बिहार में दो फाड़ हुई कांग्रेस, रास नहीं आ रही संघर्ष की सियासत अरविंद शर्मा.
पटना – महागठबंधन सरकार में रहते हुए महज 20 महीने के दौरान सत्ता की सियासत करने की अभ्यस्त हो चुकी कांग्रेस को बिहार में सड़क का संघर्ष रास नहीं आ रहा है। सत्ता से बेदखल होने के साथ ही मात्र दो महीने के भीतर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के मुद्दे पर सुविधा और दुविधा की राजनीति में बंट गई है। महागठबंधन की कहानी खत्म होने के बाद पिछले दो महीने के दौरान की कांग्रेस की गतिविधियां बता रही हैं कि पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है। अटूट-एकजुट रहकर जिन्हें पार्टी को आगे की लड़ाई के लिए तैयार करना है, वे ही सत्ता के दूसरे दरवाजे तलाश रहे हैं। दूसरा गुट भी तीसमार खां साबित हो रहा है। दोनों तरफ से कड़ी और बड़ी चुनौती पेश की जा रही है। इस कवायद में पार्टी पीछे और नेता आगे खड़े दिख रहे हैं।
वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जिस जदयू और राजद के सहारे मृतप्राय कांग्रेस को संजीवनी मिली थी, अब उन्हीं दोनों दलों के बीच विधायकों की निष्ठा फंसी दिख रही है। कुछ विधायक तात्कालिक लाभ देख रहे हैं तो कुछ की नजर दूरगामी लाभ पर है। सत्ता चाहने वाले विधायकों को जदयू का रास्ता नजर आ रहा है तो दूसरे गुट को राजद के सामाजिक समीकरण का लालच है।
आलाकमान की कोशिशों और वरिष्ठ नेताओं के दौरे के बावजूद समझौते के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। दोनों ओर से बयानबाजी जारी है। ऐसे हालात में अशोक चौधरी एवं सदानंद सिंह समेत कई विधायकों को दिल्ली बुलाया गया था। आलाकमान से मुलाक़ात के बाद एकजुटता के बयान जरूर दिए गए, किंतु हाव-भाव में मंशा भी साफ झलक रही है। जाहिर है, पार्टी में टूट के लिए जरूरी संख्या बल का जुगाड़ होते ही प्रदेश कांग्र्रेस का नक्शा कुछ और हो सकता है।
प्रदेश की कमान के लिए घमासान
बिहार कांग्रेस का ताजा विवाद प्रदेश अध्यक्ष को लेकर है। अशोक चौधरी को भीतर से चुनौती है। सत्ता जाते ही कांग्रेस नेताओं का धैर्य भी जवाब दे गया। अगले दिन से ही बेताबी पर्दे के बाहर…बयानबाजी शुरू। पार्टी की परवाह खत्म। व्यक्तिगत आग्रह-दुराग्रह सतह पर। कुछ नेताओं को कांग्रेस में दम घुटने लगा तो कुछ प्रदेश की कमान के लिए मचलने लगे।
2005 तक राजद के साथ थी साझेदारी
नीतीश कुमार के पहले कांग्रेस की बिहार की सत्ता में आखिरी साझीदारी 2005 तक राबड़ी देवी सरकार में थी। विधानसभा चुनाव में जदयू-राजद से गठबंधन के सहारे 27 सीटें जीतकर करीब 10 वर्षों के बाद कांग्रेस बिहार की सत्ता में लौटी थी। इसके बाद नीतीश कुमार की कैबिनेट में पार्टी के चार विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया था। सबकुछ ठीक चल रहा था कि इसी दौरान महागठबंधन बिखर गया। जागरण से साभार
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