कहानी सीवान के छोटे से गाँव रजनपुरा के एक कर्न्तिकारी युवा आशुतोष की

अक्सर हम  हीरो की तलाश किसी फ़िल्मी परदे पर करते हैं या हीरो का नाम सुनते ही चमक दमक और स्टारडम वाले सेलिब्रिटी हमें याद आ जाते हैं.हमारे आसपास ,हमारे बीच ही ऐसे तमाम नायक हैं जो शांति से , बिना किसी चमक दमक और शोर के समाज के लिए कुछ बेहतर कर रहे हैं .उनकी शख्शियत कैमरे और स्टारडम और किसी पहचान की मुहताज नहीं .अब समय आ गया है की नायकों के सम्बन्ध में हम अपनी सामन्तवादी  धारणा को बदलें .हम फ़िल्मी नायकों से इतर समाज के असल नायकों की पहचान करना भी शुरू करें.शख्शियत की इस कड़ी में हमारे साथ एक ऐसे ही नायक हैं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं और उनके प्रयासों से पूरे देश भर मे  स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नयी क्रांति  आई है .वे दवाएं जो कई बार आपको बहुत मांगे दामों में बेंच दीजाती हैं,,वे दवाएं जो ब्रांड नेम का इस्तेमाल करके लागत मूल्य से कई गुना ज्यादा कीमत पर आपको बेच दी जाती हैं.ब्रांडेड बीमारियों और ब्रांडेड दवाओं के जाल का पर्दाफाश करने   आशुतोष कुमार सिंह का योगदान उल्लेखनीय है .

यह बिहार के लिए भी गर्व की बात है की  आशुतोष कुमार सिंह का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में 25 जनवरी १९86 को बिहार प्रान्त के सिवान जिला अन्तर्गत रजनपुरा ग्राम में हुआ। शुरू से पढाई से भागने वाले आशुतोष कुछ दिनों तक गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़े । इंटर पास करने के बाद आशुतोष दिल्ली आ गए । दिल्ली में ही रहकर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिक शास्त्र में स्नातक किया .इन दिनों www.swasthbharat.in के संपादक के रूप में काम कर रहे हैं.प्रस्तुत है स्वस्थ्य भारत अभियान के जनक ,युवा उर्जा और जोशोखरोश से लैश आशुतोष कुमार सिंह से प्रभांशु ओझा बातचीत के प्रमुख अंश –

 आपके स्वस्थ भारत अभियान की शुरुआत कैसे हुई ?

स्वास्थ्य पर काम करना है, यह बात तो पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में ही मैंने तय कर ली थी। लेकिन उस समय न तो मेरी बात को कोई सुनने वाला था और न ही मेरे पास ऐसा मंच था जहां से मैं अपनी बात को कह सकूं। मैं 2005-06 की बात कर रहा हूं। लेकिन धीरे-धीरे पत्रकारिता में पहचान बनती गयी और एक दिन स्वास्थ्य को लेकर जो चिंगारी मन में थी उसे बारूद मिल गया और मेरे मन में एक धमाका हुआ और मेरा मन व्यग्र हो गया। स्वास्थ्य में व्याप्त भ्रष्टाचार ने मुझे अंदर तक हिला दिया। 22 जून 2012 का वो दिन आज भी याद है। उस दिन मैं मुंबई के सूचक अस्पताल में भर्ती अपने मित्र की पत्नी को देखने गया था। उन्होंने दवा लाने के लिए मुझे पर्ची थमा दी। दुकानदार ने आई.वी.सेट के 117 रूपये लिए, जबकि उसका होलसेल प्राइस 7 से 8 रूपये होता है। मैंने दुकानदार से कहा कि भाई कुछ कम कर दो, उसने एक न सुनी। फिर जो धमाका हुआ उसकी धमक आज पूरे देश में गुंज रही है। और मैंने ठान लिया कि अपनी पत्रकारिता को स्वास्थ्य रिपोर्टिंग में लगा दूंगा।

सुना है आपका पोर्टल स्वास्थ्य पर पहला पोर्टल है?

