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गहरे मंथन का होगा यह दशक

गहरे मंथन का होगा अगला दशक अरुण कुमार त्रिपाठी इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के समाप्त होने के साथ भारत और बाकी दुनिया में बहुसंख्यावाद, नए किस्म के धर्म आधारित राष्ट्रवाद और अमेरिका चीन व रूस से बीच उभरते शीतयुद्ध के कारण जिस प्रकार की हलचलें चल रही हैं उससे यही लग रहा है कि अगला दशक आमसहमति से ज्यादा आपसी खींचतान और गहरे मंथन का होगा। भारत को इसी में से अपनी राह बनानी है। रफीक जकरिया, पाल क्रुगमैन, थामस पिकेटी, जेम्स क्रैबट्री जैसे दुनिया के कई अर्थशास्त्री औरRead More


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