जेल के ताले टूट गए, सरकार के साहेब छूट गए

नई दिल्ली.शहाबुद्दीन शनिवार को जेल से रिहा हो गए। दो सगे भाई समेत तकरीबन 2 दर्जन से ज्यादा की हत्या के आरोप में 11 वर्षो से शहाबुद्दीन जेल में बंद थे। पटना हाई कोर्ट से बुधवार को जमानत मिलने के बाद वो आज रिहा हो गए। बाहुबली शहाबुद्दीन को रिसीव करने के लिए बड़ी संख्या में लोग जेल के बाहर खड़ा थे। ये लोग अपने नेता के पक्ष में नारा लगाते हुए कहा कि जेल के ताले टबट गए, सरकार के साहेब छूठ गए।

एक थप्पड़ ने बनाया शहाबुद्दीन को नेता से बाहुबली
एक समय राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन अपने समर्थकों व विरोधियों के बीच रॉबिनहुड के रूप में जाने जाते थे। तब सीवान में कानून का राज नहीं बल्कि शहाबुद्दीन का शासन चलता था। आपको बताते चलें कि 15 मार्च 2001 में ही पुलिस जब राजद के एक नेता के खिलाफ एक वारंट पर गिरफ्तारी करने दूसरे दिन दारोगा राय कॉलेज में पहुंची तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था। उनके सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी। इसके बाद बिहार पुलिस शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की कोशिश में उनके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की, लेकिन अंजाम बेहद ही दुखद रहा था। शहाबुद्दीन समर्थक व पुलिस के बीच करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में आठ ग्रामीण मारे गए थे। इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था। तभी से शहाबुद्दीन की गिनती सीवान की नहीं बल्कि प्रदेश व देश स्तर पर भी एक राजनेता से इतर बाहुबली के रूप में होने लगी। हालांकि इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था। यह अलग बात है कि तत्कालीन डीएम सीके अनिल व एसपी रत्न संजय ने 2005 के अप्रैल में शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के शिकंजे में कस दिया था।

मुसलमानों के साथ-साथ अन्य वोटरों पर है पकड़
मुसलमान वोटरों पर प्रभाव की वजह से शहाबुद्दीन की तूती बोलती है। मुसलमान वोटरों के अलावा अन्य वोटरों में शहाबुद्दीन की पकड़ है। जीरादेई विधानसभा सीट से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर शहाबुद्दीन विधायक बने। 2001 में 16 मार्च वह तारीख है जब शहाबुद्दीन ने राजद नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अफसर को थप्पड़ मारा था। इस घटना ने बिहार पुलिस को झकझोर कर रख दिया था।

प्रमुख आपराधिक मामले
शहाबुद्दीन पर कानून के लंबे हाथ पहुंचने में 22 साल लगे। 11 मई 1985 को उन पर पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। आठ मई को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 10 मई को 2007 को शहाबुद्दीन 40 के हुए तो उन पर मुकदमों की संख्या भी 40 हो गई। इस अवधि में वे सीवान में पहले साहब, फिर साहेब और लोकसभा में डॉक्टर शहाबुद्दीन के नाम से जाने जाते रहे। 1990 में जब शहाबुद्दीन विधायक चुने गए थे, तब तक उन पर दर्जन भर मुकदमे दर्ज हो चुके थे। इनमें तीन हत्या के मामले शामिल थे।

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