अंधेरे के बीच उजाला है

 
 

ये एक प्रोफेसर की हिन्दी कक्षा नहीं, अंधेरे के बीच उजाला है

Vineet Kumar ये जो युवाओं का हुजूम है, ये देश के उन सैंकड़ों अकर्मण्य, अपने पेशे के प्रति बेईमान प्रोफेसरों पर तमाचा है जो क्लास न लेकर भी लाखों में सैलरी उठाते हैं. ऐसे जड़, भीतरघाती, अकर्मण्य प्रोफेसरों से आप दस मिनट बात कर लें तो लगेगा इससे कहीं ज्यादा संवेदनशील देश का एक सामान्य नागरिक है. कुर्सी की ताकत ने इनके भीतर के जीवन रस को निचोड़ लिया है. युवाओं की इस जमघट के बीच जो शख्स खड़ा है, वो दरअसल दिल्ली के उन तिकड़मी प्रोफेसरों की करतूतों काRead More


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