मधुमास में कायम है चैता की परंपरा

chaita-lokgeet biharपटना।विक्रम संवत् के पहले महीने चैत्र (चैत) को भारतीय पंचांग में वर्ष का पहला महीना माना जाता है। इस महीने में गाए जाने वाले गीत ‘चैता’ का अपना अलग महत्व है। चैत्र यानी मधुमास के दिनों में बिहार के खेतों में रबी की पकी हुई फसल और पक चुकीं सरसों की बालियां खलिहानों में पहुंच गई होती हैं। इस मौसम में किसान खेतों के बजाए खलिहानों में ही ज्यादा समय बिताते हैं। बिहार में मधुमास के दिनों में चैता गाने की पुरानी परंपरा है। चैता गीतों को जब ढोलक और झाल की संगत मिलती है, तब लोगों का मनभी झनझना उठता है। पुराने चैता गायकों का मानना है कि लजक संस्कृति चाहे किसी भी क्षेत्र की हो, उसमें ऋतुओं के अनुकूल गीतों का समृद्ध खजाना होता है। उत्तर भारत के अवधी व भोजपुरी भाषी क्षेत्र की लजकप्रिय गायन शैली ‘चैता’ है।
मैथिली भाषियों के मिथिला क्षेत्र में इसे चैती कहा जाता है। इसकी एक और किस्म ‘घाटो’ भी है। चैत्र मास में गांव के चौपाल में महफिल सजती है और एक विशेष परंपरागत धुन में श्रृंगार और भक्ति रस मिश्रित चैता गीत देर रात तक गाए जाते हैं। इस महीने में बिहार के गांवों से लेकर शहरों तक में चैता का आयोजन किया जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में चैत महीने में गाए जाने वाले गीत को चैता, चैती या चैतावर कहा जाता है। इस महीने रामनवमी के दिन भक्ति रस में डूबे चैता गीत खासतौर से गाए जाते हैं।
चैता के गायकों का कहना है कि चैता में राम के जन्म को विस्तार से गाने की परिपाटी नहीं है, लेकिन जनकपुर की पुष्प वाटिका में राम-सीता मिलन, सीता स्वयंवर से लेकर राम वनवास और राम द्वारा सीता के निर्वसन का वर्णन चैता के गीतों के माध्यम से किया जाता है।
इन गीतों में मुख्य रूप से इस महीने के मौसम का वर्णन भी होता है।

चैता गीत पूर्णत: ठुमरी शैली में गाए जाते हैं। चैता के जानकारों का कहना है कि चैता में छंद की नहीं, बल्कि लय का कमाल होता है। यह पढ़ने की नहीं, बल्कि सुनने की चीज है। चैता गुनगुनाने की शैली है। कई चैता गायक इसे लोकगीत मानते हैं, परंतु कई इसे शास्त्रीय संगीत की गरिमा भी प्रदान करने से नहीं हिचकिचाते।

सासाराम के चर्चित चैता गायक मनोज ‘मधुप’ ने  बताया कि चैता ‘दीपचंदी’ या ‘रागताल’ में अक्सर गाया जाता है। हालांकि कई गायक इसे ‘सितारवानी’ या ‘जलद त्रिताल’ में भी गाते हैं। वह कहते हैं कि राज्य के बक्सर, औरंगाबाद, रोहतास व गया जैसे जिलों में चैता की महफिल खूब जमती है। वह कहते हैं कि चैता पर कई विद्वानों ने आलेख लिखे हैं, जिनमें ए गीत उद्धृत हैं।chita
मधुप कहते हैं कि चैता गीत को बिहार में ही कई नामों से जाना जाता है। चैता गीत को भोजपुरी में घाटो, मगही में चैतार और मैथिली में चैती या चैतावर कहा जाता है। चैत महीने को ऋतु परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। पतझड़ बीत चुका होता है और वृक्षों और लता में नई-नई कोपलें आ जाती हैं। एक अन्य चैता गायक संजय सुमन कहते हैं कि चैत महीने में राम का जन्मोत्सव होने के कारण राम का वर्णन चैता गीतों में तो आता ही है परंतु कई गीतों में कृष्ण और राधा के विरह का भी जिक्र है। इन गीतों में शिव पार्वती का भी संवाद कर्णप्रिय लगते हैं।
रामनवमी के मौके पर ‘जनम लिए रघुरैया हो रामा, चैत महिनवां, या ‘घरे-घरे बाजेला बधइयां हो रामा’ काफी प्रचलित व कर्णप्रिय चैता गीत हैं। सुमन कहते हैं कि राज्य में चैता गीत को लेकर गांवों में प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है, जबकि कई क्षेत्रों में ‘दो गोला चैता’ भी आयोजित किया जाता है। उन्होंने कहा कि चैता गीत पूर्णत: ठुमरी शैली में गाए जाते हैं। चैता के जानकारों का कहना है कि चैता में छंद की नहीं, बल्कि लय का कमाल होता है। यह पढ़ने की नहीं, बल्कि सुनने की चीज है। चैता गुनगुनाने की शैली है। कई चैता गायक इसे लोकगीत मानते हैं, परंतु कई इसे शास्त्रीय संगीत की गरिमा भी प्रदान करने से नहीं हिचकिचाते।






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