बिहार बीजेपी: प्यादों पर पैनी नजर

संतोष कुमार | सौजन्‍य: इंडिया टुडे

AdTech Adपटना के फ्रेजर रोड स्थित वाररूम में अमित शाह को आधुनिक तकनीक से निगरानी दिखाते हुए ऋतुराज सिन्हा
गली-कूचे, चप्पे-चप्पे पर भगवा ध्वज लहरा दो. कहीं भी, कोई और झंडा-पोस्टर नहीं दिखना चाहिए, ऐसा भगवामय माहौल बना दो कि हर जगह भगवा ही भगवा नजर आए.” बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची के ऐलान से ठीक पहले 15 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का पटना स्थित वाररूम को दिया गया यही संदेश है. इसी आक्रामक रणनीति के साथ बीजेपी ने अब आरजेडी-जेडी (यू)-कांग्रेस महागठबंधन के उम्मीदवारों की सूची का इंतजार किए बिना अपने सामाजिक आकलन के आधार पर चरणवार उम्मीदवारों के नामों का ऐलान करना शुरू कर दिया है. कांटे के मुकाबले में पार्टी अब “आगे बढ़ो” की रणनीति के साथ माहौल को अपने पक्ष में करना चाहती है ताकि आखिरी समय में हवा का रुख देखकर मतदान करने वाले मतदाताओं को आकर्षित किया जा सके.
अब तक सधी हुई रणनीति अपना रही बीजेपी की आक्रामकता की वजह उसकी जमीनी तैयारी है. इसकी शुरुआत यूं तो जनवरी में ही हो चुकी थी लेकिन उसे दिशा दी शाह ने 14 अप्रैल को पटना के कार्यकर्ता समागम में. शाह ने तब खास रणनीतिकारों के साथ बैठक में कहा था, “लोकसभा चुनाव में बिहार के 62,779 बूथों में से 9,302 बूथों पर महज 50 वोटों के अंतर से फैसला हुआ था. इसलिए हमें सारी ऊर्जा बूथ पर लगानी होगी. अगर हम बूथ जीतेंगे तो चुनाव जीतेंगे. हमें हर बूथ पर कम से कम 100 वोट बढ़ाने की चिंता करनी है.” यानी शाह फॉर्मूले के हिसाब से 36 विधानसभा सीटों पर 50 वोटों का अंतर पार्टी की इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में निर्णायक साबित हो सकता है.

