हर इंसान को अपने अंदर स्ट्रगलर को हमेशा जिंदा रखना चाहिए। मैंने अपनी जरूरतें कभी हद से ज्यादा नहीं बढ़ाई। मेरा परिवार भी बहुत डिमांडिंग नहीं है। मेरी एक बेटी है, भगवान की दया से उसे पढ़ाने-लिखाने, उसके सपने पूरे करने लायक मैं कमा लेता हूं। हर आम इंसान की तरह मेरी जिंदगी है। उतनी ही साधारण, उतनी सरल। महिलाओं का सम्मान करूं इसकी शुरुआत घर से ही की। चाहे जितना टफ दिखता हूं, लेकिन अपनी मां और पत्नी के सामने कुछ नहीं बोलता, उनकी हर बात मानता हूं। अब मेरी बेटी भी इसमें शामिल है। उनका सम्मान करता हूं तो हर महिला, जिसके साथ काम कर रहा हूं या मिल रहा हूं, उससे एक रत्तीभर भी कम सम्मान नहीं देता।
मैं तो बस अच्छा काम करने में लगा रहूंगा। शार्ट फिल्म्स भी इसी दिशा में एक कदम है। शार्ट फिल्म ‘तांडव’ मेरे लिए बड़ा कदम था। पहले मैंने रवीना के साथ एक शार्ट फिल्म की थी। इस बार मैं कुछ ऐसा करना चाहता था कि वह चीज समाज के हर वर्ग को छू जाए। शार्ट फिल्में आप फोन पर देखते हैं। नया दर्शक वर्ग तैयार हो रहा है। वह इंटरनेट पर पड़ी बेकार की और गंदी चीजें छोड़कर अच्छी फिल्मों का कद्रदान बन सके। मैंने कोई फीस नहीं ली इन शार्ट फिल्म्स के लिए। इस साल 3-4 शार्ट फिल्में और करूंगा, किसी के लिए कोई फीस नहीं लूंगा। जितने हेड ऑफ डिपार्टमेंट हैं हमारी शार्ट फिल्मों के, कोई भी पैसा नहीं लेता। हम सिर्फ अपने पैशन के लिए काम करते हैं। खुद ही चीजें जुटाकर दो दिन शूटिंग करते हैं। शूटिंग पूरी होने के बाद पार्टी करते हैं और घर चले जाते। मैं फीता काटने या शादियों में नहीं जाता। सच कहूं तो मुझे फीता काटने के लिए बुलाया भी नहीं जाता। यह तो सिर्फ स्टार लोगों के लिए है।
कई ऑफर आते हैं, जिसमें मुझसे कहा जाता है भाई 5-6 एक्टर्स बुलाने हैं, तो आप भी आ जाओ। मुझे ये बेइज्जती लगती है। बारात में सिर्फ पैसे के लिए शामिल हो जांऊ, ये मुझसे नहीं होता। मेरा सिर्फ एक मिशन है कि मैं अच्छे सिनेमा और कहानियों के जरिये सोच में बदलाव लाऊं। जरा भी बदलाव ला सकूं तो कुछ बात है। टीवी पर भी मैं सामाजिक सरोकार के लिए जुड़ने को तत्पर हूं। आज मैं कॅरिअर के उस मकाम पर हूं जहां मैं कोई भी प्रयोग कर सकता हूं। थिएटर की तरफ दोबारा जाने की कोशिश कर रहा हूं। एक्टिंग का यह माध्यम लगभग विलुप्त हो रहा है। मैं इससे जुड़ने के लिए कुछ लोगों के साथ मिल कर काम कर रहा हूं। जल्द ही मैं फिल्मों से दो-ढाई महीने का ब्रेक लेकर थिएटर की तरफ चला जाऊंगा। इसे मेरे अंदर के कलाकार का पुर्जीविन भी कह सकते हैं आप। अच्छी बात यह है कि आज कंटेंट और कमर्शियल सिनेमा दोनों को लोग पसंद करने लगे। छोटी फिल्मों को थोड़ा संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन रिलीज़ हो जाती है।
