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हिंदी दिवस पर जानिये बिहार के सबसे बड़े हिंदी सेवी को
#हिंदीदिवस पुष्यमित्र क्या आप जानते हैं कि यह तसवीर किनकी है? अगर आप हिंदी प्रेमी हैं तो आपको जानना चाहिए. यह महराजकुमार रामदीन सिंह की तसवीर है, जिन्होंने उन्नीसवीं सदी के आखिर में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए पटना में खड़ग विलास प्रेस की स्थापना की थी. इस खगड़ विलास प्रेस का महत्व आप इसी बात से समझ सकते हैं कि आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र की 80 फीसदी से अधिक किताबें इसी प्रेस से छपी थीं. उनके अलावा उस दौर के ज्यादातर हिंदी साहित्यकारRead More
हिन्दी को अब राष्ट्रभाषा होना ही है
प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी राष्ट्रभाषा को समझने से पहले राष्ट्र, देश और जाति शब्दों को समझना असमीचीन न होगा। वस्तुत: ‘राष्ट्र’ को अंग्रेज़ी शब्द ‘नेशन’(Nation) का हिन्दी पर्याय माना जाता है,किंतु इन दोनों शब्दों में कुछ अंतर है। अंग्रेज़ी में ‘नेशन‘ शब्द से अभिप्राय किसी विशेष भूमि-खंड में रहने वाले निवासियों से है जबकि ‘राष्ट्र’ शब्द विशेष भूमि-खंड, उसमें रहने वाले निवासी और उनकी संस्कृति का बोध कराता है। राजनीतिक दृष्टि से और भौगोलिक रूप से एक विशेष भूमि-खंड को‘देश’ की संज्ञा दी जाती है, किंतु इसका संबंध मानव समाज से नहीं है। ‘जाति’ से अभिप्राय उस मानव समुदाय से है जो सामाजिक विकासRead More
अब अदालती फैसले हिंदी में
डॉ. वेदप्रताप वैदिक आजादी के 70 साल बाद भी हमारा देश अंग्रेजी का गुलाम है। किसी भी शक्तिशाली और संपन्न राष्ट्र के अदालतें विदेशी भाषा में काम नहीं करतीं लेकिन भारत की तरह जो पूर्व गुलाम देश हैं, उनके कानून भी विदेशी भाषाओं में बनते हैं और मुकदमों की बहस और फैसले भी विदेशी भाषा में होते हैं। जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मोरिशस आदि ! भारत की अदालतें यदि अपना सारा काम-काज हिंदी में करें तो उन पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है लेकिन जब भारत की संसद ही अपनेRead More