ये लीजिए, सीएम कैंडिडेट तो बढ़ते ही जा रहे
मृगांक शेखर.नई दिल्ली।
एनडीए की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तो बहुत थे, पर उम्मीदवार कोई नहीं. अब तो ऐसा लगता है जैसे मशरूम की तरह कोने कोने से उम्मीदवार उगते चले आ रहे हैं. कुछ तो नेताओं के जोरदार खंडनों के चलते मुरझा भी गए. पहले तो ए इशारों इशारों में खुद को असली उम्मीदवार बता देते हैं, फिर अगले ही क्षण खंडन भी कर देते हैं, “मैं तो रेस में बिलकुल नहीं हूं.” जीतन राम मांझी तो उछल उछल कर इशारे कर रहे हैं – और लोगों को भी समझा रहे हैं कि वे भी इशारे को समझें. एक रैली में मांझी कहते हैं, “नीतीश कुमार लगातार यह पूछ रहे हैं, बिहार में एनडीए का चीफ मिनिस्टर कौन होगा? मैं किसी विस्तार में नहीं जाना चाहता, लेकिन पीएम मोदी ने गया, सासाराम या जहानाबाद… सभी रैलियों में एक स्पष्ट इशारा किया है. हर व्यक्ति इस इशारे को अच्छी तरह समझ रहा है – और मैंने भी इसे समझा है.” मांझी भले ही मोदी के इशारे को अपने लिए समझाएं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में अलग ही इशारा कर दिया. सासाराम की रैली में मोदी ने कहा, “देखिए राजेंद्र सिंह के पास अभी तक लोग टिकट मांगने जाते थे, हमने इनको जबरदस्ती टिकट देकर आपके पास भेजा है, अब आप समझ लीजिए…” 49 साल के राजेंद्र सिंह बीजेपी में संगठन मंत्री हैं और झारखंड मामलों के प्रभारी हैं. संगठन मंत्री का पद, असल में, आरएसएस और बीजेपी के बीच की कड़ी माना जाता है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी ए रोल निभा चुके हैं. दोनों नतीजे भी सामने हैं. साफ सुथरी छवि वाले राजेंद्र सिंह अमित शाह की उस चार सदस्यों वाली कोर कमेटी के सदस्य भी हैं जिस पर बिहार चुनाव का दारोमदार है. रोहतास के रहने वाले राजेंद्र सिंह का नाम बीजेपी द्वारा जारी 43 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही शामिल था. बीजेपी ने उन्हें दिनारा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. चर्चा है कि राजेंद्र सिंह बिहार के खट्टर हो सकते हैं. खट्टर की कहानी है कि वो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं थे – और सीधे सीएम बना दिए गए.
जैसे ही राजेंद्र सिंह का नाम उछला उसके साइड इफेक्ट नजर आने लगे. बीजेपी के विरोधी पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में ए मैसेज देने लगे कि बीजेपी का मुख्यमंत्री तो फॉरवर्ड तबके से ही होगा. इसकी काट के रूप में बीजेपी प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने एक नया नाम उछाल दिया – डॉक्टर प्रेम कुमार.
प्रेम कुमार गया शहर विधानसभा सीट से 1990 से अब तक छह बार जीत चुके हैं. प्रेम कुमार अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं. इतिहास में पीएचडी, प्रेम कुमार के पास कानून की भी डिग्री है – और पिछले 40 साल से बीजेपी में हैं. मगर बाद में शाहनवाज इस बात से मुकर गए. शाहनवाज का कहना है कि गया में तो उन्होंने सीएम नाम ही नहीं लिया.
मुख्यमंत्री पद को लेकर एक जोरदार चर्चा रामेश्वर प्रसाद चौरसिया के नाम की भी है. पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले चौरसिया को तेजतर्रार नेता माना जाता है और बीजेपी ने चौरसिया को नोखा विधानसभा सीट से टिकट दिया है. गुजरात में काफी काम कर चुके चौरसिया की भी अच्छी छवि है और इसीलिए उन्हें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी भी पसंद करते हैं. चौरसिया सबसे ज्यादा चर्चा में तब रहे जब वो रिक्शे पर बैठकर नामांकन करने पहुंचे थे.
कहने को तो एनडीए के पास बिहार में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन नीतीश कुमार के मुकाबले गठबंधन प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रहा है. सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, राधामोहन सिंह, गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, शाहनवाज हुसैन जैसे नेता जहां बीजेपी में भरे पड़े हैं, तो गठबंधन में शामिल रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी समय समय पर इकरार और इंकार का खेल खेलते रहते हैं. इन सभी में सबसे ज्यादा चर्चा में मांझी रहते हैं, खासकर, अपने बयानों को लेकर. मांझी की ओर से लेटेस्ट बाउंसर मतदाताओं को उनकी नई सलाह है – “पहले मतदान, फिर मदिरापान”.
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