बिहार चुनाव में सीबीआई भी मैदान में है?
मृगांक शेखर . दिल्ली।
एक जिंदगी देता है और दूसरा इंसाफ. डॉक्टर और सीबीआई – दोनों ही पर इस मुल्क में उतना ही भरोसा किया जाता है जितना भगवान पर. डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही के आरोप भी लगते रहे हैं, लेकिन इस बात से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता. सीबीआई के दुरुपएोग की भी बातें अक्सर उठती रहती हैं, पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. घटना होते ही सबसे पहले सीबीआई जांच की ही मांग होती है. सीबीआई जांच के लिए लोग धरना प्रदर्शन से लेकर आमरण अनशन तक करते हैं. फिर भी बात नहीं बनती तो अदालतों के दरवाजे खटखटाते हैं. सब सिर्फ इसलिए कि सीबीआई जांच हो जाए… मई 2013 में सीबीआई के बारे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी, “सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की तरह है, जो अपने मालिक के सुर में सुर मिलाता है.” उसके बाद सीबीआई को स्वायत्तता देने की चर्चा और कुछ कोशिशें भी हुईं. कुछ कोशिशें हो भी रही होंगी. आम लोग या नेताओं की जो भी राय हो, दो साल बाद भी सीबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया या सीबीआई के लिए सरकार की ओर से ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे उसको लेकर कोर्ट का नजरिया बदल सके. बल्कि अब तो लगने लगा है कि सीबीआई किसी भी हद तक जा सकती है, फर्जी चार्जशीट तैयार करना तो एक मिसाल भर है. 2जी केस में एक स्पेशल कोर्ट की टिप्पणी पर इस मामले में एक और नजीर है, “यह फर्जी और मनगढ़ंत आरोप पत्र हैं और किसी भी आरोपी को फंसाने वाले साक्ष्य नहीं हैं. आरोप पत्र में तोड़-मरोड़ कर पेश किए गए तथ्यों की भरमार है और अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई है. केंद्र में सत्तारुढ़ दलों पर सीबीआई के दुरुपएोग के आरोप लगते रहे हैं. कोर्ट की टिप्पणियों के बाद ए आरोप ज्यादा दमदार लगने लगे हैं. हाल ही में मायावती ने मोदी सरकार पर अपने खिलाफ सीबीआई के दुरुपएोग का आरोप लगाया था. यूपी के एनआरएचएम घोटाले में सीबीआई ने मायावती को पूछताछ के लिए बुलाया था. इसी तरह चर्चा रही कि सीबीआई के चलते ही मुलायम सिंह यादव ने बिहार में महागठबंधन से नाता तोड़ लिया. इतना ही नहीं अपने रिश्तेदार लालू प्रसाद की परवाह न करते हुए मुलायम ने जगह जगह न सिर्फ अपने उम्मीदवार खड़े किए, बल्कि अब तो बीजेपी को वोट देने की खुलेआम अपील तक कर रहे हैं. असल में कुछ ही दिन पहले नोएडा अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर यादव सिंह और मुलायम के भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के कारोबारी रिश्ते की बात सामने आई थी. भ्रष्टाचार के मामले में यादव सिंह फिलहाल सीबीआई के लपेटे में हैं. मोदी सरकार से पहले जब केंद्र में यूपीए का शासन था तब भी सीबीआई के दुरुपएोग की बात उठती रही. मुलायम और मायावती का नाम खासतौर पर ऐसी चचार्ओं का हिस्सा हुआ करता था.
चुनाव मैदान में ‘सीबीआई’
सितंबर 2012 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “मेरे खिलाफ राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नहीं बल्कि सीबीआई लड़ रही है.” गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी मोदी ने कई बार अपने खिलाफ सीबीआई के चुनाव लड़ने की बात कही.
मई 2009 में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पत्रकारों ने केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा सीबीआई के दुरुपएोग के बारे में पूछा तो उन्होंने माना कि थोड़ा बहुत दुरुपएोग होता तो है. राहुल के इस इकबालिया बयान के बाद बीजेपी और वाम दलों ने खूब हंगामा किया. मोदी के पुराने आरोप, मायावती के ताजा इल्जाम, मुलायम सिंह द्वारा बीजेपी को जिताने की अपील और विशेष कोर्ट की टिप्पणी – ए सब सीबीआई की भूमिका पर ऐसा सवालिया निशान तो लगाते ही हैं जिसे फिलहाल आसानी से मिटाया नहीं जा सकता. बिहार चुनाव में सीबीआई की कोई भूमिका नहीं होगी, अगर कोई या कहे तो यकीन करना मुश्किल होगा. पर्दे के पीछे भी जो भी चलता रहे. कुछ ही देर बाद किसी न किसी कोने में सीबीआई जांच की मांग जरूर होगी या हो रही होगी. या इस मुल्क के लोगों की फितरत है – भरोसा करते तो जल्दी हैं, लेकिन जल्दी तोड़ते नहीं. लेकिन कब तक?
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