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हिंदी मीडियम में दम है। मगर हममें कितना दम है?
हिंदी मीडियम में दम है। मगर हममें कितना दम है? बालेंदु शर्मा दाधिच मित्रो, हिंदी के जरिए सफलता प्राप्त करने के बाद आज मुझे लगता है कि मुझ जैसे लोगों पर एक सामाजिक दायित्व है। दायित्व है हमारी युवा पीढ़ी को सशक्त करने का। उसे इस बात का विश्वास कराने का कि ‘हिंदी मीडियम’ में कोई समस्या नहीं है। हाँ, हमारे आसपास हमारे ही लोगों द्वारा चुनौतियाँ पैदा की जाती हैं लेकिन अब जमाना बदल रहा है और आप चाहें तो हिंदी को अपनी ताकत बना सकते हैं। उसी तरह,Read More
आर्थिक मजबूती से बढ़ेगा हिन्दी का साम्राज्य
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाषा और भारत के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत में हिन्दी के योगदान को सदा से सम्मिलित किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, किन्तु वर्तमान समय उस योगदान को बाजार अथवा पेट से जोड़ने का है। सनातन सत्य है कि विस्तार और विकास की पहली सीढ़ी व्यक्ति की क्षुधा पूर्ति से जुडी होती है, अनादि काल से चलते आ रहे इस क्रम में सफलता का प्रथम पायदान आर्थिक मजबूती से तय होता हैं। वर्तमान समय उपभोक्तावादी दृष्टि और बाजारमूलकता का है, ऐसे काल खंड में भूखे पेट भजन नहीं होय गोपालाRead More
अंग्रेजी की तरह उदार नहीं हिंदी
प्रो. राजेन्द्र प्रसाद सिंह, अंग्रेजी में मूल शब्द दस हजार हैं और आज साढ़े सात लाख पहुंच गए हैं, यानी कि सात लाख चालीस हजार शब्द बाहर से आए. इसका पता हम लोगों को नहीं है. जैसे अलमिरा को हम लोग मान लेते हैं कि ये अंग्रेजी भाषा का शब्द है, लेकिन वह पुर्तगाली भाषा का शब्द है. इसी तरह रिक्शॉ को हम मान लेते हैं कि अंग्रेजी का है, लेकिन वह जापानी भाषा का है. चॉकलेट को हम मान लेते हैं कि ये अंग्रेजी भाषा का शब्द है, लेकिनRead More
आर्थिक मजबूती से बढ़ेगा हिन्दी का साम्राज्य
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाषा और भारत के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत में हिन्दी के योगदान को सदा से सम्मिलित किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, किन्तु वर्तमान समय उस योगदान को बाजार अथवा पेट से जोड़ने का है। सनातन सत्य है कि विस्तार और विकास की पहली सीढ़ी व्यक्ति की क्षुधा पूर्ति से जुडी होती है, अनादि काल से चलते आ रहे इस क्रम में सफलता का प्रथम पायदान आर्थिक मजबूती से तय होता हैं। वर्तमान समय उपभोक्तावादी दृष्टि और बाजारमूलकता का है, ऐसे काल खंड में भूखे पेट भजन नहीं होय गोपालाRead More
दुनिया में हर व्यक्ति के जन्म की भाषा केवल हिन्दी !
डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट भले ही कुछ लोग अंग्रेजी को दुनिया का पासपोर्ट बताते हो और भारत में अंग्रेजी की खुलकर पैरवी करते हो। लेकिन सच यही है कि हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को बोनी भाषा बताकर अंग्रेजी की पैरवी करना बेहद शर्मनाक है। यह कुछ लोगो की अंग्रेजियत भरी सोच हो सकती है जिसका भारतीयता से कोई नाता नही है। ऐसे लोग या तो हिन्दी अच्छी तरह से जानते नही या फिर उन पर अंग्रेजी इस कदर सवार है कि उन्हे अंग्रेजी के सिवाए कोई दुसरी भाशा दिखाईRead More
प्रेमचंद का साहित्य अनगिनत परिवारों में चूल्हा जलाता है
प्रेमचंद जयंती पर विशेष साधन सम्पन्न लोग प्रेमचंद की कहानियों पर धारावाहिक बनाते हैं और सत्ता से सम्मान पाते हैं, पर समाज में विवेक नहीं जगा पाते क्योंकि उनकी कथनी और करनी में फर्क है… मंजुल भारद्वाज, प्रसिद्ध रंगचिंतक प्रेमचंद जब अपनी लेखनी से गुलाम जनता में आज़ादी का मानस जगा रहे थे तब कुबेर का खज़ाना उनके पास नहीं था सत्ता की दी हुई जागीरदारी नहीं थी। यह तथ्य बताता है की साहित्य रचने के लिए धन की नहीं प्रतिभा,प्रतिबद्धता और दृष्टि की जरूरत होती है! जब आपके चारोंRead More
हिन्दीमय हो रहा पूर्वोत्तर भारत
अवधेश कुमार ‘अवध’ भारत बहुआयामी विविधता का सामासिक संगम है | तकरीबन 171 भाषाओं और 544 बोलियों के साथ 125 करोड़ आबादी वाला हमारा देश कश्मीर से कन्याकुमारी एवं कच्छ से अरुणाचल तक फैला हुआ है |संविधान सभा ने संविधान बनाते समय राष्ट्भाषा के सम्यक् चयन के लिए 71 सदस्यों की एक समिति गठित की थी जिसके आधे सदस्य हिन्दी विरोधी थे। आधे समर्थक और आधे विरोधी सदस्यों ने हिन्दी को अधजल में छोड़ दिया जिनमें अम्बेदकर जी की भूमिका भी हिन्दी विरोधी के रूप में थी । जीवन पर्यन्तRead More
दुनिया में हर व्यक्ति के जन्म की भाषा केवल हिन्दी !
डा.श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट भले ही कुछ लोग अंग्रेजी को दुनिया का पासपोर्ट बताते हो और भारत में अंग्रेजी की खुलकर पैरवी करते हो। लेकिन सच यही है कि हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को बोनी भाषा बताकर अंग्रेजी की पैरवी करना बेहद शर्मनाक है। यह कुछ लोगो की अंग्रेजियत भरी सोच हो सकती है जिसका भारतीयता से कोई नाता नही है। ऐसे लोग या तो हिन्दी अच्छी तरह से जानते नही या फिर उन पर अंग्रेजी इस कदर सवार है कि उन्हे अंग्रेजी के सिवाए कोई दुसरी भाशा दिखाई हीRead More
हिंदी महारानी है या नौकरानी ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक आज हिंदी दिवस है। यह कौनसा दिवस है, हिंदी के महारानी बनने का या नौकरानी बनने का ? मैं तो समझता हूं कि आजादी के बाद हिंदी की हालत नौकरानी से भी बदतर हो गई है। आप हिंदी के सहारे सरकार में एक बाबू की नौकरी भी नहीं पा सकते और हिंदी जाने बिना आप देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। इस पर ही मैं पूछता हूं कि हिंदी राजभाषा कैसे हो गई ? आपका राज-काज किस भाषा में चलता है ? अंग्रेजीRead More