भोजपुरी की ताकत से दिल्ली में सियासत जमाएंगे नीतीश कुमार
बिहार कैबिनेट ने भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का भेजा है प्रस्ताव
संजय मिश्र, नई दिल्ली।
भोजपुरी भाषा को मान्यता दिलाने की सियासी कसरत में नीतीश सरकार भी अब खुले रुप से मैदान में उतर गई है। इस दिशा में अहम कदम उठाते हुए बिहार सरकार की कैबिनेट ने भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित कर अपनी सिफारिश केन्द्र सरकार को भेज दी है। गृह मंत्रालय को भोजपुरी के समर्थन में भेजे अपने प्रस्ताव के साथ बिहार सरकार ने महाकवि तुलसीदास, कबीर से लेकर बाबा नागार्जुन की इस भाषा के प्रति स्नेह का हवाला भी दिया है। तो भोजपुरी की माटी के सपूत देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद और संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मातृभाषा को उचित समान देने की पैरोकारी की गई है।
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बिहार कैबिनेट की सिफारिश को राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने शनिवार को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया। इस सिफारिश के साथ बिहार सरकार ने भोजपुरी को मान्यता देने की मांग के औचित्य को भाषा के इतिहास, गौरव और इसकी माटी के विभूतियों का अपनी भाषा से जड़ाव के तथ्यों से भी केन्द्र को रुबरू कराया है। नीतीश सरकार का कहना है कि बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश की बडी आबादी के साथ झारखंड के अलावा मारीशस, सुरीनाम, त्रिनीदाद, टूबैगो, फीजी आदि देशों में भी भोजपुरी लोकप्रिय भाषा है। बिहार कैबिनेट के निर्णय की पुष्टि करते हुए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और दिल्ली के प्रभारी संजय झा ने कहा कि मुंबई और दिल्ली समेत देश के सभी प्रमुख शहरों में भोजपुरी भाषियों की बडी तादाद है। इस लिहाज से बिहार सरकार का फैसला जनमानस की भावना को जाहिर करता है।
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बिहार सरकार की सिफारिश की तात्कालिक सियासी वजह देश की राजधानी में अप्रैल में होने वाले नगर निगम चुनाव को माना जा रहा है। दिल्ली के निगम चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जनतादल युनाइटेड मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। दिल्ली भाजपा भी पूर्वाचलियों को लुभाने के लिए भोजपुरी को मान्यता दिलाने की कोशिशों में जुटे होने का सियासी संदेश दे रही है। जदयू भी दिल्ली में अपना आधार बनाने के लिए पूर्वाचलियों को अहम मानता है। इसीलिए संजय झा की अगुवाई में रविवार को भोजपुरी के समर्थन में राजधानी में एक बडे सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।
भोजपुरी के करीब साढे तीन करोड लोगों की मातृभाषा होने की दलील देने के साथ बिहार सरकार ने गृह मंत्रालय को इसके समर्थन में इसके पुराने ऐतिहासिक गौरव से भी रुबरू कराया है। इसमें कहा गया है कि भोजपुरी संस्कृत के निकट एक वैज्ञानिक भाषा है। यह भाषा पाणिनि की अष्टधायी के सूत्रों के आईने में साहित्य के तमाम भावों को व्यक्त करने में सक्षम है। तुलसीदास के इसे गांवों की वाणी बताने का जिक्र करते हुए भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के कालजयी साहित्य का उदाहरण भी दिया गया है। तो आल्हा के वीर रस की उत्तर भारत के गांव-गांव में सदियों से चली आ रही परंपरा का भी हवाला दिया गया है। बिहार सरकार के अनुसार यह कहने में गुरेज नहीं कि भोजपुरी वैश्विक संपर्क की एक प्रमुख भाषा है और भारत की रीति-रिवाजों को आगे बढ़ाने की सक्षम वाहिका। संजय झा ने कहा कि राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर केन्द्र ने जल्द गौर नहीं किया तो दिल्ली में जदयू भोजपुरी को लेकर बडा आंदोलन करेगा जिसमें नीतीश कुमार खुद शिरकत करेंगे। with thanks from http://www.jagran.com
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