कांशीराम के कर्मठ सिपाही दिलबाग सिंह को याद करने दिल्ली में जुटे कुछ बहुत पुराने सहयोगी

दिवंगत दिलबाग सिंह जी को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि
राम प्रसाद मेहरा. नई दिल्ली. बसपा के संस्थापक साहेब कांशीराम द्वारा शुरू किए मूवमेंट के दबंग आवाज के सिपाही दिवंगत दिलबाग सिंह को दिल्ली के त्रिलोकपुरी के अम्बेडकर पार्क में गत 11 जून को दोपहर 3 से सायं 7 बजे उनके परिजनों एवं शुभ-चिंतकों द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई. दिलबाग सिंह का देहावसान गत 31 मई, 2017 (बुधवार) को हो गया था. श्रद्धांजलि कार्यक्रम का शुभारम्भ बौद्ध भिक्षुणी पूर्णिमा द्वारा बौद्ध रीति से कराया गया, जिसमें सभी उपस्थित परिजनों एवं शुभ-चिंतकों ने सबसे पहले बुद्ध वन्दना की। बुद्ध वन्दना के बाद पूर्णिमा जी ने अपने विचार रखते हुए दिलबाग सिंह के परिजनों को सांत्वना देते हुए कहा की मनुष्य का यह जीवन-चक्र है, इसे कोई नहीं रोक सकता। जिसने भी इस पृथ्वी पर जन्म लिया है, उसने एक-न-एक दिन जाना है, हमें भी जाना है। इसलिए हमें कुदरत से जो जीवन मिला है, उसमें एक-दूसरे के साथ अच्छा व्यावहारिक करुणा, दया व प्रेम का जीवन बिताएं। इस कार्यक्रम के आयोजन की पहल दिलबाग सिंह की इच्छानुसार उनके परिजनों के अलावा उनके घनिष्ट सहयोगी रहे कालीचरण आर्य, आर.एस.गिल, श्री रामप्रसाद मेहरा, रूपचंद गांगिया, होशियार सिंह, श्री विनोद कुमार, अली शेर शाह एवं श्री अरविन्द कुमार जी ने की।
श्रद्धांजलि सभा में दिलबाग सिंह जी के घनिष्ट साथियों ने उनके सम्बन्ध में विचार रखे उनमें श्री कालीचरण आर्य, श्री राजकुमार, श्री विनोद कुमार, आर.एस.गिल, वाल्मीकि समाज के जाने-माने नेता श्री मोहर सिंह, श्री हेमंत गांगिया, श्री पूरणमल बैरवा, श्री राजवीर प्रजापति, अलवर राजस्थान से श्री रूडाराम, लखनऊ उ.प्र. से श्री सुदर्शन राम, रेलवे से रिटायर्ड अधिकारी श्री आर.बी.प्रसाद, बागपत उ.प्र. से श्री मांगेराम, गुडगाँव हरियाणा से श्री होशियार सिंह, दिल्ली से श्री अली शेर शाह, बरेली उ.प्र. से श्री गोपाल बाबू बौद्ध, दिल्ली से श्री अजीत गौतम, श्री खेमचंद आर्य, श्री सुनील बौद्ध, श्री शिवदास पारखी, श्री सुरेश जैना, श्री एस.पी.सिंह आदि प्रमुख थे।
दिलबाग सिंह जी के भाई श्री अतर सिंह, उनकी पुत्री राज व पुत्र चेतन ने भी अपने विचार रखे। चेतन ने श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित गणमान्य महानुभाओं को आश्वस्त करते हुए कहा कि मैं अपने दिवंगत पिता जी की बात को आगे बढ़ाने में उनके विचारों को पूरी तरह आत्मसात करूँगा।
कार्यक्रम में मयूर विहार की नगर पार्षद श्रीमती किरण वैद्य, श्री महावीर सिंह सूद, श्री एस.एल.खैरालिया, श्री रणजीत सिंह, मास्टर सुरेश, एडवोकेट श्री रामकुमार संतोषी, श्री बाबूलाल सरकनिया, श्री रामचरण गुजराती, श्री आर.के. पाषाण, श्री सुरेन्द्र कुमार गौतम, श्री छज्जूराम, श्री श्यामलाल, श्री जितेन्द्र, श्री चंद्रपाल, श्री कल्लीमल गौतम, श्री राजवीर, श्री शम्मी, मास्टर बृजमोहन आदि भी मौजूद रहे। बहुत से साथी समयाभाव के कारण नहीं पहुँच पाये। कार्यक्रम का संचालन श्री रूपचन्द गांगिया जी ने किया एवं सभी आगन्तुक महानुभावों का धन्यवाद श्री रामप्रसाद मेहरा जी ने किया।
