हक मांगता कायस्थ समाज
बुद्धिबल में तेज होने के बावजूद ह्यवोट बलह्ण में कमजोर साबित हुए हैं। वोटबल में उनका पहला मुकाबला सवर्ण समुदाय की अन्य समुदायों से ही हुआ। अब सत्ता में बेहतर भागीदारी की मांग कर रहे हैं।
सुभाष चंद्र/पटना
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद जब पटना में हुए कायस्थ समागम में यह कहते हैं कि ऐसी ही एकजुटता से राजनीति में पर्याप्त भागीदारी मिलेगी, तो कोई नजरअंदाज नहीं करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जितना उन्हें भारतवासी वबिहारी होने पर गर्व है, उतना ही उन्हें चित्रांश परिवार का होने पर भी गर्व है। हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। तो बात स्वाभाविक सी होती है कि क्या आज के डिजिटल युग में भी जाति की बात करना हमारी प्राथमिकता में है? बिहार की राजनीति के संदर्भ में देखें, तो किसी प्रकार की कोई दुविधा नहीं लगती।
भाजपा ने चित्रांश यानी कायस्थ बिरादरी से रविशंकर प्रसाद, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेताओं को अपनी पार्टी में विशेष तरजीह दी हुई है। यूं तो कहा जाता है कि आबादी के सापेक्ष कायस्थों को सत्ता में उचित भागीदारी मिलती रही। सच यह है कि कायस्थ समुदाय कई कारणों से भाजपा का वोटर है। बता दें कि महामाया मंत्रिमंडल में उद्योग विभाग के मंत्री ठाकुर प्रसाद थे। आज उनके पुत्र रविशंकर प्रसाद नरेंद्र मोदी मंत्रीमंडल के महत्वपूर्ण मंत्री हैं। यशवंत सिन्हा 1977 में मुख्यमंत्री कूर्परी ठाकुर का प्रधान सचिव थे, बाद में वह चंद्रशेखर के करीबी हो गए और जनता पार्टी के रास्ते भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें बिहार में नेता, प्रतिपक्ष भी बनाया था। अटल बिहारी वाजपेई मंत्रीमंडल में वह भी महत्वपूर्ण मंत्री रहे। यह अलग बात है कि अब उनका इलाका झारखण्ड हो गया और आज उनके पुत्र जयंत सिन्हा भी वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं। एक और पत्रकार से अरबपति बने रवींद्र किशोर सिन्हा ने बिहार में सुरक्षा एजेंसी की शुरुआत की। अभी राज्यसभा सदस्य हैं।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मत है कि पढ़ाई-लिखाई में आगे रहने के बावजूद कायस्थ समुदाय यह नहीं समझ पाया कि लोकतंत्र में विद्वता से अधिक महत्वपूर्ण है वोट की ताकत। अंग्रेजी हुकूमत ने कायस्थों को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया। कायस्थ भी वकील बनने में ही अपना लक्ष्य मानते थे। वोट की ताकत को उन्होंने महत्व नहीं दिया। बिहार के संदर्भ में बात करें, तो 1952 के विधानसभा के चुनाव में उनकी सदस्य संख्या 40 थी। यह लगातार घटती गई। 2010 के विधानसभा चुनाव में घट कर 4 हो गई। यह मात्र संयोग नहीं है कि सभी के सभी भाजपा से जुड़े हुए हैं। निर्दल दिलीप वर्मा को भी भाजपा का समर्थन प्राप्त है। वोट की राजनीति में संख्या बल में कम होने के बावजूद शिक्षित वर्ग में कायस्थों का अपना महत्व रहा है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ में कायस्थ शामिल हो रहे थे।
सांसद आर.के. सिन्हा का कहना है कि जिस समाज ने देश की आजादी में प्रमुख भूमिका निभाई, देश को राजेंद्र बाबू सहित कई नेता दिए, वह समाज आज उपेक्षित है। बिहार में कायस्थ समाज की आबादी चार प्रतिशत है, जबकि एक षड्यंत्र के तहत आबादी डेढ़ परसेंट ही बताई जाती है। बिहार के कम से कम 60-70 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां कायस्थ समाज की दावेदारी बनती है। कुछ सीट ऐसे हैं, जहां हम किसी को हराने-जिताने की भूमिका में हैं।
सर्वविदित है कि बिहार के गठन में सच्चिदानंद सिन्हा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी कायस्थ थे। जयप्रकाश नारायण भी कायस्थ थे। ऐसी स्थिति में बिहार के कायस्थों के मन में राजपाट की ललक कोई चौंकाने वाली बात भी नहीं है, हालांकि जयप्रकाश नारायण राजपाट से दूर रहे। तथ्य यह था कि सवर्ण समुदाय के अन्य वर्गों ने उन्हें पीछे धकेल दिया था। वह अपनी बौद्धिक क्षमता के बल पर सवर्णों के अन्य समुदाय का मुकाबला नहीं कर सकते थे। फिर भी कृष्णवल्लभ सहाय ने अपनी चतुराई से 1963 में मुख्यमंत्री पद हासिल कर लिया था। उसे हासिल करने में उन्हें सवर्ण समुदाय के राजपूतों की मदद मिली। संयोग से उसी काल 1965- 66 मेंबिहार में भयंकर अकाल पड़ा था। उस अकाल का सामना सहाय ने किया। जयप्रकाश नारायण ने उनकी राहत कार्य की सराहना की, तो लोगों ने यह कहा कि एक कायस्थ , दूसरे कायस्थ की तारीफ कर रहा है। लेकिन उसी काल में राममनोहर लोहिया का गैर-कांग्रेसवाद बिहार में तेजी पर था और 1967 के चुनाव में उनकी हार हो गई। बिहार के संयुक्त विधायक दल ने भी बिहार की सवर्ण वाद की नीति के कारण महामाया प्रसाद सिन्हा को अपना नेता चुना और वह मुख्यमंत्री बने। यह कायस्थों का आखिरी बड़ा ओहदा था।
जदयू ने पवन वर्मा को राज्यसभा का सदस्य बना कर कायस्थों में पैठ बनाने की कोशिश जरूर की, लेकिन बिहार के कायस्थ उन्हें बाहरी (उत्तर प्रदेश) का मानते हैं। बिहार के कायस्थ शंभू शरण श्रीवास्तव ने जदयू छोड़ दिया है। जदयू के पास उनके जैसा कोई प्रवक्ता फिर नहीं हुआ। जदयू ने बिहार में विधानसभा की कायस्थ बहुल सीटों पर फोकस कर दिया है। इसका मकसद कायस्थ वोट को भाजपा से छीनकर जदयू की ओर मोड़ना है। इसके लिए कई चरण पर अभियान चलाया जाएगा। जदयू के एमएलसी डॉ. रणवीर नंदन की अगुवाई में प्रमंडलीय मुख्यालयों में लगातार बैठक और जनसंपर्क हो रहा है। अब बिहार के कायस्थ राजपाट में अपना हक मांग रहे हैं। सच इतना है कि वह खुद नहीं जीत सकते हैं, एकाध जगहों को छोड़ कर। हालांकि, करीब दर्जन क्षेत्रों उनके बल पर किसी भी दल का उम्मीदवार जीत सकता है।
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