हमारी फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। भारत में भले इससे बाजार न बढ़े, लेकिन हम अपनी कहानी तो कह पा रहे हैं। ओडिशा के धावक बुधिया सिंह और उसके कोच की कहानी ‘दुरंतो’ में मैं काम कर रहा हूं। ये फिल्म हर वर्ग को प्रेरणा देगी। ऐसा कहा जाता है कि फलां गणित या विज्ञान में अच्छा है, लेकिन स्पेशलाइजेशन के लिए बड़े संस्थानों में जाना पड़ता है न। मुझे एक्टिंग की चाहे, जितनी तारीफ मिले मैं अपने हर किरदार के लिए बहुत मेहनत करता हूं। भीखू म्हात्रे से लेकर प्रोफेसर सिरस की भूमिका के लिए मैं तैयारी और होमवर्क करता हूं।
हर व्यक्ति खुद को बदलने का संकल्प ले तो परिवर्तन आएगा। ईमानदारी की उम्मीद सिर्फ सरकार से न करें। स्वयं से शुरुआत करें। बेहतर भविष्य के लिए बच्चों में नैतिकता और संस्कार डालें। संस्कार पूजा-पाठ का नहीं होता, संस्कार सोच का होता है। सरकार स्वच्छता अभियान चलाती है, लेकिन क्या हमने यह जिम्मेदारी ली है कि घर के कचरे को बाहर खुले में नहीं फेंकेंगे? चलती गाड़ियों से सड़कों को गंदा नहीं करेंगे? हम टेलीविजन और सोशल मीडिया की दुनिया में मग्न हैं। इससे बाहर निकलकर सबको एक-दूसरे से संपर्क बनाना होगा। नहीं तो हम सिर्फ सूचना की क्रांति कर रहे हैं। अनुभव में हम पिछड़ते जा रहे हैं। आपके पास हजारों सूचनाएं हो सकती हैं, लेकिन अगर आपके पास जीवन का अनुभव नहीं होगा तो आप केवल ट्विटर के बादशाह बने रहेंगे। जिंदगी के बादशाह कभी नहीं हो पाएंगे। जीवन को जानने-समझने के लिए, उसको जीना पड़ेगा, लोगों से मिल-मिलाप बढ़ाना पड़ेगा। तभी आप इंसान और इंसानी फितरत को समझ पाएंगे।
वर्ना गूगल पर सर्च कीजिए, यू-ट्यूब देखिए और फेसबुक पर सब कुछ लगाते रहिए कि हमारे पास तो यह सूचना है। ऐसा नहीं है कि मैं इन सबसे दूर हूं। आज के युवा को सोचना चाहिए कि वह समाज के लिए क्या कर पा रहा है? सोशल मीडिया से निकल कर लोगों, से जुड़ना और उन्हें समझना जरूरी है। एक चीज और हमें आदत में शामिल करनी चाहिए जैसे मैं अपनी बेटी से हिंदी में बात करता हूं ताकि अपनी जड़ों से दूर न हो सके। मैंने जरूरत कम रखी है तो नेगेटिविटी से भी दूर हूं। मैंने भी ये चीज किसी से सीखी है। मेरे मेकअप मैन हैं मिलिंद चौहान पिछले 20 साल से मेरे साथ हैं। मैंने देखा कि उनकी कमाई कितनी भी बढ़ रही हो, लेकिन उन्होंने कभी अपनी जरूरतें नहीं बढ़ाईं। सिंपल जिंदगी जीना और सुखी रहना ही मेरी जिंदगी की फिलॉसॉफी है। मैंने ये गांधीजी को पढ़कर खुद में आत्मसात किया है। आप भी कर लीजिये सकारात्मकता तो चारों और बिखरी पड़ी है, बस आपको उसे देखने की नज़रे और नज़रिया मिल जाएगा। (जैसा उन्होंने सलोनी अरोरा को बताया) from bhaskar.com
Comments are Closed