कार्यक्रम में दिवंगत श्री दिलबाग सिंह जी की तीनों पुत्रियाँ- ऊषा, रेखा व राज, दामाद श्री नंदकिशोर व श्री नरेश तथा नवासे श्री विपिन, श्री मोहित व नवासी कु.प्रियंका उर्फ कोमल पूरे परिवार सहित रेवाड़ी (हरियाणा) से पहुंचे तथा दिल्ली से चेतन के मामा श्री हवासिंह सौदा भी मौजूद रहे। दिलबाग सिंह जी के पुत्र श्री चेतन व श्री चेतन की पत्नी श्रीमती शोभा, पुत्र दक्ष, पुत्री रितु, आकांक्षा, संध्या तथा दिलबाग सिंह जी का पौत्र आशीष उर्फ लुंजर जो कई साल पहले गुजर चुके पुत्र नवीन के पुत्र हैं। दिलबाग सिंह जी के भाई श्री अतर सिंह जी सहित अन्य सभी परिजन भी मौजूद रहे। इस श्रद्धांजलि सभा को सफल बनाने में उनकी बस्ती के युवाओं में श्री जितेन्द्र, श्री रितेश, श्री प्रदीप, श्री जोगी, श्री मन्नू, श्री बंटी व बुजर्गों में श्री कमलेश जी ने बढ़-चढ़कर भाग लिया एवं सहयोग किया। श्री गुलशन का भी सराहनीय योगदान रहा। श्रद्धांजलि सभा के बाद रात्रि को 10 बजे से पारंपरिक एक सत्संग कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें दिलबाग सिंह जी के परिजन, रिश्तेदार एवं बस्ती के सभी लोग शामिल हुए।
कार्यक्रम में शुभ-चिंतकों द्वारा भावभीनी श्रद्धांजलि देने के बाद उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करने के अलावा दिलबाग सिंह जी का साहेब कांशीराम जी के मूवमेंट में जो अथाह योगदान रहा उसके बारे में विस्तार से जिक्र करते हुए अपने-अपने विचार रखे। उनके बारे में बताया गया कि उन्होंने अपने घर-परिवार पर ध्यान देने की बजाए साहेब कांशीराम जी द्वारा चलाए जा रहे महापुरुषों के मूवमेंट को खड़ा करने में ही ज्यादा समय लगाया। दिल्ली में साहेब कांशीराम जी का कोई भी कार्यक्रम लगा हो, चाहे कोई सभा-सम्मलेन, धरना-प्रदर्शन, रैली हो उसमें वे बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। कार्यक्रमों को सफल बनाने में अपने क्षेत्र के लोगों को शामिल करना हो या दिल्ली के बाहर से आये हुए कार्यकर्ताओं के ठहरने व भोजन-पानी की व्यवस्था करने की बात हो तो वे पूरी तरह से जुट जाते थे।
दिलबाग सिंह जी से साहेब कांशीराम जी का भी इतना लगाव था कि जब दिल्ली में 100 विभिन्न स्थानीय कालोनियों में साहेब द्वारा अपने हाथों से झंडा रोहण का कार्यक्रम चला तो त्रिलोकपुरी में दिलबाग सिंह जी के घर पर भी नीला झंडा खुद अपने हाथों से फहराकर गए, वह झंडे का पोल अभी भी सुरक्षित है। अपनी नौकरी की परवाह किए बिना जब वी.पी.