मखाना से होगा मिथिला आत्मनिर्भर

मखाना से होगा मिथिला आत्मनिर्भर: विभय कुमार झा

बिहार कथा, मधुबनी। मिथिला की पहचान में पान के बाद मखाना आता है। मिथिला के बारे में कहा भी गया है कि पग-पग पोखर माछ, मखान ..। मिथिला देश में मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है, हमें मखाना की खेती को युद्ध स्तर पर बढ़ाना होगा जिससे विदेशी मुद्रा का अर्जन होगा और इससे मिथिला में रोजगार सृजन में काफी वृद्धि होगी। जिस प्रकार से केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण जी ने मखाना उत्पादकों के लिए राहत पैकेज का एलान किया है, इससे मिथिला को काफी लाभ होगा। यह कहना है कि युवा भाजपा नेता और स्वयंसेवी संस्था अभ्युदय के अध्यक्ष विभय कुमार झा का।

अभ्युदय के अध्यक्ष विभय कुमार झा ने कहा कि मखाना मिथिलांचल में पाए जाने वाला दुर्लभ वनस्पतियों में से एक है। भारत में मखाना उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग बिहार व उसमें से लगभग 50 प्रतिशत भाग मिथिला उत्पादन का केंद्र है, लेकिन उचित संरक्षण के अभाव में इसका विकास नहीं हो रहा है। हालांकि इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए दरभंगा में अनुसंधान केंद्र भी स्थापित है लेकिन इसका सही फायदा मखान उत्पादकों को नहीं मिल पा रहा है। विभय कुमार झा ने कहा कि सरकार ने ऐलान किया है कि गाय, भैंस, बकरी समेत सभी पशुओं का टीकाकरण किया जाएगा, ताकि उन्हें बीमारियों से बचाया जा सके। साथ ही किसानों द्वारा किए गए जाने स्थानीय उत्पादों जैसे आम, मखाना, केसर को अंतर्राष्ट्रीय ब्राण्ड बनाया जा जाएगा।वहीं, पीएम मत्स्य संपदा योजना में 20,000 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसमें समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन के लिए और 9,000 करोड़ रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के विकास में लगाया जाएगा।
विभय कुमार झा ने कहा मिथिला का मखाना का देश ही नहीं विदेशों खासकर मुस्लिम देशों में मांग अधिक है। इसका ज्यादातर उत्पादन विदेशों को जाता है। जिससे व्यापारी मालामाल व इसका उत्पादक गरीब का गरीब ही रह जाता है। मखाना उत्पादन का मिथिला क्षेत्र मखाना उत्पादन के लिए मिथिला का मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया व चंपारण जिला मुख्य है। जिसमें मधुबनी में 40, दरभंगा में 25, सहरसा में 20, कटिहार में 7, पूर्णिया में 5 व चंपारण में 3 प्रतिशत मखाना उत्पादन होता है।
विभय कुमार झा ने कहा मिथिला में इसकी खेती अभी भी पारंपरिक तरीके से होती है। मखान बोने से लेकर इसे पोखरा से निकालने व फोड़ने तक परंपरागत विधि ही अपनाई जाती है। जिस कारण इसका भरपूर उत्पादन संभव नहीं हो पा रहा है। हालांकि इसके लावा को फोड़ने के लिए मशीन बनाई गई। लेकिन, यह असफल ही रहा है। प्रसंस्करण स्थानीय विधि से प्रसंस्करण करने से अभी भी बेहतर लावा नहीं प्राप्त हो रहा है। यह काफी कठिनाइयों भरा होता है। कष्टदायक भी। जिससे वर्तमान में लावा से 30 से 35 प्रतिशत ही कॉमर्सियल लावा प्राप्त होता है। जिससे यह पेशा घाटे का सौदा साबित हो रहा है।
युवा भाजपा नेता और स्वयंसेवी संस्था अभ्युदय के अध्यक्ष विभय कुमार झा ने कहा मखाना विपणन की सुविधा नहीं रहने से जो आय मखाना उत्पादकों को मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। मिथिला का मखाना 90 देशों के लोग इंतजार करते हैं। देश ही नहीं, बल्कि, दुनिया के 100 में से 90 देशों के लोग उत्तर-पूर्वी बिहार में पैदा होने वाले माखनों को बड़े चाव से खाते हैं। दुनिया के मखाना उत्पादन में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 85 से 90 फीसदी है पर, एक सच यह भी है कि यहां का मखाना उद्योग उतना स्थापित नहीं है, जितना उसे होना चाहिए था।
बिहार में मखाना की ब्रांडिंग और क्लस्टर बनाने की घोषणा को बिहार के लिए वरदान बताते हुए विभय कुमार झा ने कहा कि इससे मखाना उद्योग में जान आएगी। किसानों के लिए भंडारन की कमी एवं मूल्यसंवर्द्धन के अवसरों की कमी को पूरा करने के लिए कृषि क्षेत्र में 1 लाख करोड़ रुपए का पैकेज किसानों के लिए संजीवनी का काम करेगा। वहीं न्यूनतम समर्थन राशि के तहत 74 हजार करोड़ रुपए किसानों की फसल की खरीद के लिए दिया जाना अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा। पीएम किसान योजना क तहत किसानों को 18 हजार 700 करोड़ रुपए हस्तानांतरित कर दिए गए हैं।






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