बिहार चुनाव 2015 बीजेपीबूथ जीतो, बिहार जीतो

बारीक प्रबंधन (माइक्रोमैनेजमेंट) के माहिर माने जाने वाले शाह ने वही फॉर्मूला अपनाया है जिसे प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने अपनाया था. शहरों की बजाए गांवों में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की रणनीति बनाई गई. प्रबंधन में सबसे पहले बीजेपी ने बूथ कमेटी बनाई जिसमें संयोजक समेत 14 ऐसे लोग छांटे गए जो उसी बूथ के मतदाता भी हों. इस तरह पार्टी ने हर विधानसभा क्षेत्र में 27,800 लोगों की ऐसी फौज खड़ी कर ली, जो सीधे पटना के फ्रेजर रोड स्थित वाररूम से जुड़ चुके हैं.
इस वाररूम को पार्टी से जुड़े युवा उद्यमी ऋतुराज सिन्हा ने आधुनिक तकनीकों से इस कदर लैस किया है ताकि कहीं भी, किसी गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे. इस वाररूम के बारे में सिन्हा इंडिया टुडे से कहते हैं, “बिहार में जब विरोधी गठबंधन शहरों में होर्डिंग्स-पोस्टर लगाने में व्यस्त था, तब हम गांव की ओर निकल चुके थे. बिहार का भविष्य गांव तय करेगा. हमने हर बूथ से सदस्यों का आंकड़ा इकट्ठा कर उसे वर्गीकृत कर लिया है. बूथ समितियों का गठन हो चुका है.” बूथ कार्यकर्ताओं को संगठित कर ऊर्जा का संचार करने की रणनीति का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, “हमारे सभी 245 परिवर्तन रथ अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं और हम कहीं भी बैठकर अपने मोबाइल से वहां की फोटो, भाषण, भीड़ वगैरह को देख सकते हैं.”
बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के जरिए पार्टी ने दीवारों पर नारे लिखने, घरों के दरवाजे, गाडिय़ों पर स्टिकर, छतों पर झंडे लगाने का काम रणनीतिक लिहाज से आगे बढ़ाया है. पार्टी का मानना है कि जो व्यक्ति अपनी सहमति से झंडे, स्टिकर और दीवारों-दरवाजों पर बीजेपी की प्रचार सामग्री लगवाएगा, वह खुलकर पार्टी का समर्थक होगा. लेकिन बीजेपी के लिए चिंता की बात यह भी है कि जिस वाररूम से वह अपनी रणनीति को अंजाम दे रहा है, वह आपसी खींचतान में भी फंसा हुआ है. ऋतुराज सिन्हा, जिन्हें अमित शाह का वरदहस्त हासिल है, पटना के फ्रेजर रोड से वाररूम संचालित कर रहे हैं. उनका काम बूथ प्रबंधन और परिवर्तन रथ से जुड़ा है तो दूसरा वाररूम पार्टी दफ्तर से प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव चला रहे हैं, जहां पोस्टर-होर्डिंग्स वगैरह के साथ परिवर्तन यात्रा और अन्य इंतजामात की देखरेख हो रही है. सूत्रों के मुताबिक, बतौर प्रभारी भूपेंद्र एक ही वाररूम के हिमायती थे.
बिहार चुनाव 2015 बीजेपी की नीतिहालांकि इस खींचतान से इतर बीजेपी ने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की पूरी फौज बनाने में  बारीक से बारीक पहलुओं का ध्यान रखा है. पार्टी ने परिवर्तन रथ को सभी विधानसभा क्षेत्रों में भेजकर बूथ कार्यकर्ताओं को संगठित किया. इस रथ में वीडियो के जरिए नरेंद्र मोदी के भाषण, नुक्कड़ नाटक की टीम मौजूद है. इस रथ की निगरानी जीपीएस के जरिए होती है और किस इलाके में इस रथ को कितनी तवज्जो मिल रही है, इसकी भी सीधी निगरानी वाररूम से होती है. इस रथ के साथ ही पार्टी ने परिवर्तन यात्रा शुरू की, जिसमें पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को सभी विधानसभा सीटों में जाकर सभाएं करनी थीं. इसके बाद पार्टी ने परिवर्तन रैली का खाका बनाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार बड़ी रैली कराई. इस चार स्तरीय अभियान के साथ पार्टी ने मीडिया, सोशल मीडिया के जरिए बिहार में परिवर्तन का संदेश देने की कोशिश की. सभी बूथ समितियों को व्हाट्सऐप ग्रुप से जोड़ा गया है और पल-पल की खबर वाररूम के जरिए केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच रही है. इसके अलावा टीवी बहस में अपने और विरोधी पक्ष की बातों का भी संकलन कर रोजाना रिपोर्ट तैयार की जाती है. बीजेपी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार बताते हैं, “शाह आंकड़ों पर आधारित सही रिपोर्ट पर ही कोई बातचीत करते हैं. वे मीडिया में रोज छपने वाली खबर में यहां तक निगरानी करते हैं कि किस अखबार ने कितनी जगह दी, किसने फोटो के साथ बीजेपी की खबर छापी.”

दिन में दो बार अखबारी-टीवी समाचार संकलित किए जाते हैं. टीवी बहस में अपने और विरोधी नेताओं ने क्या बयान दिए, इसकी भी समीक्षा होती है. इसके अलावा पार्टी की रणनीति केंद्र सरकार की बीमा योजनाओं को वोट का साधन बनाने की भी है. एक रणनीतिकार बताते हैं, “हमने हर विधानसभा में 20 हजार लोगों को बीमा योजना बांटी है. एक परिवार में चार वोटर के हिसाब से हमारे 80 हजार वोट तय समझिए. अगर एक विधानसभा में 60 फीसदी वोट पड़ता है तो वोट एक से डेढ़ लाख के बीच पड़ेगा. इसमें से कुछ वोट निर्दलीय ले जाएंगे और बीजेपी की जीत का अंतर 50-60 हजार हो सकता है.”