सिंह की सरकार के दौरान संसद भवन के सामने बोट-क्लब पर मण्डल आयोग लागू कराने के समर्थन में 40 दिन का धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम चला तो उसमें अपने क्षेत्र के लोगों को शामिल कराकर जोर-शोर से भाग लिया। यही नहीं, जब 1989 में लोकसभा के चुनाव हुए तो दिलबाग सिंह जी की ही अपील पर कांग्रेस के एच.के.एल. भगत के सामने साहेब कांशीराम जी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिसमें उन्हें उस समय 84,000 वोट मिले। साहेब कांशीराम जी के मूवमेंट में काम करने वाला हर कोई बड़ा कार्यकर्ता उनसे पूरी तरह परिचित रहा। दिलबाग सिंह जी खुले दिल वाले दबंग कार्यकर्ताओं में से एक थे।
श्रद्धांजलि सभा में वाल्मीकि समाज के जाने-माने नेता श्री मोहर सिंह जी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि मेरी यह तमन्ना अधूरी रह गई कि मैं दिलबाग सिंह जी से नहीं मिल पाया। मुझे जानकारी मिली थी कि हमारे समाज में वे एक ऐसी साफ-सुथरी ईमानदार छवि वाले जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य किए हैं, जिनसे मुझे जरूर मिलना चाहिए था। मुझे दु:ख है कि मैं उनसे नहीं मिल पाया। लेकिन जब मुझे पता चला कि वे गुजर गए हैं, 11 जून को उनके साथियों ने उनके घर पर एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम रखा है, उसमें मुझे जरूर पहुँचकर उन्हें नमन करना चाहिए और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करनी चाहिए। जब मैंने यहाँ आकर उनके साधारण से घर के हुलिए को देखा तो इसमें अधिक कहने कि जरूरत नहीं है कि वे किस व्यक्तित्व वाले कार्यकर्ता रहे होंगे। साफ दिखता है कि वे एक स्वाभिमानी और जबरदस्त ईमानदार छवि वाले व्यक्ति रहे हैं। मैं जानता हूँ कि स्वाभिमानी और ईमानदार व्यक्तित्व वाले लोग किसी के आगे भिखारी की तरह हाथ नहीं फैलाते और न ही अपने ऊसूलों से समझौता करके झुकते हैं। यही कारण रहा कि अपने जीवन में बहुत संघर्षशील होने के कारण उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी हुई, जो कि कितनी बुरी बात है। मैं समाज के ऐसे संत छवि वाले व्यक्ति को बार-बार नमन करता हूँ और उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जो आप साथियों ने उन्हें सम्मानित रूप में श्रद्धांजलि देने हेतु यह कार्यक्रम रखा।
श्रद्धांजलि कार्यक्रम के समापन पर उपस्थित सभी महानुभावों का धन्यवाद करते हुए श्री रामप्रसाद मेहरा जी ने कहा कि जब हमारा कोई साथी गुजर जाता है, वह इस दुनिया में नहीं रहता है तो ऐसा नहीं हो कि हम उसके परिजनों को अकेला छोड़ दें। उन्हें केवल उन्हीं के परिजन ही याद करें, सम्मान दें, बल्कि हम सभी उनके करीब रहे साथियों का भी उतना ही ़फर्ज बनता है कि हम सब मिलकर उन्हें और उनके किए कार्यों को भी सम्मान दें, जिससे कि आने वाली पीढ़ियों में भी एक तस्वीर बने तथा आदर्श स्थापित हो कि जो समाज कार्यों के प्रति उनकी अच्छी सोच रही उसे आगे बढ़ाया जाए। इससे उनके परिजन, रिश्ते-नातों, सहयोगी रहे साथियों तथा आने वाली पीढ़ियों का भी उनकी जैसी अच्छी सोच के प्रति कार्य करने का हौंसला बढ़े।
