रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों से खोला डिग्री कॉलेज
सीवान: समाज में शिक्षा का अलख जगाना ही इनके जीवन का मकसद है. इन्हें सीवान का कोई गांधी कहता है,तो कोई मालवीय. जिला मुख्यालय से 30 किमी दक्षिण रघुनाथपुर के पंजवार गांव के रहनेवाले घनश्याम शुक्ल ने अपने जीवन को युवा अवस्था से ही समाज के लिए समर्पित कर दिया. किसान आंदोलन में जेल गये, तो कैदियों को नियमानुसार भोजन उपलब्ध कराने के लिए अनशन पर बैठ गये. जयप्रकाश आंदोलन में इलाके में हरिजन सहभोज कराया तथा क्षेत्र में आंदोलन की अगुआई की. समाजवादी विचारधारा से प्रभावित घनश्याम ने जब जनेऊ तोड़ा तो बिरादरी के लोगों के बहिष्कार का सामना करना पड़ा. प्रखंड क्षेत्र टाड़ी के मध्य विद्यालय से नवंबर, 2009 में शिक्षक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद से लगातार शिक्षा की ज्योति जगा रहे हैं. इनकी अगुआई में संचालित पंजवार का पुस्तकालय अपने आप में एक संस्थान है. सेवानिवृत्ति के बाद मिले सारे पैसे कॉलेज खोलने में लगा दिये.
प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज : एक सपना जो सच हुआ : शिक्षक थे. सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के पहले ही तय कर चुके थे कि बालिकाओं की उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिग्री कॉलेज खोलना है . दो अक्तूबर, 2008 को सहयोगियों के साथ बैठक की. प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज पंजवार को स्थापित घोषित किया गया.लेकिन असली जद्दोजहद अभी बाकी थी.भवन निर्माण के लिए जमीन, उसके बाद कॉलेज की मान्यता जैसी कई आशंकाएं प्रकट हुईं .उनके आत्मविश्वास के आगे सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं.भूमि मिली व भवन बना. रिटायरमेंट फंड इस शिक्षा मंदिर के लिए समर्पित हो चुका था.अब बस एक कसर बाकी थी, किसी तरह कॉलेज को अनापत्ति प्रमाणपत्र मिल जाये. जेपी विश्वद्यिालय छपरा के अधिकारियों से बार-बार संपर्क और आश्वासन मिलने के बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं हो रहा था. इस पर वे विश्वविद्यालय परिसर में आमरण अनशन पर बैठ गये. गांधी और जयप्रकाश के अनुयायी ने उन्हीं के नक्शे कदम पर चल कर अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया. कक्षाएं चलने लगीं. प्रभावती और जयप्रकाश के नाम से बने कॉलेज का परिसर विद्यार्थियों की किलकारी से गुंजायमान हो उठा.
संन्यासी की तरह है जीवन : भरा-पूरा घर-परिवार.समाज में एक खास पहचान. इन सबको छोड़ कर संन्यास धारण कर चुके हैं घनश्याम शुक्ल. भारतीय परंपरा के आदर्श संन्यासी हैं. कॉलेज के पास स्थित फूस की झोंपड़ी में रात्रि निवास व सुबह तड़के जाग कर कॉलेज की साफ -सफाई. उसके बाद नहा-धोकर विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिये तैयार. कॉलेज की कक्षाएं खत्म होने के बाद स्कूली बच्चों को मुफ्त शिक्षा. समय मिला तो कॉलेज को और बेहतर बनाने के लिए सपने बुनना. फिर उन सपनों को सच करने के लिए काम करना.
एक सपना है अधूरा : जब भी यायावर और अस्पृश्य जातियों के नन्हे बच्चों को देखते हैं , उन्हें तकलीफ होती है. उनका स्पष्ट मानना है कि शिक्षा ही वह हथियार है जिसकी धार पर व्यक्तित्व का निर्माण होता है . उन्हीं बच्चों के लिए एक आवासीय विद्यालय खोलने का सपना है. उनके परिवेश से अलग मुख्य धारा से जोड़ने के लिये यही एक विकल्प है . इस विद्यालय में विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा और रहने-खाने का प्रबंध होगा.
शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख योगदान
- 2 अक्तूबर 1982-कस्तूरबा बालक इंटर कॉलेज की स्थापना.
- 11 सितंबर 1994- बिस्मिल्लाह संगीत विद्यालय की स्थापना.
- 2 अक्तूबर 2008-प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज की स्थापना.
- विद्या मंदिर पुस्तकालय की जीर्णोद्धार में निभायी भूमिक
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