Arun Kumar Tripathi
काश! मोहन जी महात्मा को समझ पाते
काश! मोहन जी महात्मा को समझ पाते अरुण कुमार त्रिपाठी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत जी ने सन 2021 के पहले दिन एक विचित्र बयान दिया। उनका कहना था, “सभी भारतीय मातृभूमि की पूजा करते हैं लेकिन गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से आती है। इसलिए अगर आप हिंदू हैं तो आप स्वाभाविक रूप से देशभक्त हैं। आप अवचेतन में हिंदू हो सकते हैं या आपको जागरण की आवश्यकता है लेकिन हिंदू कभी भारत विरोधी नहीं हो सकता है।’’ मोहन भागवत जीRead More
अखबार मरेंगे तो लोकतंत्र बचेगा?
अरुण कुमार त्रिपाठी हम गाजियाबाद की पत्रकारों की एक सोसायटी में रहते हैं। वहां कई बड़े संपादकों और पत्रकारों(अपन के अलावा) के आवास हैं। इस सोसायटी में एक बड़े पत्र प्रतिष्ठान के ही पूर्व कर्मचारी अखबार सप्लाई करते हैं। वे बताते हैं कि कोरोना से पहले लोग तीन- तीन अखबार लेते थे। अब कुछ ने अखबार एकदम बंद कर दिया है और कुछ ने घर में लड़ाई झगड़े के बाद एक अखबार पर समझौता किया है। एक दिन पहले एक बड़े अखबार के बड़े पत्रकार ने बताया कि उनका वेतन एकRead More
प्लेग से लड़ते हुए शहीद हुई थीं सावित्री फुले
अरुण कुमार त्रिपाठी कोरोना महामारी के दौरान जातिवादी छुआछूत और सांप्रदायिक बुराइयों के वापस आने का खतरा है। तब्लीगी जमात का मामला तो राजनीतिक संरक्षण में उछल गया लेकिन यह कहने वालों की कमी नहीं है कि पिछली सदी की छुआछूत की प्रथा इसी प्रकार की बीमारियों का संक्रमण रोकने के लिए थी। ऐसे माहौल में महात्मा ज्योतिबा फुले की पत्नी और स्त्री चेतना की प्रणेता सावित्री बाई फुले ने जिस तरह प्लेग और जातिवाद से लड़ते हुए अपना बलिदान दे दिया वह आज भी प्रेरणा देता है। 1897 वहRead More
भीड़ बनता भारत
अरुण कुमार त्रिपाठी इक्कीसवीं सदी में भारत भीड़ में बदल रहा है। उसकी नागरिकता अगर राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक धर्म, सेना के प्रति समर्पण, काल्पनिक कथाओं व अफवाहों को सत्य मानने का हठ, निरंतर शत्रुओं की पहचान और उन्हें सबक सिखाने की भावना से परिभाषित हो रही है तो स्थानीय स्तर पर वह `हम और वे’ बीच बंट रही है। भावनाओं के इस घटाटोप ने `हम भारत के लोग’ नामक उस प्रत्यय को बहुत छोटा कर दिया है जिसने अपने आपको एक संविधान दिया और अफवाहों और हिंसा से दूरRead More