शीतलाष्टमी के दिन इस गांव में नहीं जलते चूल्हे, लोग खाते हैं बासी खाना
सुजीत कुमार वर्मा/ बिहारशरीफ.
बिहारशरीफ से करीब चार किलोमीटर की दूर पंचाने नदी के किनारे अवस्थित मघड़ा में शीतलाष्टमी पूजा की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। मघड़ा का तात्पर्य मां के घर से है। मान्यता है कि इस जगह पर घड़े से मां की उत्पत्ति हुई थी, इस कारण इस जगह का नाम मघड़ा पड़ा। प्रत्एक वर्ष चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी को यहां विशाल मेला लगता है और पूरे गांव के किसी घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। इस दिन लोग किसी भी प्रकार के गर्म भोजन का सेवन नहीं करते हैं और न ही आग जलाई जाती है। इसके अलावा इस जिले के और भी हजारों घर ऐसे हैं, जहां शीतलाष्टमी के दिन घरों में आग नहीं जलाई जाती। प्रसाद के रूप में लोग एक दिन पहले का बना बासी भात, कढ़ी, पुआ, पूरी, फुलौरी व अन्य तरह के पकवान खाते हैं। ग्रामीण भाषा में लोग इसे बसियौरा पूजा भी कहते हैं। इस बार शुक्रवार को शीतलाष्टमी को मेला लगेगा और इसी दिन लोग बासी खाना खाएंगे।
सिद्धपीठ है नालंदा का मघड़ा : मघड़ा में मां शीतला देवी की सिद्धपीठ है। ऐसी मान्यता है कि चेचक सहित अन्य दैहिक व दैविक तापों से मां शीतला मुक्ति दिलाती है। कहा जाता है कि मां शीतला को आग व अन्य गर्म चीजों से पूजा करना निषेध है, इस कारण मां शीतला के मंदिर में किसी भी रूप में अग्नि जलाना वर्जित है। मंदिर में धूप-दीप सहित अग्नि से संबंधित कोई भी कर्मकांड मना है।
पुराण में भी है चर्चा :दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। वहां पिता ने उनके पति भगवान शिव को अपमानित किया, जिससे सती यज्ञकुंड में कूद गई। भगवान शिव ने सती को अपने कंधे पर रख लिया और तांडव करने लगे। सती के शरीर का एक अंग मघड़ा में भी गिरा, जिससे मघड़ा की पहचान सिद्धपीठ के रूप में हुई।
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