मैं दसवीं में था पड़ोस के मास्टर ने मुझसे जंचवाई थी 8वीं बोर्ड की कॉपी!
ऋतेश पाठक
2001 का साल रहा होगा। तब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने फिर से 8वीं बोर्ड परीक्षा शुरू की थी। मैं तो निजी सीबीएसई स्कूल में पढता था। इसलिए इस अनुभव से वंचित था। तभी एक अनोखा वाकया पेश आया।
जहाँ मैं रहता था, वहां आस-पास के लोगों में मुझे भी “तेज विद्यार्थी” की तरह ट्रीट किया जाने लगा था। मेरे पास में एक मास्टर साहब रहते थे जिनकी ख्याति एक “अच्छे शिक्षक” के रूप में थी। शायद उस समय वह अपने स्कूल के प्रधानाचार्य भी थे। एक शाम को वह कुछ कॉपियों का बंडल लेकर मेरे कमरे पर पहुंचे।
मास्टर साहब बोले “8मा बोड का एग्जाम हो गया है, छुट्टी बहुत कम है, छुट्टी के तुरंत बाद रिजल्ट आउट होना है, आप एक काम कर दीजिए।”
मैं हतप्रभ की रिजल्ट मेँ मैं क्या काम कर सकता हूँ। इतने मेँ मास्टर साब ने कॉपी बढाकर कहा “इतना कॉपी आप जाँच दीजिए।”
मैं बस आश्चर्य से उन्हेँ देखे जा रहा था कि वो बोल उठे “घबराना नहीं है, आप तो अपने समझदार हैं, फेल किसी को नहीं करना है, 60 से ऊपर भी एके दू गो को देना है, बाकी सब देख लीजिए अपने से।”
उन मास्टर साब की इज्जत मेरे लिए परिवार के बुज़ुर्ग सदस्त जैसी ही थी। मैंने कॉपियां ले लीं, और 2-3 दिन के अंदर 40-50 कॉपियों पर अपनी समझ से दिल खोलकर नंबर देते हुए लेकिन ऊपरी सीमा का ख्याल रखते हुए मैंने जल्द ही मास्टर साब को कॉपियां वापस सुपुर्द कर दी।
तब तो कुछ समझ नही आया। अलबत्ता गौरव चढ़ रहा था। बाद में 10वीं-12वीं के बाद मकन कटोचता रहा। मुझे नहीँ पता की वो शिक्षक महोदय अब कहाँ हैं, इस दुनिया में हैं या नहीं भी। बस बोर्ड परीक्षाओं से जुड़े विवाद आते हैं, तब तब बरबस वो दृश्य याद आ जाता हैं।
(ऋतेश पाठक योजना के संपादक हैं. यह उनके फेसबुक पेज से साभार ली गई है)
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