बिहार हार न जाए, खंडित जनादेश की आशंका
दो चरण का चुनाव हो गया। वोटों की प्रतिशत में इजाफा हुआ। आमतौर पर माना जाता है कि वोटों में इजाफा एंटी इन्कम्बेंसी का होता है। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार के साथ ऐसा कोई फैक्टर नहीं है। जो बिहार आते-जाते हैं, चाहे वह किसी भी जात,धर्म, संप्रदाय के हों, उन्हें पता है कि नीतीश ने बिहार में काम किया है। बेहतरीन किया है। कानून-व्यवस्था दुरुस्त किया है। तो फिर एंटी इन्कम्बेंसी कैसे होगा?
हां, लालू का साथ खासकर सवर्ण को रास नहीं आ रहा है। हमला लालू पर हो रहा है, नीतीश पर नहीं। लेकिन लालू के पास यादव और मुस्लिम का वोट बैंक है। करीब 50 फीसदी के करीब। मोदी के साथ वह कहां आएगा? सवर्ण की संख्या ही कितनी बची है? जो वोटर लिस्ट में हैं भी, उनमें से एक चौथाई से अधिक बिहार से बाहर हैं। यानी मतदान नहीं करेंगे। कौन जाता है नौकरी छोड़कर ? यही तो मानसिकता है न…
भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी चुनाव की पूरी बागडोर संभाले हुए हैं। दूसरे चरण का मतदान हो रहा था और पार्टी अपना पोस्टर बदलवा रही थी। आखिर क्यों? भय की आशंका ? या अपने प्रदर्शन पर संशय? स्थानीय नेताओं को पोस्टरों पर जगह मिली। दो चरण के चुनाव हो जाने के बाद भी पार्टियां अब तक चुनावी रुझानों को ही समझने में लगी है, और यही कारण है कि इसी अनिश्चितता की स्थिति में अब आगे के तीन चरणों के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीतियों में बदलाव पर बदलाव किए जा रहे हैं। पहले पोस्टरों में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरों को प्रमुखता दी गई थी, वहीं अब पोस्टरों में सुशील मोदी, गिरिराज सिंह, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, शहनवाज हुसैन. हुकुमदेव नारायण यादव और सीपी ठाकुर जैसे स्थानीय नेताओं को जगह दी गई है।
ओवैसी की उपस्थिति को लेकर मुस्लिम यह समझ चुका है कि ओवैसी को वोट देना यानी भाजपा को लाभ। मुलायम यादव की सपा और मायावती की बसपा, बिहार में ताल ठोंक रही है, लेकिन उनकी उपस्थिति हो पाएगी, इसमें संशय है।
कल कई लोगों से बात हुई। बिहार की राजनीतिक नब्ज को अच्छी तरह से जानने वाले अग्रज पत्रकार ने घंटा भर समझाया। बारीक से बारीक बात। वर्तमान की नींव पर भविष्य की बात करें, तो यह कहा जा सकता है कि भाजपा न तो उत्साहित है, न महागठबंधन हतोत्साहित। दोनों का अपना वोट बैंक। अपने लोगों पर भरोसा। जातीय गणित की पैमाइश में कई निर्दलीय भी माहिर हैं। तीसरा मोर्चा की भूमिका में तारिक अनवर के कद को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। लालू को सरेआम भला-बुरा कहने वाले पप्पू यादव को कैसे कमजोर मान सकते हैं? वैसे भी राजनीति अनिश्चिचतताओं का खेल है। क्रिकेट की तरह। अंतिम बॉल पर मैच का परिणाम बदल जाता है। झारखंड में मधु कोड़ा एक उपमा बन चुके हैं। राह भी दिखा चुके हैं।
एक पल के लिए विचार कीजिए। एनडीए गठबंधन 105-110 सीट। महागठबंधन 100 के करीब। तो 30 सीट में से फन्ने खां कौन बनेगा? क्या बिहार झारखंड की राह चलेगा? राजनीतिक अनिश्चितता के भंवर में सियासी खरीद-फरोख्त होगी? यदि ऐसा होगा, तो सौ फीसदी बिहार हारेगा। सत्ता किसी के हाथ हो…
« विदेशी निवेशकों की भी बिहार चुनाव पर निगाह (Previous News)
(Next News) ये लीजिए, सीएम कैंडिडेट तो बढ़ते ही जा रहे »
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed