डा. राजेंद्र प्रसाद के घर में महात्मा गांधी के साथ हुआ था जाति का भेदभाव!
कुएं से पानी नहीं निकालनें दिया या घर का शौचालय इस्तेमाल नहीं करने दिया
जिस घटना से बदला देश का पूरा इतिहास, उसके सौ साल पूरे
गांधीजी की पहली बिहार यात्रा के सौ साल
कुणाल दत्त.पटना।
दक्षिण अफ्रीका से अपनी वापसी के दो साल बाद, इंग्लैंड में प्रशिक्षित एक वकील 10 अप्रैल 1917 को तीसरी श्रेणी के डिब्बे से बिहार की जमीन पर पहली बार पैर रखने के लिए उतरे जिसने देश के पूरे इतिहास को बदल दिया। वह वकील 48 वर्षीय मोहनदास करमचंद गांधी थे और चंपारण में उनकी अगुवाई में किसान आंदोलन सहित अगले कुछ सालों के घटनाक्रम ने उन्हें महात्मा का असाधरण नाम दिलाया। इस महीने के शुरू में नीतीश कुमार सरकार ने बिहार में उनकी पहली यात्रा और गांधी द्वारा सत्यग्रह आंदोलन की 100वीं जयंती मनाने की योजना बनाई थी। इसी आंदोलन ने आखिरकार राष्ट्र को आजाद करने की लड़ाई के लिए एक किया था। पर्यटन विभाग सत्यग्रह की शताब्दी के साथ ही गांधी सर्किट को बढ़ावा देने के तरीकों को तलाश रहा है। इस दौरान कई गतिविधियां आयोजित करने की योजना बनाई गई है जिसमें संगोष्ठी से लेकर कार्यशाला और प्रदर्शनी तक हैं जो पटना से लेकर मोतिहारी (पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय) तक होनी है। गांधीजी नील की खेती करने वाले राज कुमार शुक्ला के बुलावे पर बिहार आए थे। वह किसानों की परेशानी को उठाना चाहते थे जिनको ब्रिटिश नील की खेती करने के लिए मजबूूर कर रहे थे। गांधीजी 10 अप्रैल को बांकीपुर स्टेशन (पटना रेलवे स्टेशन का पुराना नाम) पहुंचे थे और उनके तीसरी श्रेणी के डिब्बे से उतरने के चित्र को पटना जंक्शन पर लगाया गया है जो गांधीजी की बिहार की पहली यात्रा की याद दिलाती है। जिस दिन शुक्ला गांधीजी को राजेंद्र प्रसाद के आवास पर ले गए थे, उस दिन एक दिलचस्प घटना हुई। प्रसाद कांग्रेस नेता और वकील थे जिन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत शुरू ही की थी और बाद में वह देश के पहले राष्ट्रपति बने थे।
गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने अपनी पुस्तक ‘गांधी: द मैन, हिज पीपल एंड एम्पायर’ में लिखा है कि शुक्ला गांधी को राजेंद्र प्रसाद के घर लेकर गए। वह और अन्य नील उत्पाद करने के वाले किसान मिल गए थे। हालांकि प्रसाद शहर से बाहर थे और गांधी को निम्न जाति का भांप कर उन्हें कुएं से पानी नहीं निकालनें दिया या घर का शौचालय इस्तेमाल नहीं करने दिया।
पटना के जानेमाने इतिहासकार सुरेंद्र गोपाल ने कहा कि गांधी इंग्लैंड के दिनों से अपने साथी वकील मजहर उल हक को जानते थे। उन्होंने अपने पहुंचने के बारे में एक नोट भेजा था। तब हक फौरन आए और गांधी को फ्रेजर रोड पर स्थित आलीशान घर में ले गए। उनके घर को ‘सिकंदर मंजिल’ के नाम से जाना जाता था। गांधी की पहली पटना यात्रा बहुत संक्षिप्त थी क्योंकि वह चंपारण जिला जा रहे थे जिसे 1970 में पूर्वी चंपारन और पश्चिम चंपारण (जिला मुख्यालय बेतियां) के तौर पर विभाजित कर दिया गया। हक ने उन्हें मुजफ्फरनगर की ट्रेन में बिठा दिया और गांधी उत्तर बिहार के शहर में आधी रात को पहुंचे जहां उनकी आगवानी कांग्रेस के अन्य नेता और कॉलेज प्रोफेसर जेबी कृपलानी ने की। अपनी वहां की यात्रा के दौरान वह भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज (अब इसका एलएस कॉलेज कर दिया गया है) में रूके और उन्होंने बिहार प्लांटर एसोसिएशन के सचिव जेम्स विल्सन और तिरहुत मंडल के आयुक्त एलएफ मोर्सहेद से किसानों की स्थिति पर बैठक की थी। दिल्ली स्थित गांधीवादी विद्वान शोभना राधाकृष्णन ने कहा कि मुजफ्फरपुर स्टेशन पर छात्रों की भीड़ उनकी आगवानी करने पहुंची थी। एक तांगे (घोड़ा गाड़ी) को उन्हें ले जाने के लिए स्टेशन के बाहर खड़ा किया गया था, लेकिन छात्र बहुत उत्साहित थे और उन्होंने तांगे से घोड़े को अलग दिया और गंतव्य तक खुद तांगे को खींचकर ले गए।
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