Print Media

 
 

अखबार मरेंगे तो लोकतंत्र बचेगा?

अरुण कुमार त्रिपाठी हम गाजियाबाद की पत्रकारों की एक सोसायटी में रहते हैं। वहां कई बड़े संपादकों और पत्रकारों(अपन के अलावा) के आवास हैं। इस सोसायटी में एक बड़े पत्र प्रतिष्ठान के ही पूर्व कर्मचारी अखबार सप्लाई करते हैं। वे बताते हैं कि कोरोना से पहले लोग तीन- तीन अखबार लेते थे। अब कुछ ने अखबार एकदम बंद कर दिया है और कुछ ने घर में लड़ाई झगड़े के बाद एक अखबार पर समझौता किया है। एक दिन पहले एक बड़े अखबार के बड़े पत्रकार ने बताया कि उनका वेतन एकRead More


ज्यादा बुरा कौन? फेक वेबसाइट्स या चैनल-अखबार?

बेहतर क्या? बल्कि ज्यादा बुरा कौन? फेक वेबसाइट्स या चैनल-अखबार? बहुजनों, एससी-एसटी-ओबीसी-माइनॉरिटी के लिए क्या फेक न्यूज और क्या असली न्यूज. जैसे फेक वेब साइट वैसे ही चैनल और अखबार. दोनों ब्राह्मण-बनियों के कंट्रोल में हैं. फेक न्यूज साइटों से ज्यादा नुकसान तो चैनल और अखबार करते हैं जो दावा करते हैं कि उनकी खबरें सही होती हैं. मंडल कमीशन के खिलाफ राममंदिर का पूरा आंदोलन फर्जी साइट्स ने नहीं, अखबारों और चैनलों ने चलाया. आरक्षण के खिलाफ माहौल अखबार और चैनल बनाते हैं. दंगे चैनल और अखबार कराते हैं.Read More


हिंदी अखबारों का ये कैसा दौर

संजय कुमार सिंह मैं कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक दि टेलीग्राफ का फैन हूं। शुरू से। भाजपा सांसद एमजे अकबर इसके संस्थापक संपादक हैं और मैं स्थापना के समय से पढ़ रहा हूं। हो कांग्रेस होते हुए भाजपा में पहुंचे हैं। दिल्ली आने के बाद यह अखबार नहीं मिलता था पर जब भी मौका मिला पुरानी फाइलें भी पढ़ता रहा। इधर कुछ साल से नेट पर मिलने लगा है तो मैं और कुछ करूं या नहीं टेलीग्राफ जरूर पढ़ता हूं। अब नेट (डेस्क टॉप कंप्यूटर पर) पढ़ने की ऐसी आदत पड़Read More


Share
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com