कार्यक्रम समापन से पूर्व सभी आगन्तुक महानुभावों के लिए चाय, पानी, ठंडाई एवं प्रसाद के रूप में हलवा भी वितरण किया।
श्री दिलबाग सिंह जी की पत्नी श्रीमती सुमित्रा देवी का 8 साल पहले 4 दिसम्बर 2008 को कैंसर बीमारी के कारण देहांत हो गया था, जिसके कारण वे काफी टूट चुके थे, लेकिन उन्होंने जीवन में कभी हार नहीं मानी। वे साहेब कांशीराम जी के सच्चे सिपाही की तरह सदा उनके मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करते रहे। वे साहेब कांशीराम जी से 1982 में मिले, और तभी से उनके द्वारा शुरू महापुरुषों के मूवमेंट में समर्पित कार्यकर्ता की तरह ही कार्य किया। उन्होंने समाज हित में अपनी सरकारी नौकरी की भी कभी परवाह नहीं की। वे अपनी नौकरी से मिलने वाले वेतन के अधिकतर रुपये घर खर्च के बाद सारे कार्यकर्ताओं व इधर-उधर कार्यक्रमों पर ही खर्च कर देते रहे। उनसे कोई कहता भी था कि आप अपने घर पर भी ध्यान दो, तो वे सीधे जवाब देते थे कि-”हम साहेब कांशीराम जी के साथ मिलकर इतना बड़ा घर बना तो रहे हैं, वो घर बन जायेगा तो मेरा ये ईंटों का घर भी बन जाएगा। पहले वो घर (समाज की ताकत वाला घर) बनना चाहिए बाद में मेरा ये घर (ईंटों वाला घर)।” उनका जन्म वाल्मीकि समाज में हुआ। हर जाति-बिरादरी व हर धर्म के कार्यकर्ता व आम लोग उनसे बहुत लगाव रखते थे। साहेब कांशीराम जी के रहते मूवमेंट का भी यही विशेष गुण था कि उनके साथ कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने वाले कभी भी आपस में न सामने और न ही पीठ पीछे कोई भेदभाव करते थे, न भेदभाव रखते थे। साहेब कांशीराम जी स्वाभिमानी व ईमानदार छवि वाले कर्मठ कार्यकर्ताओं से अधिक प्रेम करते थे न कि चापलूसी व चमचागीरी करने वालों से। इसी से प्रभावित होकर हर कोई अच्छी सोच वाले लोग उनके साथ जुड़कर काम करना पसन्द करते थे।
साहेब कांशीराम जी के गुजरने के बाद दिलबाग सिंह जी उन्हें बहुत याद करते थे। वे बोलते थे कि-”आज मैं दो साल से बीमार हूँ, एक साल से तो कहीं जाने की हिम्मत भी नहीं रही है। ऐसी हालत में मैं साहेब को अधिक दिन दिखाई नहीं देता तो वे किसी न किसी साथी से मेरे बारे में जरूर जानकारी ले लेते, या मैं अधिक दिनों में उनके पास मिलने जाता तो वे मुझे जरूर पूछते कि दिलबाग कहाँ गायब हो गया। लेकिन आज उनके मूवमेंट व दल पर ऐसे मतलबी और अन्धे लोग कब्ज़ा करके बैठ गए हैं कि उन्हें अपने चापलूस और चमचों के सिवाय कुछ नहीं दिखता है।” दिलबाग सिंह जी पिछले दो साल से गंभीर बीमारी से झूझते हुए 31 मई 2017 को इस दुनिया से चल बसे। उनके पीछे उनकी तीन पुत्रियाँ ऊषा, रेखा, राज, उनका एक पुत्र श्री चेतन व एक पौत्र आशीष उ़र्फ लुन्जर, जो उनके दिवंगत बड़े पुत्र नवीन का पुत्र है। दिलबाग सिंह जी की बीमारी के दौरान उनके पुत्र श्री चेतन, श्री चेतन की पत्नी श्रीमती शोभा व उनके सभी बच्चों के साथ-साथ पौत्र आशीष उर्फ लुन्जर ने अच्छी सेवा की






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