केकड़ा पाल हो रहे मालामाल

आठ माह में एक किलो या इससे भी अधिक वजन का केकड़ा तैयार कर होता है जो बाजार में आसानी से 1400 रुपये में बिक जाता है
नई दिल्ली. ए. केकड़ा पालन के क्षेत्र में आये क्रांतिकारी बदलाव और बाजार में इसकी व्यापक मांग के परिणामस्वरूप देश के तटीय राज्यों के किसान एक किलो से भी अधिक वजन का केकड़ा तैयार कर उसे 1400 रुपये या उससे भी अधिक मूल्य पर बेचकर मालामाल हो रहे हैं लेकिन केकड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के कारण भारी संख्या में उनकी मौत वैज्ञानिकों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.कठोर ऊपरी कवच वाले केकड़ों में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती है, जिसका शिकार कमजोर कवच वाले केकड़े होते हैं. इस वजह से लगभग 50 प्रतिशत केकड़ों की मौत हो जाती है. वैज्ञानिक प्रचलित केकड़ा पालन विधि को बदल कर राक विधि से इसका पालन करना चाहते हैं. इस विधि से चीन में केकड़ों का पालन किया जाता है और यह काफी हद तक सफल भी रहा है. राजीव गांधी जल कृषि केन्द्र (आरजीसीए) के सहायक परियोजना प्रबंधक जी के दिनकरन ने बताया कि चीन में केकड़ा पालन विधि की जानकारी है लेकिन आंख मूंदकर किसी तकनीक को नहीं अपनाया जाता जा सकता. भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ही किसी तकनीक को अपनाया जा सकता है. कीचड़ केकड़ा प्रजाति की विदेशी बाजार में बढ़ रही मांग और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन से संबंधित वैज्ञानिकों ने हाल के कुछ वर्षों में इस पर व्यापक अनुसंधान किया है, जिसके कारण तटीय राज्यों में इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है. डॉ़ दिनकरन ने बताया कि हल्के हरे रंग वाले सिल्ला सेरेटा अर्थात कीचड़ केकड़ा का सही तकनीक से पालन और देखरेख करने वाले किसान आठ माह में एक किलो या इससे भी अधिक वजन का केकड़ा तैयार कर लेते हैं, जो बाजार में आसानी से 1400 रुपये में बिक जाता है
किसानों को मिलता है अच्छा दाम
डा. दिनकरन ने बताया कि सिल्ला सेरेटा वैज्ञानिक नाम वाले इस केकड़े के पालन के लिए आठ माह का समय उपयुक्त है और इस दौरान हर केकड़े का वजन एक किलो तो नहीं होता है लेकिन औसत वजन 600 से 800 ग्राम तक हो जाता है. किसानों को इसका 1100 से 1200 रुपये प्रति किलो दाम मिल जाता है. सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, मलेशिया और चीन के बाजारों में केकड़ों की भारी मांग है और भारत इन देशों को इसका निर्यात करता है. सिल्ला सेरेटा किस्म का केकड़े का पालन खारे पानी में ही किया जाता है और तमिलनाडु,आन्ध्र प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, महाराष्ट्र, और गोवा के किसान इसका व्यावसायिक उत्पादन कर रहे हैं. आरजीसीए की ओर से इन राज्यों के किसानों को केकड़ा पालन के लिए नन्हें केकड़े उपलब्ध कराये जाते हैं. विदेशों में जब त्योहार का अवसर होता है, उस दौरान केकड़ों की मांग और बढ़ जाती है और किसान मनमानी कीमत पाने में सफल होते हैं.
एक हेक्टेयर में 5000 केकड़ों का पालन
डा. दिनाकन ने बताया कि एक हेक्टेयर के तालाब में 5000 केकड़ों का पालन किया जाता है और आठ माह के बाद इससे किसानों को तीन से चार लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. यदि किसानों के पास पहले से अपना तालाब और मानव संसाधन है तो वे इससे काफी अधिक आय अर्जित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि केकड़ों का वजन बढ़ाने के लालच में आठ माह के बाद भी इसका पालन नुकसानदेह हो सकता है.
प्रजनन हेचरी में
केकड़ों का प्रजनन हेचरी में होता है और उसके अतिसूक्ष्म बच्चों का पालन नर्सरी में किया जाता है. करीब 30 से 40 दिनों तक नर्सरी में पालन के बाद इसे किसानों को उपलब्ध कराया जाता है. किसानों को केकड़े के बच्चे उनके आकार के अनुसार 15 से 23 रुपये प्रति की दर से मिलते हैं. केकड़ों को सुबह और शाम उनके आकार के अनुसार खाना दिया जाता है. सस्ती और स्वस्थ छोटी मछली को उसका अच्छा आहार माना जाता है.






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