उम्मीदवारों के चयन में बीजेपी ने जिताऊ को एकमात्र पैमाना बनाया है. पार्टी के लिए यह चुनाव कितना प्रतिष्ठा का सवाल है, उसे उम्मीदवार चुनाव की रणनीति से भी समझा जा सकता है. शाह और संघ ने अपने स्तर पर उम्मीदवारों का पैनल तो बनाया ही है, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंटेलीजेंस के जरिए रिपोर्ट तैयार कराई है.

सामाजिक समीकरण पर निगाह

आरजेडी-जेडी (यू)-कांग्रेस महागठबंधन से पहले ही बीजेपी ने सामाजिक समीकरण का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. बीजेपी नेताओं का मानना है कि जनता परिवार के विलय की अटकलों के समय ही पार्टी ने यह मान लिया था कि उसके विरोधी अब एक मंच पर आने वाले हैं. लिहाजा, पार्टी ने 23 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर जयंती के मौके पर पटना में रैली की, जिसमें शाह खुद मौजूद थे. पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ों के बड़े नेता थे और इस समाज के वोटरों की संख्या 30 फीसदी के करीब है. इसलिए बीजेपी ने बिहार के सभी 38 जिलों में अति पिछड़ा मंच बनाकर भी उनकी जयंती को जोर-शोर से मनाया. परिवर्तन रथ को पूरे बिहार में दौड़ाने से पहले पार्टी ने सामाजिक समीकरण का खास क्चयाल रखा. इस रथ पर 12 समाज के चेहरों को जगह देकर बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी वाली छवि से बाहर निकलने की भरसक कोशिश की है. हालांकि पार्टी का कहना है कि इसे सामाजिक समीकरण साधने के लिहाज से नहीं देखना चाहिए. रथों पर मोदी-शाह के अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता नंद किशोर यादव, विधान परिषद में नेता सुशील कुमार मोदी, प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे, तीनों गठबंधन के नेता, बिहार से जुड़े केंद्रीय मंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय पदाधिकारियों की तस्वीरें लगाई गई हैं.

प्रबंधन में कोई चूक न रह जाए, इसलिए उसने सभी 243 विधानसभाओं की सामाजिक समीकरण की रिपोर्ट कार्यकर्ताओं के जरिए इकट्ठा की है. कौन-सा समाज बीजेपी के पक्ष में है और कौन विरोध में, उसकी स्थिति का खाका तैयार किया गया है. फिर अपना, विरोधी और सहयोगी दलों के संभावित उम्मीदवारों के 10-11 नामों का पैनल मंडल स्तर से लिया गया है. बिहार के प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव कहते हैं, “हमने अपनी रिपोर्ट जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं से हासिल की है. बिहार अब परिवर्तन के पथ पर बढ़ चला है जो सभी वर्गों को जोड़ विकास के रास्ते पर आगे ले जाएगा.”

बीजेपी की प्रचार नीति बिहार चुनाव 2015माइक्रोमैनेजमेंट की जरूरत क्यों?

लेकिन इस माइक्रोमैनेजमेंट के बावजूद बीजेपी को राह आसान नहीं दिख रही. मोदी लहर में बिहार-यूपी में जबरदस्त जीत हासिल करने वाली बीजेपी की मुश्किल नीतीश-लालू के गठबंधन से हुई जिसे पहले सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने भी समर्थन दिया था. लोकसभा चुनाव के समीकरण के लिहाज से इस गठबंधन को बढ़त दिख रही थी. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी में शीर्ष स्तर पर शुरुआती आकलन में यह बात उभरकर सामने आई कि लोकसभा चुनाव जैसी लहर नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रति आकर्षण बरकरार है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी का खुद का मानना था कि जो जुनून लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी के लिए कार्यकर्ताओं में था, वैसा अब नहीं है, भले वह वोट बीजेपी को दे.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, “लोकसभा में हमारा कार्यकर्ता 10-12 वोटरों को बूथ तक खींच कर ले आया था. अब वही जुनून यादव समाज में लालू यादव के लिए है क्योंकि उन्हें 10 साल बाद फिर अपनी ताकत वापस आती दिख रही है. कुर्मी समाज भी लोकसभा में अपने नेता नीतीश कुमार के अपमान को नहीं पचा पा रहा. मुस्लिम वोट के बंटने का भी कोई कारण नहीं है. यानी हमारी लड़ाई इन वोटों में बिखराव लाने की है.”

