Humanity

 
 

भीड़ बनता भारत

अरुण कुमार त्रिपाठी इक्कीसवीं सदी में भारत भीड़ में बदल रहा है। उसकी नागरिकता अगर राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक धर्म, सेना के प्रति समर्पण, काल्पनिक कथाओं व अफवाहों को सत्य मानने का हठ, निरंतर शत्रुओं की पहचान और उन्हें सबक सिखाने की भावना से परिभाषित हो रही है तो स्थानीय स्तर पर वह `हम और वे’ बीच बंट रही है। भावनाओं के इस घटाटोप ने `हम भारत के लोग’ नामक उस प्रत्यय को बहुत छोटा कर दिया है जिसने अपने आपको एक संविधान दिया और अफवाहों और हिंसा से दूरRead More


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