जवाब है सिर्फ संविधान ! देख आइए’अनेक’
जवाब है सिर्फ संविधान ! देख आइए’अनेक’
रुचिर गर्ग
जिस समय देश में एक विचारधारा दिल्ली में बैठ कर संविधान पर हमले कर रही हो,उस समय एक फिल्म है जो पूर्वोत्तर की जमीन से संविधान पर आस्था का संदेश दे रही है।
यह हौसला आज के समय के जानेमाने फिल्मकार अनुभव सिन्हा ही दिखा सकते हैं ।
मुल्क,आर्टिकल 15 या थप्पड़ जैसी कुरेदती ,झकझोरती फिल्मों के बाद अनुभव सिन्हा अब ’अनेक’ ले कर आए हैं।
यह भी झकझोरती है। सवाल करती है और जवाब भी देती है।
’अनेक’ पूर्वोत्तर के सवालों पर केंद्रित है लेकिन इन सवालों की जटिलताओं को छुए बिना।
पूर्वोत्तर के व्यापक सवालों ,पूर्वोत्तर की राजनीति,यहां के नागरिकों के साथ देश के शेष हिस्से में व्यवहार,उनकी उपेक्षा,अलगाववाद,हिंसा इन सब पर बहुत ही सहज तरीके से बनी एक कहानी है ’अनेक’।
इसकी सार्थकता इस बात में है कि पूर्वोत्तर,जो शेष भारत के लिए थोड़ा पर्यटन और बाकी आतंक व अलगाव की भूमि है,अब बॉलीवुड की तीन घंटे की एक फिल्म का मुख्य विषय है और सशक्त बनी इस फिल्म के साथ इस विषय की स्वीकार्यता भी बनती है।
हालांकि पूर्वोत्तर के सवाल बहुत जटिल हैं।पूर्वोत्तर की आकांक्षाओं को एक फिल्म में समेटा नहीं जा सकता।लेकिन यह फिल्म इंडियन और नॉर्थ ईस्ट के कॉन्फ्लिक्ट को छूने से बचती नहीं है क्योंकि ये काल्पनिक नहीं बल्कि ऐसा सवाल है जो देश के इस भू–भाग के एक हिस्से को खदबदाता ही है।
’अनेक’ पूर्वोत्तर के अलगाववादी समूहों की आय के स्रोतों पर भी सवाल करती है और इन समूहों से शांति वार्ताओं पर भी।यह फिल्म सवाल करती है कि क्या सच में कोई शांति चाहता भी है।
शांति की राजनीति,रणनीति और अर्थशास्त्र पर चर्चा करती इस फिल्म की खूबसूरती इसके सशक्त संवाद भी हैं।इन संवादों के जरिए यह फिल्म कश्मीर से लेकर नक्सलवाद तक की चर्चा कर लेती है। राष्ट्रप्रेम का सैन्य पक्ष भी दिखाती है और उसके मुकाबले शांति की आकांक्षा भी।
इस फिल्म की कहानी में एक मुक्केबाज लड़की भी है।उसे आगे खेलने से रोकने की कोशिशें होती हैं लेकिन तिरंगे के साथ वो लड़की भारतीय होने का मतलब भी बता जाती है।वो पूर्वोत्तर की नागरिक है और अपने पिता के विचारों के विपरीत भारतीयता के ध्वज के साथ जीतती है।
देश की एकता और अखंडता पर संकट के इस दौर में पूर्वोत्तर के बहाने ही सही अनुभव सिन्हा लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के जरिए राष्ट्रीय एकता और संविधान की बात कर रहे हैं।वो ये बता रहे हैं कि संकट कोई हो, सवाल कोई हों,जवाब है सिर्फ इस देश का संविधान !
अगर आपके पास भूलभुलईया 2 जैसी निरर्थक अंधविश्वास बढ़ाने वाली फिल्म देखने के लिए पैसे हैं तो थोड़ा रुकिए और एक सार्थक फिल्म ’अनेक’ देख आइए।
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