एक क्राइम रिपोर्टर की डायरी से वृजबिहारी हत्याकांड
बृजबिहारी जानते थे कि मनमाफिक बादशाहत में कील-कांटा सूरजभान सिंह व मुन्ना शुक्ला हैं लेकिन डर सबसे अधिक इधर मिले श्रीप्रकाश शुक्ला से ही था। गजब के दुस्साहसी श्रीप्रकाश शुक्ला ने बहुत कम समय में कई असंभव सा अपराध कर दिया था। सूरजभान जेल जा चुके थे। अंडरवर्ल्ड में खबर चल रही थी कि जेल के भीतर ही सूरजभान को खत्म करा देने की योजना अंतिम रुप में है। श्रीप्रकाश इस क्षति को बर्दाश्त नहीं कर सकता था लेकिन मेधा घोटाले में फंसने के बाद मंत्री बृजबिहारी 22-23 कमांडो की ऐसी सुरक्षा-व्यवस्था में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे कि कोई दुस्साहस की कल्पना भी नहीं कर सकता था। बात 11 जून 1998 की है। दोपहर में ही मैं फतुहा से पटना आ गया था। अखबार के परिशिष्ट के लिए आलेख दिन में ही फाइल करना था। दोपहर के वक्त अखबार के दफ्तरों में बहुत चहलकदमी नहीं होती है। तब पटना में उषाफोन की पहली मोबाइल सेवा शुरु हुई थी। अखबारी दुनिया में बहुतों के पास मोबाइल नहीं था,लेकिन मेंरे पास था। इनकमिंग काल रिसीव करने पर भी पैसे लगते थे। अंडरवर्ल्ड में हनक बढ़ते ही श्रीप्रकाश को मैं जान गया था । पत्रकार के रुप में कई मुलाकात हो चुकी थी। इंटरव्यू भी छपा था। उत्तर प्रदेश के अखबारनवीस भी बड़ी वारदातों के बाद मेरे संपर्क में जानकारी लेने को आ जाते थे। श्रीप्रकाश की खबरों के कारण यूपी एसटीएफ के रडार पर भी मैं आ गया था। मोबाइल से हुई बातचीत को आधार बनाते हुए लखनऊ के तत्कालीन आईजी बुआ सिंह ने मुझे घेरने की कोशिश की थी। किंतु किसी बातचीत में खबरों के अलावा ऐसी कोई बातचीत नहीं निकली कि मुझे आरोपित कर लें।
खैर, 11 जून,1998 को हुआ यह कि जब मैं ‘आज’ पटना के कार्यालय में बैठकर आलेख लिख रहा था, तभी मेरे मोबाइल पर घंटी बजी। लैंडलाइन से फोन था। रिसीव करते ही श्रीप्रकाश की आवाज सुनी। मैंने दफ्तर में होने की बात कही। उसने अच्छा बोलकर फोन काट दिया। पटना के लैंडलाइन से फोन होने के बाद भी श्रीप्रकाश के पटना में ही होने की कल्पना मैं नहीं कर सकता था। वजह तब तक वह इसमें उस्ताद हो चुका था कि किसी दूसरे शहर में रहकर भी टेली-कांफ्रेसिंग के जरिये वह आपके ही इर्द-गिर्द होने का भय पैदा कर दे। लेकिन यहां स्थिति दूसरी थी। फोन कटने के कुछ ही मिनटों के भीतर वह मोटरसाइकिल से अपने एक और साथी के साथ ‘आज’ ,पटना का दफ्तर पहुंच गया। सामने देख मैं अवाक् था। उसने बताया कि बाहर ही तब के मशहूर मेफेयर रेस्तरां के सामने खडे होकर आइसक्रीम खा रहा था। जिस श्रीप्रकाश को तलाशने में पूरे देश की पुलिस परेशान थी, उसे इस कदर सामने देख आश्चर्य भी हुआ था। कुछ मिनटों की संक्षिप्त मुलाकात में खबरों की बात हुई। पता लग गया कि किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के इरादे से ही आया है। लेकिन निशाने पर बृजबिहारी आ जायेंगे, आईजीर्आएमएस के सुरक्षा घेरे को जान मेरी समझ से परे था। स्वयं बृजबिहारी भी नहीं मान सकते थे। अगले दिन मैंने पटना में श्रीप्रकाश के पटना में होने की खबर छाप दी। आदतन पटना पुलिस ने बहुत गंभीरता से खबर को नहीं लिया।
13 जून, 1998 शनिवार था। मेरे साप्ताहिक अवकाश का दिन। दिन भर सोता था। फोन उठाकर रख देता था, ताकि आफिस से कोई डिस्टर्ब न कर दे। फतुहा में मेरे घर के बीच वाले तल्ले के बेडरुम में मोबाइल का सिगनल भी नहीं आता था। जून की गर्मी थी। गुल बिजली ने ठीक से सोने नहीं दिया। शाम होते ही छत पर गया। यहां मोबाइल सिगनल आता था। किसी से बात करने के लिए फोन चालू किया लेकिन मैं बात करता, इसके पहले ही घंटी बजने लगी। कोई गुमनाम नंबर से फोन था। सूचना मिली कि आईजीआईएसएस में बृजबिहारी को गोलियों से अभी-अभी भून दिया गया है। विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने तुरंत शास्त्रीनगर थाने को फोन किया। क्राइम रिपोर्टर था, सभी जानते ही थे। अब तक थाने में किसी को खबर नहीं थी। फिर ‘आज’ कार्यालय में फोन मिला लिया। फोन तब के मेरे चीफ रिपोर्टर वीरेन्द्र कुमार जी ने रिसीव किया। मैंने राजधानी का हालचाल जाना। उन्होंने सब खैरियत बता दी। मेरा मन मानने को तैयार नहीं था। मेरे साप्ताहिक अवकाश के दिन क्राइम बीट देखने वाले एसएन श्याम से बात कराने को कहा। श्याम से बात हुई। इन्होंने भी कह दिया कि कोई बड़ी खबर नहीं है। प्रभात खबर में फोन मिलाया। भुवनेश्वर वात्स्यायन तब प्रभात खबर थे। इन्हें भी किसी घटना की जानकारी नहीं थी। अब मुझे लगा कि मेरी सूचना गलत थी। किसी ने मुझे परेशान किया है लेकिन पटना में श्रीप्रकाश की मौजूदगी के कारण अनहोनी की आशंका तो थी ही। सो, मन सूचना को पूरे तौर पर खारिज नहीं कर रहा था।
जो सूचना सबसे पहले मुझे मिली थी, कुछ देर के बाद वही सूचना सब लोगों को मिली। आग की तरह खबर फैली। अब सभी अखबार वाले मेरे पीछे लगे थे। मैंने एक्सक्लूसिव इनपुट के लिए अपने अखबार को तवज्जो दी। सभी खबरों में ‘आज’ ने स्कोर किया। आगे जब सीबीआई ने जांच शुरु की तो नया पंगा हो गया। श्रीप्रकाश के पटना में पहले से होने की प्रकाशित खबर को आधार बना मुझे अभियोजन पक्ष का गवाह बना दिया गया। मैंने तब भी कहा था कि कोर्ट में जाकर गवाही देने को मजबूर नहीं किया जा सकता। कभी गया भी नहीं। अब तो सभी आरोपी बरी किये जा चुके हैं, इसलिए कहानी भी खत्म कर दे रहे हैं। from visfot.com
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