जिसके माथे पर रहा भागलपुर दंगे में हत्या, मारकाट का कलंक, उसे पसंद है भाजपा!

जेल से निकलकर बोला भागलपुर दंगे का मुख्य आरोपी कामेश्वर यादव-बीजेपी टिकट देगी तो लड़ूंगा चुनाव
गिरधारी लाल जोशी (जनसत्ता से साभार).
जेल से रिहा होकर बाहर आते ही भागलपुर दंगा का मुख्य आरोपी कामेश्वर यादव ने कहा कि यदि भारतीय जनता पार्टी टिकट देगी तो वे चुनाव लड़ सकते है। पहले भी वे बिहार विधान सभा का चुनाव हिंदू महासभा से लड़ चुके है। सोमवार को उनकी रिहाई की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में देर शाम हो गई। यहां की विशेष केंद्रीय जेल में बंद कामेश्वर यादव जेल से बाहर आते ही पत्रकारों से बातचीत की। उनका स्वागत करने उनके समर्थकों का हुजूम उमड़ा था। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से पुलिस ने उन्हें घेर लिया और स्कॉर्ट कर उनके पैतृक आवास परबत्ती पहुंचाया। पटना उच्च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायाधीश अश्विनी कुमार सिंह ने सुनवाई के बाद 49 पन्ने का आदेश पारित किया। जिसमें मामले की तहकीकात और गवाह व केस के सूचक की गवाही सही तरीके से नहीं कराने समेत सात बिंदुओं पर गौर करते हुए कामेश्वर यादव को रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने माना कि वाकया 24 अक्टूबर 1989 का बताया जा रहा है। लेकिन मामला तीन महीने 16 रोज बाद दर्ज किया गया। और देरी की वजह भी नहीं बताई गई। पुलिस ने जांचकर आरोप पत्र दायर कर दिया। जिसमें कामेश्वर यादव आरोपी नहीं है। लेकिन 16 साल बाद सरकार की ओर से भागलपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष भारतीय दंड विधान की दफा 173 ( 8 ) के तहत एक अर्जी 25 मार्च 2006 को दाखिल की गई। जिसमें फिर से अनुसंधान करने की गुजारिश की गई। 28 जुलाई 2006 को अपील मंजूर कर नए सिरे से तहकीकात करने का आदेश दे दिया।
इस पर पुलिस ने फिर से अनुसंधान कर 30 सितंबर 2006 को अदालत में दायर किया। जिसमें कामेश्वर यादव को आरोपी बनाया। 7 अक्टूबर 2006 को अदालत ने संज्ञान लिया। और 10 जनवरी 2007 को ट्रायल प्रक्रिया के लिए सेशन जज के पास भेज दिया। सरकार की तरफ से 9 गवाह पेश किए। इनकी गवाही के बाद सेशन कोर्ट ने 6 नंवबर 2009 को कामेश्वर को दोषी ठहराया और 9 नवंबर 2009 को उम्र कैद समेत आर्थिक जुर्माना की सजा तय की। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ कामेश्वर ने पटना हाईकोर्ट में अपील दायर की। तत्कालीन जज धरणीधर झा और मौजूदा जज अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने सुनवाई की। 3 सितंबर 2015 को इन्होंने आदेश पारित किया। जिसमें दोनों जजों के फैसले में मतभेद था। न्यायमूर्ति धरणीधर झा ने कामेश्वर यादव को बरी किया तो न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने अपील खारिज कर दिया। ऐसी हालत में मामले को तीसरे जज अश्विनी कुमार सिंह के पास सुनवाई के वास्ते मुख्य न्यायाधीश ने भेजा। कई बहस और सुनवाई के बाद आि़खरकार कामेश्वर यादव के बरी होने का आदेश पटना उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने गुरुवार को पारित किया। इन्हीं के आदेश पर सोमवार (3 जुलाई) शाम वह जेल से रिहा होकर करीब 9 साल बाद बाहर आया।
दरअसल 24 अक्टूबर 1989 को रामशिला पूजन को लेकर भागलपुर में दंगा शुरू हुआ था। जो एक महीने से ज्यादा रोज चला। एक हजार से ज्यादा जानें गई। इसी दौरान कामेश्वर यादव पर असानंनपुर के मोहम्मद कयूम की हत्या कर लाश गायब करने का आरोप कयूम के पिता नसीरुद्दीन ने लगाया और थाना कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई थी। यह बात 24 अक्टूबर 1989 की है। इसी मामले में पटना उच्चन्यायालय ने उन्हें रिहा किया है।






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