डीएनए से पाकिस्तान तक, बिहार में किसे क्या मिला?
बिहार के लोग राजनीतिक तौर पर बेहद जागरुक माने जाते हैं, लेकिन वोट धार्मिक और जातिगत आधार पर ही देते हैं. क्योंकि बिहार चुनाव से पहले गवर्नेंस और तरक्की की बातें हुआ करती थीं. चुनावी माहौल बनते ही ये सब गुजरे जमाने की बातें हो गईं. डीएनए से शुरू हुआ चुनावी सफर पाकिस्तान के रास्ते बीफ पर अटक गया. आखिरी दौर में लड़ाई को बिहारी और बाहरी में उलझा दिया गया.
देश को क्या मिला
प्रधानमंत्री को बिहार में वोट चाहिए था. पूछा, कितना दूं? समझने की बात है. वोट के बदले कितना देना होगा. एडवांस में. अभी बोलो. दे दिया. इतना दिया. इतना दिया कि समझ में नहीं आया कितना दिया. फिर बताया भी कि इतना दिया कि लालू के युवराज लिख भी नहीं सकते. बदले में क्या मिला?
बीफ-भोजी : खाने को लेकर अब तक तीन कैटेगरी बनती थी. वेजिटेरियन, नॉन-वेजिटेरियन और एगेटेरियन. अब एक नई कैटेगरी खड़ी हो गई, बीफ खानेवालों की. यहां बीफ से मतलब सिर्फ गोमांस से रहा.
धीरे धीरे लोग सामने आने लगे. बॉलीवुड से लेकर नेताओं और बुद्धिजीवियों के बयान फैशन स्टेटमेंट की तरह आने लगे.
अचानक फिल्म दीवार का सीन सामने आ जाता है. बदले दौर में अमिताभ बच्चन के डायलॉग तो वही रहते हैं, लेकिन शशि कपूर के मुंह से अलग अल्फाज सुनाई देते हैं.
“मेरे पास…”
“…मेरे पास गाय है”
दादरी : गोमांस की अफवाह पर लोगों ने दादरी में अखलाक के घर पर धावा बोल दिया. भीड़ को कोई रोकनेवाला भी नहीं था. न तो किसी पार्टी का नेता. न पुलिस प्रशासन का कोई नुमाइंदा. आखिरकार अखलाक ने दम तोड़ दिया. केंद्र ने सख्ती दिखाई. राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी. रिपोर्ट भेज दी गई, “किसी प्रतिबंधित जानवर के मांस रखे होने के अफवाह में…”
असहिष्णुता : सूबे से लेकर केंद्र सरकार के मंत्रियों के बयान आते रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव में खासे बिजी रहे. इसलिए चुप रहे. हर रैली में लोगों को इंतजार रहा, मोदी कुछ जरूर बोलेंगे. फिर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में बढ़ती ‘असहिष्णुता’ पर चिंता जताई. मोदी ने चुप्पी तोड़ी. बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राष्ट्रपति ने जो कहा है उससे बड़ा कोई मार्गदर्शन नहीं हो सकता है, उससे बड़ा कोई विचार, दिशा नहीं हो सकती.
सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया. बीजेपीवालों ने राजनीतिक नौटंकी बताया. शाहरुख खान बोले, देश में थोड़ी असहिष्णुता बढ़ी है. अरुण जेटली ने पूछा, असहिष्णुता कहां बढ़ी है? नेपथ्य से आवाज आती है: बतौर सबूत फिर कुर्बानी देनी होगी? अखलाक की मौत काफी नहीं है क्या?
बिहार को क्या मिला
बिहार के लोग राजनीतिक तौर पर बेहद जागरुक माने जाते हैं, लेकिन वोट धार्मिक और जातिगत आधार पर ही देते हैं. तमाम विशेषताओं के बावजूद, राजनीतक दलों और नेताओं को ऐसा लगता है –
उन्हें कभी भी जाति और संप्रदाय के आधार पर बांटा जा सकता है.
उन्हें बिहारी और बाहरी के झगड़े में उलझाया जा सकता है.
उन्हें बीफ खाने और न खाने के नाम पर भड़काया जा सकता है.
उन्हें भड़काया जा सकता है कि उनका 5 फीसदी आरक्षण किसी और को दिया जा सकता है.
उन्हें समझाया जा सकता है कि अगर मुस्लिम हो तो कोई मुस्लिम ही बचा सकता है.
उन्हें डीएनए सैंपल देने के लिए सारे काम छोड़ कर सरपट कैंप के लिए दौड़ाया जा सकता है.
और…उन्हें ये भी बताया जा सकता है कि अगर फैसले में कोई गड़बड़ी हुई तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे.
लालू नीतीश को धन्यवाद
एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने महागठबंधन के नेताओं को शुक्रिया तक कहा: “आखिर नीतीश और लालू की क्या मजबूरी थी कि उन्होंने कांग्रेस को 40 सीटें दे दी. इसके लिए मैं उनका धन्यवाद देता हूं क्योंकि उन्होंने 40 सीटें बिना किसी हिचक के एनडीए को दे दी है. उनकी मजबूरी कुछ भी हो लेकिन फायदा हमें हुआ है.”
डीएनए से शुरू हुआ विवाद बिहारी बनाम बाहरी में बदल गया. लालू ने मोदी को ब्रह्मपिशाच तो नीतीश ने कनफुकवा बताया. नीतीश ने लोगों से कहा – वे बिहारी और बाहरी पहचानें. फिर बोले, “बाहरी को भगाएं.” तो पलट कर मोदी ने भी पूछ लिया – अगर वो बाहरी हैं तो सोनिया गांधी क्या हैं? वैसे अब चिंता की बात खत्म हो चुकी है. फिक्र करने की जरूरत नहीं हैं. पटाखे कहां फूटेंगे, मालूम होने में ज्यादा देर नहीं है. दिवाली दूर नहीं है. from http://www.ichowk.in/
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