बीवी, बच्चे, भाई-बहन या किसी और के नाम से बेनामी संपत्ति लेने पर जाना पड़ेगा जेल

1 नवम्बर से बेनामी लेन-देन करने पर 7 साल तक सजा, जुर्माना अलग से
शिशिर सिन्हा
नई दिल्ली biharkatha.com : काले धन पर लगाम लगाने के लिए बेनामी संपत्ति की लेन-देने पर रोक से जुड़ा नया कानून 1 नवम्बर से लागू होगा. सरकार ने इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी है. मतलब ये है कि पहली नवंबर के बाद अगर आप घर या जमीन अपने, अपने पति या पत्नी, बच्चे या फिर भाई-बहन के साध साझा तौर पर खऱीदने के बजाए किसी औऱ के नाम से खरीदते हैं और सरकार को पता चला जाए तो वो ऐसी संपत्ति को जब्त करेगी. यही नहीं आपको सात साल तक की सजा और जमीन-जायदाद की मौजूदा बाजार कीमत के 25 फीसदी बराबर तक जुर्माना देना होगा. पुराने कानून में तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों का प्रावधान था. नए कानून में ऐसे लेनदेन के बारे में जानबूझकर गलत जानकारी देने वालों के खिलाफ भी जुर्माना लगाने का प्रावधान है. ऐसा करने पर कम से कम 6 महीने और अधिकतम 5 वर्ष के कठिन कारावास की सजा के साथ उस संपत्ति के बाजार मूल्य के हिसाब से 10 प्रतिशत तक राशि का जुर्माना लगाया जा सकता है.
नए कानून में ये भी साफ किया गया है कि अगर आप अपने पति या अपनी पत्नी, बच्चों के नाम या फिर भाई-बहनों के साथ साझेदारी में कोई संपत्ति खरीदते हो तो उसके लिए चुकाया गया पैसा ज्ञात स्रोतों से आना चाहिए. दूसरे शब्दो में कहें तो इसकी जानकारी आय़कर विभाग को होनी चाहिए. अगर ये नहीं है तो ऐसी संपत्ति भी बेनामी के दायरे में आ सकती है.
नए कानून का मकसद जमीन जायदाद के कारोबार में काले धन पर लगाम को रोकना है. हालांकि बेनामी लेन-देन पर रोकने के लिए एक कानून 1988 में बना था, लेकिन उसके नियम अधिसूचित नहीं किए जाने की वजह से उसे लागू नहीं किया जा सका था. नए कानून के तहत ना केवल बनामी संपत्ति की परिभाषा साफ की गयी है, बल्कि उसे जब्त कर बगैर मुआवजा दिए बेचने का भी अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया है.
मूल रुप से बेनामी संपत्ति का मतलब ऐसी संपत्ति (मुख्य रूप से जमीन-जायदाद) से है जो होता है किसी औऱ के नाम से और उससे होने वाला फायदा कोई और उठाता है. कई बार तो संपत्ति जिसके नाम पर होती है, उसे भी इसका पता नहीं होता. ऐसा कर संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति सरकार को अपनी आमदनी की सही-सही जानकारी नहीं देता और टैक्स की चोरी करता है. नए कानून की वजह से ऐसा करना संभव नही हो सकेगा. कानून की एक खास बात ये भी है कि मामलों में शामिल लोगों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है. मसलन, अगर किसी व्यक्ति का संपत्ति पर से अधिकार जा रहा हो और अपीलीय प्राधिकार में जाने के बाद भी उसे अगर लगे कि कोई साक्ष्य वह पेश करना चाहता है तो ऐसे मामलों के लिए उच्च न्यायालय को अधिकार दिया गया है.






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