शहाबुद्दीन का केस सरकारी खर्च पर लडने पर पटना हाईकोर्ट ने लगाया रोडा
पटना. सीवान से राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को पटना हाईकोर्ट से झटका मिला है। पैरवी के लिए सरकारी खर्चे पर अधिवक्ता मुहैया कराने के निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया है। साथ ही निचली अदालत को अपने आदेश पर पुनर्विचार करने को कहा है।
जस्टिस विरेन्द्र कुमार की एकलपीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई की। अदालत को बताया गया कि 14 जून, 2013 और 18 जुलाई, 2013 को एडिशनल सेशंस जज फार्स्ट कम स्पेशल जज, सीवान जेल कोर्ट ने विधि सेवा प्राधिकार के तय मापदंडों को दरकिनार करते हुए एसटी नं. 88/12, 419/16 में अधिवक्ता अभय कुमार रंजन को सरकारी खर्चे पर पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन का अधिवक्ता नियुक्त किया था, जो विधिक सेवा प्राधिकार की धारा 11 का उल्लंघन है।
नियमानुसार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 ए में गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क कानून सहायता की व्यवस्था की गई है। मुफ्त कानूनी सहायता पाने के पात्र व्यक्तियों में महिलाएं और बच्चे, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य, औद्योगिक श्रमिक, बड़ी आपदाओं, हिंसा, बाढ़, सूखे, भूकंप और औद्योगिक आपदाओं के शिकार लोग, विकलांग व्यक्ति, हिरासत में रखे गए लोग, ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 50,000 रुपए से अधिक नहीं है, बेगार या अवैध मानव व्यापार के शिकार लोग आते हैं। जबकि मो. शहाबुद्दीन अधिवक्ता रखने में पूर्ण सक्षम हैं। ऐसे में सरकारी खर्चे पर अधिवक्ता उपलब्ध कराये जाने का आदेश दिया जाना सही नहीं है। अदालत को यह भी बताया गया कि पूर्व सांसद मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए तय श्रेणी में नहीं आते हैं।
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