जी जिस कलेवर के साथ हमलोगों ने अपना पोर्टल लॉच किया है उस कलेवर व कंटेंट के लिहाज से हिन्दी में कोई भी स्वास्थ्य विषयक दूसरा वेब पोर्टल मुझे तो नहीं दिखा है। इस लिहाज से इसे आप देश-दुनिया का पहला न्यूज-व्यूज हिन्दी स्वास्थ्य पोर्टल कह सकते हैं। www.swasthbharat.in नाम से पिछले 2 अक्टूबर, 2014 को इस पोर्टल को हमलोगों ने राष्ट्र को समर्पित किया है। पिछले तीन वर्षों से लगातार स्वास्थ्य पर लिखने-पढ़ने व एक्टिविजम करने के दौरान मुझे लगा कि हमारी मीडिया स्वास्थ्य के मसले को उस रूप में जगह नहीं दे पा रही है, जिस रूप में दिया जाना चाहिए था। मेरी नज़र में देश के विकास में स्वास्थ्य का बहुत अहम् भूमिका है। यदि हमारे नागरिक स्वस्थ नहीं है तो हम विकसित राष्ट्र की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं। यहीं कारण हैं कि हमलोगों ने स्वस्थ भारत अभियान को गति प्रदान करने के लिए इस वेब पोर्टल को लॉच किया है।

ये कंट्रोल एम.एम.आर.पी क्या हैआम आदमी के लिए ये शब्द थोड़ा पेचीदा नहीं हैथोड़ा विस्तार से बता दीजिये ?

हमने जिस स्वास्थ्य आंदोलन की शुरूआत की, उसकी नींव ही महंगी दवाइयों के खिलाफ पड़ी। हमने जब शोध किया तो पता चला की दवा कंपनिया अप टू 3000 प्रतिशत तक का मुनाफा कमा रही हैं, सरकार भी अप टू 1126 प्रतिशत तक मुनाफा कमाने की बात संसद में मान चुकी है। ऐसी स्थिति में दवाइयों की बढ़ी कीमतों को कम कराना हमारा पहला लक्ष्य था। इसी को ध्यान में रख कर हमने कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम रिटेल प्राइस कैंपेन शुरू किया। क्योंकि मेरा मानना था कि सारे भ्रष्टाचार का जड़ दवाइयों की बढ़ाई गयी एमआरपी है। इस आंदोलन का असर भी दिखा। सरकार सक्रीय हुई। नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथोरिटी के कामों में तेजी आई। सैकड़ों दवा कंपनियों के खिलाफ ओवरचार्जिंग के मामले तय किए गए। नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच के समक्ष जनहित याचिका दायर किया। इस तरह से तमाम सकारात्मक गतिविधियां हुईं। इस बीच मुख्यधारा की मीडिया ने भी इस मसले को उठाना शुरू किया। इस विषय पर हमारी टीम ने दर्जनों लेख लिखे, जिसे कई पत्र-पत्रिकाओं ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। संक्षेप में कहूं तो दवाइयों कीमतों को काबू में करने हेतु यह एक जन-जागरूकता कैंपेन है।यह इस अभियान का ही फर्क है कि सरकार ने अब तक जरूरी राष्ट्रीय दावा सूची की संख्या 74 से बढाकर 400 कर दिया है.

(दृष्टि कार्यालय में  प्रभांशु ओझा  से  बातचीत  करते  आशुतोष कुमार  सिंह )

स्वस्थ्य भारत अभियान के कुछ प्रमुख कैम्पेन के बारे  में बताएं?

स्वस्थ्य भारत अभियान के तहत हमने चार प्रमुख कैंपेन लांच किये –

1-पहली कैंपेन थी कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम रिटेल प्राइज

2-दूसरी कैंपेन थी जेनेरिक मेडिसिन लाइए ,पैसा बचाइए .जिसका उद्द्शेय नागरिकों को इस सम्बन्ध में जागरूक करना था कि बीमार पड़ने पर क्या हमेशा आपको दवा की जरूरत है?अगर है तो किसी ब्रांड की नही.