शुरू में इसी आकलन के बाद बीजेपी ने माइक्रोमैनेजमेंट की रणनीति पर फोकस किया. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को शामिल कर सामाजिक समीकरण को नया आकार दे दिया. वैसे गठबंधन में सीटों को लेकर मची खींचतान ने बीजेपी आलाकमान की पेशानी पर बल डाल दिए हैं. टिकटों के बंटवारे से सहयोगी दलों के साथ बीजेपी के अपने खेमे में भी बगावत के बगूले फूटने लगे हैं. हालांकि बीजेपी को सपा-एनसीपी, पप्पू यादव की पार्टी और असदुद्दीन औवैसी की पार्टी के मैदान में उतरने से महागठबंधन के वोटों के बिखराव से लाभ की उम्मीद है.

संघ के फीडबैक ने बढ़ाई चिंता
इसी वजह से सीटों के तालमेल के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति को आक्रामक प्रचार की दिशा में मोड़ दिया है. लेकिन इस रणनीति के पीछे की बड़ी वजह संघ परिवार से पार्टी को दिया गया फीडबैक है. सूत्रों के मुताबिक, संघ ने अपने स्वयंसेवकों के जरिए 28 सप्ताह तक टीम की अदला-बदली कर सर्वेक्षण करवाया, जिसमें एक समय एनडीए की स्थिति विधानसभा में मौजूदा सीटों के मुकाबले आधी रह गई थी. संघ ने बाद में जो फीडबैक दिया है, वह भी उत्साहवर्धक नहीं है क्योंकि उसमें एनडीए गठबंधन दो अंकों से आगे बढऩे के लिए ही जद्दोजहद करता दिख रहा है. हाल ही में 2-4 सितंबर को दिल्ली के मध्यांचल में हुई संघ परिवार की समन्वय बैठक के समापन के बाद सरसंघचालक मोहन भागवत समेत संघ नेताओं ने बिहार में काम देख रहे राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह के साथ “मुक्त चिंतन” किया. इस रिपोर्ट के बाद पार्टी ने आक्रामक अभियान पर फोकस किया ताकि चुनावी फिजा भगवामय हो जाए. नीतीश-लालू गठबंधन से उभरे जाति समीकरण ने भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाई हैं क्योंकि जिस बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं पर बीजेपी दांव लगा रही है, उनमें से 14 ऐसे लोग मिले हैं जो विरोधी गठबंधन के भी संपर्क में थे. उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.
लोकसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत से बीजेपी का मनोबल ऊंचा है. वह इस कोशिश में है कि चुनाव किसी भी तरह से जात-पांत में न उलझे. नरेंद्र मोदी के चेहरे को फोकस में रखकर पार्टी चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती. इसलिए रणनीति और वाररूम पर शाह खुद पैनी नजर गड़ाए हैं.

 इंडिया टुडे से





Related News

  • मोदी को कितनी टक्कर देगा विपक्ष का इंडिया
  • राजद व जदयू के 49 कार्यकर्ताओं को मिला एक-एक करोड़ का ‘अनुकंपा पैकेज’
  • डॉन आनंदमोहन की रिहाई, बिहार में दलित राजनीति और घड़ियाली आंसुओं की बाढ़
  • ‘नीतीश कुमार ही नहीं चाहते कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, वे बस इस मुद्दे पर राजनीति करते हैं’
  • दाल-भात-चोखा खाकर सो रहे हैं तो बिहार कैसे सुधरेगा ?
  • जदयू की जंबो टीम, पिछड़ा और अति पिछड़ा पर दांव
  • भाजपा के लिए ‘वोट बाजार’ नहीं हैं जगदेव प्रसाद
  • नड्डा-धूमल-ठाकुर ने हिमाचल में बीजेपी की लुटिया कैसे डुबोई
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com