अखिलेश-माया की दोस्ती का गवाह बन सकता है पटना में लालू की रैली का मंच
पटना.ए. बिहार में जदयू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर बीजेपी को रोकने में कामयाब हुए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अब 2019 लोकचुनाव से पहले अखिलेश यादव और मायावती की दोस्ती कराने की तैयारी में हैं. उत्तर प्रदेश के हाल में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बदली सूरतेहाल में एसपी और बीएसपी आगामी अगस्त में पटना में होने वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव की रैली में मंच साझा कर नई संभावनाओं की इबारत लिखती नजर आएंगी. राजद की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अशोक सिंह ने बताया कि एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी मुखिया मायावती ने आगामी 27 अगस्त को पटना में आयोजित होने वाली लालू की रैली में शिरकत पर रजामंदी दे दी है. राजद प्रमुख लालू ने इन दोनों नेताओं को इस रैली में शामिल होने के लिये हाल में फोन भी किया था. सिंह ने बताया कि एसपी संस्थापक मुलायम सिंह यादव को भी रैली में लाने की कोशिशें की जा रही हैं. वर्ष 1993 में प्रदेश में मिलकर सरकार बनाने वाली एसपी और बीएसपी के बीच दूरियां चर्चित गेस्ट हाउस काण्ड के बाद इस कदर बढ़ गयीं कि उन्हें एक नदी के दो किनारों की संज्ञा दी जाने लगी. माना जाने लगा कि अब ये दोनों दल एक-दूसरे से कभी हाथ नहीं मिलाएंगे, लेकिन इसे सियासी तकाजा कहें, या फिर समय का फेर, इन दोनों दलों के नेता अब मंच साझा करने को तैयार हो गये हैं. एसपी और बीएसपी के एक मंच पर साथ आने को राजनीतिक हलकों में सूबे की राजनीति के एक नये दौर के उभार के रूप में देखा जा रहा है. खासकर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के हाथों करारी शिकस्त ने इन दोनों दलों को साथ आने के बारे में सोचने पर मजबूर किया है.
सोनिया भी कर सकती हैं शिरकत
सिंह ने बताया कि अगस्त में होने वाली रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी शिरकत करने की संभावना है. उन्होंने बताया कि राजद प्रमुख लालू ने तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी, बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मुखिया शरद पवार तथा समान विचारधारा वाले अन्य दलों के नेताओं को भी रैली में शिरकत के लिये आमंत्रित किया है. द्रमुक नेता एम. के. स्टालिन इस रैली में हिस्सा लेने के लिये पहले ही रजामंदी दे चुके हैं. सिंह ने बताया कि इस कवायद का मकसद बिहार की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ मजबूत महागठबंधन को खड़ा करना है.
भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष में हुई दोस्ती
राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक राजनीतिक लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तर प्रदेश में एसपी और बीएसपी अगर एक साथ आती हैं तो यह सूबे में बीजेपी के अप्रत्याशित उभार को रोकने की दिशा में कारगर हो सकता है. बीएसपी हाल के विधानसभा चुनाव में कुल 403 में से मात्र 19 सीटें ही जीत सकी थी. वर्ष 1992 के बाद यह उसका सबसे खराब प्रदर्शन है. तब उसे 12 सीटें हासिल हुई थीं. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 80 सीटें जीती थीं. वहीं, एसपी भी इस बार महज 47 सीटों पर सिमट गयी, जो उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है.
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