3-तीसरी प्रमुख कैंपेन थी –तुलसी का पौधा लगाएं स्वास्थ्य बचाएं

4-नो योर मेडिसिन कैंपेन गांधी शांति प्रतिष्ठान में लांच किया.

5 –गावों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रत्येक गांव से कम से कम पांच स्वास्थ्य मित्रों को जोड़ने का संकल्प है.

 

जेनेरिक दवाइयों के पक्ष में आपने मुहिम चला रखी हैजेनेरिक दवा के बारें में बहुत भ्रांतियां हैं। उस पर कुछ प्रकाश डालिए?

बाजार का मूल मंत्र है लाभ कमाना। लाभ कमाने का सबसे उत्तम उपाय है, भ्रम फैलाओं, लोगों को डराओं और खूब पैसा कमाओं। फार्मा बाजार में भी यहीं हो रहा है। लोगों तक सस्ती दवाइयां पहुंच नहीं पा रही हैं अथवा पहुंचने नहीं दी जा रही हैं। पूरा का पूरा तंत्र लूटने में लगा है। खैर, मूल बात पर लौटता हूं। जब हमने जेनरिक मेडिसिन लाइए पैसा बचाइये कैंपेन शुरू किया तो हमारे मन में यहीं बात थी कि लोगों को सस्ती दवाइयां मिलें। ब्रांडेड व जेनरिक दवाइयों को लेकर हिन्दुस्तान के मरीजों को भी खूब भ्रमित किया जा रहा है। मसलन जेनरिक दवाइयां काम नहीं करती अथवा कम काम करती हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दुस्तान में वैधानिक तरीके से जो भी दवा बनती है अथवा बनाई जाती है, वह इंडियन फार्मा कॉपी यानी आईपी के मानको पर ही बनती हैं। कोई दवा पहले ‘दवा’ होती है बाद में जेनरिक अथवा ब्रांडेड। दवा बनने के बाद ही उसकी ब्रांडिंग की जाती है यानी उसकी मार्केटिंग की जाती है। मार्केटिंग के कारण जिस दवा की लागत 2 रुपये प्रति 10 टैबलेट है उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते कई गुणा ज्यादा बढ़ जाती है। फलतः दवाइयों के दाम आसमान छुने लगते हैं। ये तो हुई ब्रांड की बात। अब बात करते हैं जेनरिक की। सबसे पहले प्रश्न यही उठता है कि जेनरिक दवा क्या है? इसका सीधा-सा जवाब है, जो दवा पेटेंट फ्री है वह जेनरिक है। इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मोहन की दवा कंपनी ने वर्षों शोध कर एक नई दवा का निर्माण किया। अब उस दवा पर विशेषाधिकार मोहन की कंपनी का हुआ। इस दवा को ढूढ़ने से लेकर बनाने तक जितना खर्च होता है, उसकी बजटिंग कंपनी की ओर से किया जाता है। उसका खर्च बाजार से निकल आए इसके लिए सरकार उसे उस प्रोडक्ट का विशेषाधिकार कुछ वर्षों तक देती है। अलग-अलग देशों में यह समय सीमा अलग-अलग है। भारत में 20 तक की सीमा होती है। बाजार में आने के 20 वर्षों के बाद उस दवा के उस फार्मुले पर से शोधकर्ता कंपनी पेटेंट खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में कोई भी दूसरी फार्मा कंपनी सरकार की अनुमति से उस दवा को अपने ब्रांड नेम अथवा उस दवा के मूल साल्ट नेम के साथ बेच सकती है। जब दूसरी कंपनी उस दवा को बनाती है तो उसी दवा को समझने-समझाने के लिए जेनरिक दवा कहा जाने लगता है। इस तरह से यह स्पष्ट होता है कि जेनरिक दवा कोई अलग किस्म या प्रजाति की दवा नहीं हैं। उसमें भी मूल साल्ट यानी मूल दवा वहीं जो पहले वाली दवा में होती है। केवल दवा बनाने वाली कंपनी का नाम बदला है, दवा नहीं बदली है।

अब तक किन लोगों का आपको सहयोग रहा है?

