Indian Culture
मुहर्रम में भांजते थे बाबा धाम की लाठी
अरुण कुमार आज मुहर्रम है! नहीं पता कि मुहर्रम की शुभकामनाएं दी जाती है या कुछ और? जब तक गांव में था तब तक पता ही नहीं चला कि मुहर्रम हिन्दुओं का त्योहार है या मुसलमानों का। मेरे गांव अहियापुर में हकीम मियां ताजिया बनाते थे जिसे हमलोग ‘दाहा’ कहते थे। मेरे गांव में सभी जातियों के अलग-अलग टोले हैं लेकिन हकीम मियां का परिवार हमारी जाति के ही टोले में बस गया था। ऐसा कैसे हो गया किसी को नहीं पता। ‘दाहा’ बनाने का काम हकीम मियां दस-पन्द्रह दिनRead More
बिहार का गांव, यहां गूंजती है कृष्ण की बांसुरी की धुन
पूर्णिया. शैलेष। कोई भी कला, कोई भी विधा, जाति-धर्म में बंधी नहीं होती। खासकर भगवान कृष्ण की बात करें तो वो प्रेम का प्रतीक हैं। उन्हें हर धर्म-संप्रदाय के लोग मानते हैं। उन्होंने लोगों को प्रेम का मार्ग दिखाया और प्रेम करना सिखाया। एेसे ही कृष्ण को मानने वाले कुछ मुसलमान हैं जो प्रेम को ही अपना धर्म मानते हैं और कृष्ण की मुरली को बनाना और बजाना ही उनका पेशा है। पूर्णिया जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर स्थित श्रीनगर प्रखंड में मुस्लिम समुदाय के लोग गुम हो रही बांसुरीRead More
हे कर्णावती! मत भेजना हुमायूँ को राखी
अवधेश कुमार ‘अवध’ सावन के महीने में शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन राखी का त्यौहार न सिर्फ भारत बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। रक्षा बंधन का यह पर्व सिर्फ भाई – बहन तक सीमित न होकर गुरु – शिष्य, पिता – पुत्री, वरिष्ठ – कनिष्ठ, मामी – भांजा, मनुष्य – वृक्ष आदि सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों के बीच भी होता है। आज के समय में कई प्रकार की राखियों से बाजार भरा पड़ा है किन्तु इन सबके बीच एक ही सत्य कायम है किRead More