, माली, मल्लाह, प्रजापति आदि जातियों से मिलती है, जो संख्या और संसाधन के स्तर पर कोयरी, कुर्मी और यादव( या फिर शेख, पठान, सैयद जैसी अगड़ी) जातियों की तुलना में कमजोर मानी जाती हैं. परिणाम यह है कि आरक्षण का भरपूर लाभ विगत चुनावों में अति पिछड़े मुसलमानों ने उठाया है. स्वाभाविक तौर पर आसन्न चुनाव में मुस्लिम सियासत इसी दिशा में आगे बढ़Þेगी.
विधान सभा व लोक सभा की नर्सरी
पंचायत राज अधिनियम लागू होने के बाद बिहार में चुनावों का सिलसिला 2001 से शुरू हुआ. इस सियासी गतिविधि का महत्वपूर्ण रिजल्ट यह दिखता है कि बीते एक- डेढ़ दशक की सियासी पहचान के बूते, पंचायतों, जिला पंचायतों या नगर पंचायतों के प्रतिनिधि काफी संख्या में विधान सभा के दावेदार के रूप में उभर के सामने आए हैं. एक तरह से पंचायतें विधान सभा या संसद की नर्सरी के तौर पर विकसित होने में सफल रही हैं. मुसलमानों के पिछड़े तबके ने इसका उचित लाभ उठाया है.
महिलाएं हुईं सशक्त
इसी तरह पंचायतों में महिला आरक्षण का लाभ भी मुस्लिम महिलाओं ने उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसकी अल्टीमेट मिसाल कहकशा परवीन हैं.कहकशां बरास्ता जिला परिषद राज्यसभा तक पहुंचने वाली पहली पिछड़ा मुसलमान हैं.कल्पना कीजिए कि पंचायतों में आरक्षण न होता तो कहकशां परवीन जैसी महिलाओं के सियासी वजूद की इबारतें क्या ऐसे ही लिखी जातीं? नहीं. इसी तरह बिहार के प्रतिष्ठित पटना नगर निगम के पद पर बैठे अफजल इमाम शायद आलमगंज के वार्ड पार्षद से आगे का सपना देखने का आसानी से साहस भी नहीं कर पाते. अति पिछड़ा कटेगरी से आने के कारण ही मेयर पद की दोड़ में अफजल तीन-तीन बार बाजी मारने में सफल रहे. कोई संदेह नहीं कि स्थानीय निकायों में आरक्षण के नीतीश फामुर्ला ने जमीनी स्तर पर अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया है. ( इशार्दुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम) from dainik bhaskar
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