India
कौन मिटाएगा जाति?
दिलीप मंडल जो बनाता है, वही मिटाता है. जाति तुमने बनाई है. तुम्हीं से मिटवाएंगे. हम लोग मिटा भी नहीं सकते. इसलिए बाबा साहेब ने एनिहिलेशन ऑफ कास्ट का भाषण जात-पाति तोड़क मंडल की सभा के लिए लिखा था. वह अछूतों की सभा नहीं थी.लाहौर के आर्यसमाजियों की सभा थी. बाबा साहेब आर्यसमाजियों को बता रहे थे कि जाति से उनको कितना नुकसान हुआ है. वे किस तरह बीमार हो गए हैं. बाबा साहेब की चिंता ये भी थी कि सवर्ण अपनी बीमारी अपने तक नहीं रखते. वे पूरे देश कोRead More
जदयू का राग आरक्षण, गरीब सवर्णो को भी देंगे लाभ
पटना. बिहार की सियासत में जदयू ने नया राग आरक्षण छेडा हैं. बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नए आरक्षण राग का है। जदयू नेता ऋषि मिश्रा ने कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। दूसरी ओर जदयू की इस मांग पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह जनता को भ्रमित करने की चाल है। जब केंद्र व राज्य दोनों जगह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ही सरकार है तो गरीब सवर्णों को आरक्षण देेनेRead More
शॉकर कितना मजबूत है आपके जीवन की गाड़ी का
Pushya Mitra ………………………………………………………… पहले कल्पेश जी की खुदकुशी की सूचना मिली, फिर हजारीबाग में एक व्यवसायी परिवार के छह सदस्यों के एक साथ खुदकुशी की खबर आयी, पहले भी किसी आइएएस, किसी अधिकारी, किसी नेता की खुदकुशी की खबरें हम सुनते-जानते रहे हैं. भैय्यूजी महाराज जैसे आध्यात्मिक गुरु और कलिखो पुल जैसे बड़े राजनेता खुदकुशी कर रहे हैं. किसानों की खुदकुशी का तो कहना ही क्या, वह एक अलग ही मसला है. मगर इन लोगों की खुदकुशी समाज में एक अनकहा डर पैदा करती है, ये किसान नहीं हैं जोRead More
भीड़ बनता भारत
अरुण कुमार त्रिपाठी इक्कीसवीं सदी में भारत भीड़ में बदल रहा है। उसकी नागरिकता अगर राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक धर्म, सेना के प्रति समर्पण, काल्पनिक कथाओं व अफवाहों को सत्य मानने का हठ, निरंतर शत्रुओं की पहचान और उन्हें सबक सिखाने की भावना से परिभाषित हो रही है तो स्थानीय स्तर पर वह `हम और वे’ बीच बंट रही है। भावनाओं के इस घटाटोप ने `हम भारत के लोग’ नामक उस प्रत्यय को बहुत छोटा कर दिया है जिसने अपने आपको एक संविधान दिया और अफवाहों और हिंसा से दूरRead More
अब अदालती फैसले हिंदी में
डॉ. वेदप्रताप वैदिक आजादी के 70 साल बाद भी हमारा देश अंग्रेजी का गुलाम है। किसी भी शक्तिशाली और संपन्न राष्ट्र के अदालतें विदेशी भाषा में काम नहीं करतीं लेकिन भारत की तरह जो पूर्व गुलाम देश हैं, उनके कानून भी विदेशी भाषाओं में बनते हैं और मुकदमों की बहस और फैसले भी विदेशी भाषा में होते हैं। जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मोरिशस आदि ! भारत की अदालतें यदि अपना सारा काम-काज हिंदी में करें तो उन पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है लेकिन जब भारत की संसद ही अपनेRead More