बिहार का ऐसा गांव, जहां गांव के ही बेटों के साथ ब्योही जाती है बेटी, गांव से बने हैं कई आएएस, आईपीएस

देश का अकेला गांव है, जहां के लोगों का उपनाम हिंदू होने के बावजूद खां है
काजल. सहरसा। बिहार का एक एेसा अनोखा गांव है, जहां एक ही गांव का दूल्हा और उसी गांव की दु्ल्हन।यहां एक ही गांव में बेटियां ब्याह दी जाती हैं। यह गांव है सहरसा जिला मुख्यालय से छह किमी की दूरी पर बसा बनगांव। इस गांव की दूसरी खासियत यह है कि यह देश का अकेला गांव है, जहां के लोगों का उपनाम हिंदू होने के बावजूद खां है।  इस गांव का नाम सुनते ही बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं के साथ-साथ विद्धान, पंडितों, सेनानियों एवं प्रशासकों का नाम उभरकर आने लगता है। लेकिन यह गांव एक और अर्थ में अनूठा है। यहां गांव की अधिकांश लड़कियों की शादी उसी गांव में होती है। यह गांव अाइएस और आइपीएस के गांव के रूप में भी जाना जाता है। भाजपा नेता डा शशिशेखर झा सम्राट बताते हैं कि बनगांव अपने आप में अनूठा गांव है। यहीं मेरी ननिहाल भी है और ससुराल भी, इसके अलावे मेरी तीनों बहनों की शादी इसी गांव में हुई है। उन्होंने बताया कि मेरे मामा विनोदानंद झा की भी शादी गांव में ही शंकुतला देवी से हुई थी। इसी तरह लक्ष्‍मेश्‍वर झा की शादी उसी गांव में बेबी देवी से अमरनाथ झा की शादी गांव की ही कुमकुम देवी के साथ हुई थी। ग्रामीण गौरव कुमार झा कहते हैं कि अन्य गावों में जिस तरह शादियां होती हैं, इसी तरह यहां भी शादियां होती है। उन्होंने बताया कि परगोत्र विवाह सात पुस्तों के मिलान के बाद किया जाता है।
गांव की विशालता है इन शादियों की वजह
ग्रामीणों के मुताबिक यह गांव बहुत बड़ा है। इस गांव में दो पंचायतें हैं, दस हजार वोटर हैं, गांव की आबादी करीब पच्चीस से तीस हजार है। दूसरी इसकी भौगोलिक, सामाजिक विशालता के कारण ही इस गांव में अधिकतर शादियां इसी गांव में कर दी जाती हैं। दूसरे, इस गांव में विभिन्न गोत्र व मूल के इतने अधिक परिवार हैं कि विवाह गांव में करना संभव है। यह गांव मूलत: पांच टोले में है। जिसमें पुवारि टोल, रामपुर बंगला, सनोखरि बंगला, ठाकुर पट्टी, दक्षिणवारि टोल तथा पछवारि टोल थे। परंतु वर्तमान समय में ये सभी टोले विभिन्न उपटोलों में बंट गए हैं।
ब्राह्मण बहुल इस गांव में कई आइएएस, आईपीएस भी हैं। बनगांव दक्षिणी के मुखिया विनोद कुमार झा कहते हैं कि यह कोई पौराणिक परंपरा या धार्मिक वजह से नहीं होता, गांव की विशालता के कारण अलग-अलग गोत्र-मूल के लोग रहते हैं, जिससे सुयोग्य वर या वधू मिलने पर शादी हो जाती है। उन्होंने बताया कि यहां कई शादियां गांव की बेटियों की गांव के बेटों के साथ हुई है।
बनगांव का इतिहास
बनगांव का लिखित इतिहास काफी पुराना है। ऐसी धारणा है की बुद्ध के समय मे इस जगह का नाम आपन निगम था। ज्ञान की खोज और आध्यात्म के विस्तार के सिलसिले मे गौतम बुद्ध यहां आये थे। पडोसी गाँव महिषी के मंडन मिश्र और कन्दाहा के प्रसिद्ध सूर्यमंदिर की वजह से ये गांव और आसपास के क्षेत्र सदियों से ज्ञान, धर्म और दर्शन के केंद्र रहे हैं।इस गांव का नाम बनगांव होने के बारे मे भी कई किवंदतियां हैं। कहा जाता है गांव के सबसे पहले बाशिंदों मे से एक का नाम बनमाली खां था। और उन्ही के नाम से शायद इस गांव की पहचान बनगांव के रूप मे हुई। with thanks from jagran.com






Related News

  • लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार
  • भीम ने अपने पितरों की मोक्ष के लिए गया जी में किया था पिंडदान
  • कॉमिक्स का भी क्या दौर था
  • गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
  • वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!
  • बिहार की महिला किसानों ने छोटी सी बगिया से मिटाई पूरे गांव की भूख
  • कौन होते हैं धन्ना सेठ, क्या आप जानते हैं धन्ना सेठ की कहानी
  • यह करके देश में हो सकती है गौ क्रांति
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com