जानिए सिवान के शहाबुद्दीन की साहब बनने की कहानी

sahabuddin siwanशहाबुद्दीन को विधायक बनने पर हुई थी लालू से दोस्ती, एक थप्पड़ ने बनाया नेता से बाहुबली
सिवान। मो. शहाबुद्दीन को लंबे समय तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा। लेकिन राबड़ी सरकार में 2003 में डीपी ओझा के डीजीपी बनने के साथ ही शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हो गया था। उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर कई पुराने मामले फिर से खोल दिए। पहले जिन मामलों की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा शुरु हो गई। फिर माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ। इस मामले में शहाबुद्दीन को अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा। शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई और मामला आगे बढ़Þता देख राज्य सरकार ने डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा दिया।
सत्ता के टकराव के कारण ओझा को वीआरएस भी लेना पड़ा। 2005 में जब रत्न संजय सीवान के एसपी बने, तो शहाबुद्दीन के खिलाफ एक बार फिर कार्रवाई शुरू हुई। यह समय राज्य में राष्ट्रपति शासन का था।
24 अप्रैल 2005 को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में की गई छापेमारी में भारी संख्या में आग्नेयास्त्र, अवैध हथियार, चोरी की गाड़ियां व विदेशी मुद्रा आदि बरामद किए गए। हालांकि छापेमारी से संबंधित मुकदमों में कई आरोपितों को हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। वहीं लंबे समय तक फरार रहने के बाद तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन को दिल्ली स्थित उनके निवास से पुलिस ने छह नवंबर 2005 को गिरफ्तार कर ली।
तब से वे न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। जेल में रहने के बाद भी शहाबुद्दीन को दर्जनों मामलों में साजिशकर्ता और मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में अभियुक्त बनाया गया, जिनमें तेजाब कांड में दो सगे भाइयों को तेजाब से नहलाकर मारने और इन दोनों के बड़े भाई को भी पिछले साल डीएवी मोड़ के पास गोली मार कर हत्या कराने का आरोप भी लगा है, जो तेजाबकांड का चश्मदीद गवाह भी थे।
चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक
एक बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। बिहार में कभी अपराध का बड़ा नाम रहे शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था। सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे शहाबुद्दीन ने कॉलेज के दौरान ही अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था।
डीएवी कॉलेज से राजनीति में कदम रखने वाले इस नेता ने माकपा व भाकपा (मार्क्सवादी – लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भाकपा माले के साथ उनका तीखा टकराव रहा।
सीवान में दो ही राजनीतिक धुरियां थीं तब एक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले। 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकतार्ओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे। इनकी हत्या सीवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी।
कौन हैं शहाबुद्दीन
राजद के पूर्व सांसद व विधायक रहे मो. शहाबुद्दीन की तूती आज भी बोलती है। कहा जाता है कि खासकर सीवान में कोई पत्ता भी उनके इशारे के बिना नहीं सरकता है। बहरहाल तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा पा चुके बाहुबली मो. शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में षड्यंत्र रचने, अपहरण व हत्या करने के मामले में कोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है।
बहरहाल यह वही बाहुबली शहाबुद्दीन हैं जिनकी लालू यादव की सरकार के दौरान 1990 के दौर से ही चलती रही है। समय बदल गया और बिहार की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए। यहां तक कि लालू प्रसाद बिहार की सत्ता से दूर हो गए फिर भी उनके शासनकाल को जंगलराज के उपनाम से छुटकारा नहीं मिल पाया।






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