इस अभियान को एक आंदोलन का रूप देने में लाखों-करोड़ों लोगों का योगदान किसी न किसी रूप में रहा है। लेकिन मुख्यतः जिन मित्रों व मार्गदर्शकों ने सहयोग दिया है उसमें देशपाल सिंह पंवार, ओम थानवी, अरविंद कुमार सिंह, अमित त्यागी, अफरोज आलम ‘साहिल’, आशीष कुमार ‘अंशु’, हिमांशु शेखर, संजय स्वदेश, स्वतंत्र मिश्र, अनीता गौतम, शेखर अस्तित्व, सरोज सुमन, सुनिल अग्रवाल, मनोज सिंह ‘राजपूत’, डॉ. सागर, अल्का अग्रवाल, नूसरत खत्री, डॉ. समित शर्मा, महेश झगड़े, डॉ. आर. कांत, डॉ मनीष कुमार,डॉ. सोम जी सहित सैकड़ों का नाम है, जिसकी सूची बहुत लंबी है। दरअसल, यह मसला कभी भी व्यक्तिगत नहीं रहा। यह सबका मसला है और अस्वस्थ व्यवस्था के कुचक्र में सभी फंसे हुए हैं। यह आंदोलन हम सबका है, यही इसकी ताकत भी है और जरूरत भी।

आयुर्वेद को कितना कारगर मानते हैं आप?

आयुर्वेद को पंचम वेद कहा गया है। आयुर्वेद तब भी कारगर था आज भी है और आगे भी रहेगा। आयुर्वेद हमें दीर्घायु होने की शिक्षा देता है। यदि हम आयुर्वेद के सिद्धांतों को सही तरीके अंगीकार कर लें तो हम बीमार ही नहीं पड़ेंगे।

क्या आपको लगता है भारत एक दिन स्वस्थ हो पाएगा जैसा आप चाहते हैं?

जी, जरूर हो पायेगा। स्वस्थ भारत का सपना हम सभी भारतीय देख रहे हैं, बस जरूरत है सपने को हकीकत में बदलने की। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम हर स्तर पर स्वस्थ होंगे, बस आपका संकल्प मजबूत होना चाहिए।

मीडिया रिपोर्टिंग बहुत कम हुई थी और मैंने इस विषय पर शोध करना शुरू किया और आज ‘स्वस्थ भारत अभियान’के रूप में देश व्यापी एक जन आंदोलन आपके सामने खड़ा है।

 

 

स्वस्थ्य भारत के निर्माण का सपना कैसे संभव है?

देखिए मै इसे बिडम्बना ही कहूँगा की कभी भी हमारी सरकार ने स्वास्थय को प्राइम फोकस पर नहीं रखा .और मीडिया में भी स्वास्थय को कभी भी प्राइम सब्जेक्ट के रूप में नहीं दिखाया गया.हमारा स्वस्थ्य किस प्रकृति का है इसकी चर्चा कहीं नहीं है.आप कैसे स्वस्थ्य रहें इस पर काम नहीं हो रहा है बल्कि आपको लूटा जा रहा है .क्या हम पूरी मॉडर्न चिकित्सा व्यवस्था के कोलैप्स होने का इंतज़ार कर रहे हैं?इस दिशा में अब हमें गंभीर हो जाने की जरुरत है ,हमारे डॉक्टर ,हमारी सरकार ,हमारे पत्रकार और स्वयं हम नागरिक .हमारे सम्मिलित प्रयासों से ही स्वस्थ्य भारत के सपनो को साकार किया जा सकता है.

-इस दिशा में आप किन किन प्रयासों को जरुरी मानते हैं?

