जब शहाबुद्दीन के कहने पर दो भाइयों को नहलाया गया था तेजाब से!

mohammad_shabuddin_siwan ex MPसिवान का तेजाब हत्याकांड : तेजाब हमले का बदला तेजाब से कुछ इसी तर्ज पर है अपराध क यह दर्दनाक कहानी
राजेश कुमार राजू, सिवान।
करीब 11 वर्ष पूर्व व्यवसाई चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदाबाबू के दो पुत्रों के अपहरण एवं हत्या से जुडेÞ बहुचर्चित तेजाब कांड में पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन की संलिप्तता पर विशेष अदालत का फैसला बुधवार को आने वाला है। इस मामले में अभियोजन और बचाव की दलीलों को सुनने और गवाहों के परीक्षण-प्रतिपरीक्षण के बाद विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश अजय कुमार श्रीवास्तव ने फैसले के लिए बुधवार का दिन तय किया है। फैसले को लेकर पूरे सिवान में उत्सुकता का माहौल है। व्यवसाई चंदा बाबू के गौशाला रोड में निमार्णाधीन मकान के विवाद के निपटारे को लेकर 16 अगस्त 2004 को पंचायती के दौरान शरारती तत्वों के आ जाने के कारण मारपीट शुरू हो गई और गृहस्वामी के परिजनों को आत्मरक्षार्थ घर में रखे तेजाब का प्रयोग कर अपनी जान बचानी पड़ी थी । इस दौरान तेजाब फेंकने से कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। इस घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप उसी दिन व्यवसाई के दो पुत्रों गिरीश (24) एवं सतीश (18) का शहर के दो भिन्न दुकानों से अपहरण कर लिया गया था। इस मामले में अपहृतों की मां कलावती देवी के बयान पर दो नामजदों नागेंद्र तिवारी और मदन शर्मा के साथ चार-पांच अज्ञातों के विरुद्ध मुफस्सिल

चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदाबाबू

चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदाबाबू

थाना में विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी कांड सं.131/04 दर्ज की गई। विशेष अदालत द्वारा आरोपों के गठन के पश्चात इस मामले का विचारण सत्रवाद 158/10 के अंतर्गत प्रारंभ हुआ। विचारण के दौरान 6 जून 2011 को इस घटनाक्रम में उस समय महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब 2004 में अपहृत गिरीश व सतीश के बड़े भाई राजीव रौशन ने चश्मदीद गवाह की हैसियत से विशेष अदालत में अपना बयान दर्ज कराया। उसने अपने बयान में खुलासा किया कि अपहरण उसके दो भाइयों का ही नहीं बल्कि उसका (राजीव रौशन) भी किया गया था। उसके दोनों भाइयों की हत्या उसकी आंखों के सामने पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में शाम के धुंधलके में तेजाब से नहलाकर की गई थी। हालांकि घटना के वक्त मो.शहाबुद्दीन सिवान मंडल कारा में बंद थे। लेकिन राजीव रौशन ने दावा किया था कि उसके दोनों भाइयों की हत्या उनकी उपस्थिति में ही की गई। चश्मदीद ने यह भी बयान दिया कि वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में लुक छिपकर अपना गुजर-बसर कर रहा था। राजीव रौशन के इस बयान के आलोक में तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने मामले में अपहरण के अलावे हत्या और षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का निवेदन विशेष अदालत से किया। लेकिन तत्कालीन विशेष सत्र न्यायाधीश एसके पाण्डेय की

गिरीश (24) एवं सतीश (18)

गिरीश (24) एवं सतीश (18)

अदालत ने विलंब से किए गए उक्त निवेदन को अनुचित और विचारण को बाधित करने वाला बताकर अस्वीकृत कर दिया। बाद में पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर विशेष अदालत में एक मई 2014 को पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के विरुद्ध हत्या और षड्यंत्र को लेकर नए आरोपों का गठन भारतीय दंड संहिता की धारा 302 एवं 120 बी व 201 के अंतर्गत किया गया। नए सिरे से आरोप गठन के बाद पुन: विचारण आरंभ हुआ। इस क्रम में चश्मदीद राजीव रौशन का पुन: साक्ष्य होना था, तभी उसकी हत्या 16 जून 14 को सिवान में डीएवी मोड़ पर ओवरब्रिज के पास गोली मारकर कर दी गई। इस मामले में राजींव रौशन के पिता चन्द्रकेश्वर प्रसाद के बयान पर शहाबुद्दीन के अलावे उनके पुत्र ओसामा के विरुद्ध नगर थाना में प्राथमिकी नगर थाने में कांड संख्या 220/14 के रूप में दर्ज की गई। इस मामले में जमानत का आवेदन उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। अब फैसला जो भी आए, दोषी जो भी हो, पर 11 साल में अदालती कार्यवाहीं में ऐसे पेंच खेलें गए हैं कि तेजाब कांड की हकीकत रहस्य बन गई है।
अब तक विशेष अदालत के फैसले
8 मई 2007 : तत्कालीन विशेष सत्र न्यायाधीश ज्ञानेश्वर श्रीवास्तव की अदालत को छोटेलाल गुप्ता अपहरण कांड (सत्रवाद 67/04) में मो.शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा दी।
30 अगस्त 2007 : वर्ष 1996 में पुलिस कप्तान एसके सिंघल पर गोली चलाने के मामले (सत्रवाद 320/01) में दस वर्ष की सजा। इस मामले में शहाबुद्दीन के अंगरक्षक हवलदार जहांगीर खां व सिपाही खालिद खां को भी बराबर सजा मिली थी।
26 सितंबर 2007 : विशेष सत्र न्यायाधीश ज्ञानेश्वर श्रीवास्तव की अदालत से प्रतापपुर में छापेमारी के दौरान प्रतिबंधित विदेशी हथियार मिलने के मामले (सत्रवाद 18/02) में दस साल के सश्रम कारावास की सजा।

इस आरोपों में बरी हुए
26 सितंबर 2008 : आंदर थाना के दारोगा संदेश बैठा पर कातिलाना हमला कर हत्या के एक आरोपी मुन्ना साईं को छुड़ाने के मामले (सत्रवाद 99/97) में साक्ष्य के अभाव के आधार पर उन्हें रिहा किया गया।






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