बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महिलाएं क्या सोचती हैं? उनका मूड क्या है और वे किस तरह नतीजों को प्रभावित करेंगी? मैंने इस मुद्दे की पड़ताल करने की कोशिश की. निर्मला देवी कहती हैं, “पिछली बार नीतीश ने अच्छा काम किया था, तो मैंने उन्हें वोट दिया था. इस बार सोचेंगे. दो पार्टियों के बीच फ़ैसला करना है. गांव-समाज बैठेगा, तब फैसला होगा. और पूरे देस (बिहार) में यही होगा.”
निर्मला देवी ने जब मुझसे यह कहा तो उनका चेहरा एक पहेली की तरह लग रहा था. वे गया के मानपुर की है और खेतों में मजदूरी करती हैं. वे सवाल उठाती हैं, “योजनाएं बनी, उन पर अमल कितना हुआ? ज़मीन का मुद्दा था, असली काम रोज़गार की गारंटी देना था. साइकिल और स्कूल की पोशाक से कितने दिन पेट भरेगा?” निर्मला देवी जो सवाल पूछ रही है, वह बिहार के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए अहम है. साफ़ है, महिलाओं की नाराज़गी और चुप्पी नीतीश कुमार को भी परेशान करने वाली है.
महिलाओं के हाथ सत्ता की डोर
साल 2010 के विधानसभा चुनावों में पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल अधिक किया था. जहां 54.5 फ़ीसदी महिलाओं ने वोट मतदान किया था, वहीं 51.5 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने वोट डाले थे. माना गया था कि नीतीश कुमार को महिलाओं ने अपना भरपूर समर्थन दिया था. साइकिल योजना, पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण, क़ानून व्यवस्था के सुधरे हालात 2010 में नीतीश के पक्ष में थे. इस बार कुल 6 करोड़ 68 लाख वोटरों में से 3 करोड़ 11 लाख महिला हैं. यह महिला वोटरों की ताक़त ही है कि दुबारा सत्ता में आने पर नीतीश कुमार को शराबबंदी का वायदा करना पड़ा. उन्होंने इसके साथ ही महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 फ़ीसदी आरक्षण का भी वायदा भी किया.
‘अहिंसात्मक आंदोलन को दबाया’
नीतीश कुमार ने वायदा तो किया है, लेकिन उनकी सरकार के काम काज को लेकर महिलाओं में गहरी नाराजगी है. मूल रूप से नागपुर की वर्षा 12 साल से बिहार में काम कर रही हैं. कुछ महीनों पहले ही एक आंदोलन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में वे घायल हुईं. उनके ज़ख्म अभी भी भरने बाकी है. उनकी संस्था ‘परिवर्तन आंदोलन’ ने हाल के दिनों में बिहार में तेज़ाब के हमलों से पीड़ित महिलाओं की लड़ाई जोर शोर से लड़ी है. वर्षा अब बिहार की वोटर हैं. वे कहती हैं, “यह ठीक है कि नीतीश सरकार ने कुछ काम किए हैं. लेकिन सरकार ने आशा, आंगनबाड़ी और शिक्षकों के अहिंसात्मक आंदोलनों को भी दबाया. महिलाओं में इसे लेकर गहरी नाराज़गी है. एक दिक्क़त यह भी है कि बिहार में अभी विकल्पहीन राजनीति है. एक तरफ सांप्रदायिकता है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार.”
‘जो पड़ गइल तोर वोट’
सरकार के काम काज और दूसरी पार्टियों के दावों पर वोट देने के बीच एक बड़ा सवाल रंजना उठाती हैं. रंजना मुजफ्फरपुर के रामनगर गांव की हैं. वो मुखिया का चुनाव लड़ चुकी हैं. वे वोटिंग के सवाल पर खीझ कर कहती है, “ये सब फालतू बात है कि महिलाएं वोट डालती हैं. आज भी महिलाएं अपना वोट नहीं डाल पाती. उनसे वोट डलवाए जाते हैं या उनके नाम पर दूसरे लोग डालते हैं. फिर कहा जाता है जो पड़ गइल तोर वोट.” नालंदा की मंजू सिन्हा इस बात को ख़ारिज करती हैं. वे कहती है, “क्या हमारे पास दिमाग नहीं है कि हम किसी के कहने पर वोट करें.”
Comments are Closed