पाकिस्तान को अमेरिका नहीं देगा एफ-16 लड़ाकू विमान, INDIA बनेगा बड़ा सप्लाई बेस!
एजेंसी. नई दिल्ली: अगर INDIA ने अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए एफ-16 लड़ाकू विमान को खरीदा तो इसका स्पष्ट मतलब होगा कि पाकिस्तानी वायुसेना इस विमान के आधुनिक मॉडल को हासिल नहीं कर पाएगी. अमेरिका पिछले 33 साल से एफ -16 का इस्तेमाल कर रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि लॉकहीड मार्टिन ने INDIA सरकार के सामने प्रस्ताव रखा है कि कंपनी मेक इन इंडिया नीति के तहत एफ-16 का पूरा उत्पादन यूनिट को अमेरिका के फोर्ट वर्थ से BHaरत में स्थानांतरित करना चाहती है. इस क्रम में लॉकहीड विमान के वि•िान्न पुर्जों का उत्पादन करने वाली यूनिटें जो वि•िान्न देशों में स्थित हैं, को चरणबद्ध तरीके से INdia में स्थानांतरित करना चाहेगी. अगर आधुनिक एफ-16 का निर्माण अंतत: Bhaरत में होता है, तो पाकिस्तान को उनका निर्यात करने का कोई प्रश्न ही नहीं है. मीडिया रिपोट्स के अनुसार लॉकहीड मार्टिन उस स्थिति में नहीं होगी कि पाकिस्तान को थोड़े आधुनिक एफ-16 विमान देने के लिए प्रोडक्शन फैसिलिटी लगा सके. इसी हफ्ते की शुरुआत में लॉकहीड मार्टिन ने आधिकारिक रूप से bhaरत सरकार के उस पत्र का जवाब दिया जिसमें पूछा गया था कि क्या वह bhaरतीय वायुसेना के लिए हाई परफॉर्मेंस, सिंगल इंजन, मल्टी रोल लड़ाकू विमान उपलब्ध करा सकते हैं. लॉकहीड ने इस साल की शुरुआत में bhart सरकार को प्रस्ताव bharat था, जिसमें लिखा था कि एफ-16 BHaरतीय वायुसेना के लिए सबसे उपयुक्त लड़ाकू विमान हो सकता है बावजूद इसके कि उसकी विरोधी पाकिस्तानी वायुसेना इनका इस्तेमाल करती है.
INDIA बनेगा बड़ा सप्लाई बेस
लॉकहीड मार्टिन के वरिष्ठ अधिकारियों ने इशारों में बताया कि एफ-16 की प्रोडक्शन लाइन को bhaरत में स्थानांतरित करने का मतलब होगा कि bhaरत और अमेरिका एक नए रणनीतिक रिश्ते में बंधेंगे क्योंकि रत दुनिया के 24 देशों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे 3200 एफ-16 विमानों के लिए विश्व का सबसे बड़ा सप्लाई बेस बन जाएगा. मेड इन इंडिया एफ-16 ब्लॉक 70 विमान जो कि इस कड़ी का सबसे आधुनिक विमान है और जो bhaरत को आॅफर किया गया है, को लेने के लिए पाकिस्तान अनिच्छुक होगा. जाहिर है कि bhaरत अपने प्रमुख विरोधी को लड़ाकू विमान सप्लाई नहीं करना चाहेगा.
एफ-16 और ग्रिपेन में इसलिए है होड़
रोचक तथ्य तो यह है कि एफ-16 और ग्रिपेन दोनों को ही bharatiy वायुसेना ने अपने मीडियम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के टेंडर में खारिज कर दिया था और फ्रांस की डसॉल्ट राफेल फाइटर को तरजीह दी थी. हालांकि वह टेंडर अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका और bhaरत ने करीब 58000 करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की सीधी खरीद के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया जबकि उसकी जरूरत कम से कम 126 विमानों की थी. एफ-16 और ग्रिपेन एक बार फिर होड़ में इसलिए हैं क्योंकि सरकार ने अलग-अलग श्रेणी के विमानों का इस्तेमाल करने का फैसला किया है.
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