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इसलिए है रैदास को और शिद्दत से पढ़ने, समझने की जरूरत

सुभाषचंद्र कुशवाहा रैदास जयंती पर उन्हें और शिद्दत से पढ़ने, समझने की जरूरत है। उन्हें “रविदास” कहने के कुचक्र से भी बचना है। संत रैदास का नाम अपने लाभ- हानि के लिए लेते हुए, उन्हें दैवीय चमत्कारों में उलझा कर वर्णवादी कर्मकांडों में समाहित कर लेने का कुचक्र, इस धरती पर पसरे बहुजन विरोधी अमानवीय संस्कृति का मूल है. रैदास प्रिय हैं तो ऊँच-नीच, वर्णवाद का निषेध हो, उसके लिए संघर्ष हो अन्यथा किसी तप, तपस्या, पूजा -पाठ से रैदास का क्या काम ? मध्यकालीन भारतीय संत परम्परा, अकर्मण संस्कृतिRead More


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