पश्चिमी पाकिस्तान में आज इनकी पहचान गुंडों और मवालियों के तौर पर होती है। कराची के जिस औरंगी टाउन में सबसे ज्यादा बिहारी रहते हैं उसका नाम इतना बदनाम है कि सिर्फ औरंगी टाउन कह देने से लोग समझ जाते है कि यह जरूर गुंडा मवाली होगा। यही हाल पूर्वी पाकिस्तान के बिहारी मुसलमानों का है। इकहत्तर के बांग्लादेश युद्ध के बाद बांग्लादेश ने उन बिहारियों को अपने यहां रखने से मना कर दिया लेकिन पाकिस्तान उन पांच लाख मुसलमानों को इस्लाम के नाम पर भी कबूल करने को तैयार नहीं है। इस्लामी मुल्क में जाकर भी बिहारी मुसलमान बिहारी ही रहे। उन्हें इस्लाम के नाम पर न तो बंगाली मुसलमानों ने स्वीकार किया और न ही सिन्धियों या पंजाबियोंं ने। उल्टे सिंधियों की बिहारी मुसलमानों से सबसे ज्यादा शिकायत यह है कि यूपी बिहार से आये मुसलमानों की वजह से उनकी सिन्धी सभ्यता को नुकसान पहुंचा है। ऐसे में एक बार जब फिर बिहार की धरती पर पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा लगता है तो भारतीय मुसलमानों की दशा और मनोदशा दोनों का अंदाज हो जाता है कि भारत के मुसलमान या तो इतने मूर्ख हैं कि वे इतिहास से कोई सबक लेना नहीं चाहते या फिर इतने धूर्त हैं कि जानबूझकर इतिहास झूठला रहे हैं।
जाकिर नाईक के समर्थन में निकाली गयी रैली में जिस तरह से पटना में पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा लगा और पाकिस्तान का झंडा फहराया गया वह चौंकाने वाला है। जाकिर नाईक जिस मानसिकता का प्रचार कर रहे हैं उसके मूल में देश नहीं है। उसमें सिर्फ इस्लाम है और देश को दारुल हरब बनाने का ख्वाब। जिस पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के बैनर पर बिहार में यह रैली निकाली गयी थी उसका गठन केरल में हुआ है। पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के चेहरे पर कई तरह के दाग है। मसलन, वह आतंकी नेटवर्क तैयार करने में मदद करती है, दंगे भड़काती है, केरल में लव जिहाद चलाती है और हर तरह के धार्मिक उन्माद भड़काने वाले काम करती है जिससे समाज में और देश में टकराव बढ़े। पापुलर फ्रंट नामक यह जिहादी संगठन तब पहली बार चर्चा में आया था जब इसने केरल में एक ईसाई प्रोफेसर जोसेफ पर हमला करवाया था। प्रोफेसर जोसेफ पर पापुलर फ्रंट ने आरोप लगाया था कि उसने मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद का अपमान किया है। इसिलए पापुलर फ्रंट आफ इंडिया का जाकिर नाईक के समर्थन में उतरना अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि दोनों एक ही तरह के अतिवादी इस्लाम को बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन बिहार के मुसलमानों का पापुलर फ्रंट के बैनर पर रैली करना चौंकानेवाला है।
बिहार में फिर पाकिस्तान की बहार
संजय तिवारी
हिन्दुस्तान के बंटवारे का सबसे बड़ा आंदोलन दो जगह चला। उस पंजाब में जो कि अब पाकिस्तान है और बिहार में। यूपी के मुसलमान बंटवारे के बहुत पक्ष में नहीं थे लेकिन दिल्ली और दिल्ली से सटे यूपी के कुछ शहरों से जरूर मुसलमान पाकिस्तान गये। इसमें सबसे प्रमुख शहर था आगरा जहां से पाकिस्तान जाने वालों में मोहाजिर कौमी मूवमेन्ट के अल्ताफ हुसैन और वर्तमान राष्ट्रपति ममनून हुसैन के परिवारवाले भी शामिल थे। फिर भी सीमाओं से सूदूर बिहार का उत्साह काबिले गौर था। पाकिस्तान बना। कुछ बिहारी मुसलमान पश्चिमी पाकिस्तान गये और कुछ पूर्वी पाकिस्तान। जो पश्चिमी पाकिस्तान गये उन्हें कराची के पास बसाया गया जो कि उस वक्त पाकिस्तान की राजधानी थी। जो बिहारी मुसलमान पूर्वी पाकिस्तान गये उन्हें ढाका के आसपास अस्थाई कालोनियां बनाने की जगह दी गयी। अब दोनों जगह इनकी दुर्दशा है।
क्या बिहार के मुसलमान यह भूल गये कि उनके पुरखों ने जो लड़कर पाकिस्तान लिया था वहां उनका क्या हश्र हुआ? पाकिस्तान के शासन प्रशासन, व्यापार में तो कोई भागीदारी नहीं बन पाई है लेकिन बिहार में वे सत्ता और शासन में बराबर के भागीदार हैं। सवाल यह है कि शासन से लेकर माफिया जगत तक जब धर्म के नाम पर किसी प्रकार के भेदभाव के शिकार नहीं है तो फिर धर्म के नाम पर उनके जेहन में पाकिस्तान क्यों जिन्दा है? क्या सिर्फ इसलिए इस्लाम उन्हें गैर मुस्लिमों के साथ रहने से मना करता है?
लेकिन यह कोई ऐसी पहली घटना नहीं है जो सामने आयी है। अब केवल कश्मीर ही वह जगह नहीं रही जहां पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगते हैं। राजस्थान से लेकर असम तक जहां जहां मुसलमान विद्रोह पर उतरते हैं वे पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं। कुछ समय पहले राजस्थान के कोटा में इसी तरह से कुछ मुसलमानों ने पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये थे और पाकिस्तान के झंडे फहराये थे। ऐसा करके ये लोग संभवत: यह संदेश देना चाहते हैं कि मुसलमानों के दिल में आज भी पाकिस्तान जिन्दा है वे अपनी टू नेशन थ्योरी पर कायम हैं। हालांकि ऐसे लोगों की तादात कम है फिर भी कट्टरपंथी हिन्दुओं और कट्टरपंथी मुसलमानों के बीच पाकिस्तान बंटवारे का एक भावनात्मक आधार बना हुआ है। जो लोग इस आधार को बनाए हुए हैं उन्हें एक बार पाकिस्तान के मुसलमानों के हालात को भी देख लेना चाहिए। होश ठिकाने आ जाएंगे। मजहब के आधार पर जो देश बनते हैं वो पाकिस्तान हो जाते हैं।
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