सबसे पहले तो देश के सभी डॉक्टर्स से मेरी अपील है की वो खुद मानसिक रूप से स्वस्थ्य बनें और पूरी सेवा भावना  के साथ मरीजों की सेवा करें .ब्रांडेड बिमारियों और ब्रांडेड दवाओं के भय से हमें मुक्त रहने की आवश्यकता है .आज के पूंजीवादी दौर में ब्रांडेड बीमारियों बनायीं जा रही हैं.जो बिमारी दूर –दूर तक आपको नहीं है उसका भय आपके मन में बिठाकर आपकी जेब खाली की जा रही है .इस दिशा में आपको सचेत रहने की आवश्यकता है .हाल में हमने युवाओं के एक दल के साथ 14 हज़ार किलोमीटर की साइकिल यात्रा निकली जिसका उद्देश्य स्वस्थ्य के प्रति नागरिकों में जागरूकता फैलाना था .इस यात्रा का  नेतृत्व एवरेस्ट विजेता मित्र नरेंद्र सिंह ने किया .गोआ के ग्रेट आइलैंड में समुद्र तल के 5 मीटर यानि 16.4 फिट नीचे जाकर हमने साइकिल चलाई और लोगों को स्वस्थ्य तथा पर्यावरण के प्रति जागरूक किया.इसे एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में भी दर्ज कर लिया गया है.

सरकार से  कोई विशेष अपेक्षा आपकी स्वस्थ्य के क्षेत्र में सुधारों को लेकर?

अगर कोई नागरिक बीमार पड़ता है तो इससे सिर्फ उसका नुकसान नहीं होता है बल्कि इससे पूरे राष्ट्र का नुक्सान होता है .सरकार  को कैशलेस हेल्थ हेल्थ सिस्टम का विकास करना चाहिए जहाँ बच्चे के पैदा होने से लेकर उसके पच्चीस वर्ष की उम्र तक उसके स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी सरकार  उठाए.25 से 60 वर्ष के उत्पादक नागरिकों को प्रीमियम सेवाएँ दी जाएँ 60 वर्ष से मृत्योपरंत सरकार प्रीमियम भरे.स्वास्थ्य से संबंधित एक स्वतंत्र निकाय बने .जिस तरह से अलग रेल बजट आता है उसी तरह से एक अलग स्वस्थ्य बजट की भी स्थापना की जानी चाहिए.स्वस्थ्य से सम्बन्धी स्वतंत्र निकायों की स्थापना की जानी चाहिए.जिस तरह आईएस और आईपीएस अपने क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं की वहां अपराध न हों उसी तरह डॉक्टर्स  यह सुनिश्चित करें की उनके क्षेत्र में नागरिक बीमार न पड़ें और पड़ें तो उन्हें तत्काल उचित इलाज़ उपलब्ध कराया जाए.

आपने स्वास्थ्य के क्षेत्र में फैले  तमाम भ्रष्टाचारों को लगातार उजागर किया?क्या आपको दर भी लगता था कभी?या धमकानें का प्रयास किया गया हो?

बिलकुल नहीं दर किस बात.हमारा आन्दोलन इतना साधा हुआ था की किसी को भी हिम्मत नहीं हुई कि वह कॉल करके हमें धमकाए .इस दौरान हमने धैर्य और संयम रखा ,अपनी भाषा को विनम्र रखा .यही हमारी ताकत थी.कई बार अपमान सहना पड़ा और अपमान भी इस तरह का की हाथ में अगर हथियार हो तो इन्सान हिंसक भी हो जाए मगर हमने अपने आप को सम्हाले रखा.यही हमारी ताकत थी.बरसों के प्रयास को लगातार धैर्य ,संयम और  साहस की जरूरत होती है और यही किसी भी आन्दोलन की सफलता के मूलमंत्र हैं.

इस पत्रिका के पाठक सिविल सेवा परीक्षा की तयारी कर रहे हैं.तैयारी के दौरान कई बार वे असफलता के भय से घबरा जाते हैं,कई बार बहुत तनाव उनमे आ जाता है आप उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगे?

मै सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे सभी अभ्यर्थियों को यह सलाह देना चाहूँगा की वो नियमित रूप से योग करें यह आपको स्वस्थ्य और तमाम मानसिक तनावों से दूर रखेगा .बिना बेचैन और व्यग्र हुए जिस विषय की तयारी कर रहे हैं उसकी तार्किक समझ विकसित करें .अपनी मार्गदर्श स्वयं बनें.लोग कहते हैं वर्क इज वरशिप मै कहता हूँ की वर्क इज प्ले .इस भावना से किसी भी कार्य को करेंगे तो जरुर सफल होंगे .






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